राजस्थान उपचुनाव: कांग्रेस के सामने है ये मिथक तोड़ने की चुनौती, इन दोनों सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में आज तक नहीं पड़े वोट

By भाषा | Published: October 6, 2019 02:52 PM2019-10-06T14:52:16+5:302019-10-06T14:52:16+5:30

राजस्थान में दिसंबर 2019 में विधानसभा चुनाव हुए थे। 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 106 विधायक हैं। इनमें बसपा के वे छह विधायक भी शामिल हैं जो पिछले महीने कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

Rajasthan by-election: The challenge to break this myth is in front of Congress, till date the votes of the ruling party in both these seats have not been voted | राजस्थान उपचुनाव: कांग्रेस के सामने है ये मिथक तोड़ने की चुनौती, इन दोनों सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में आज तक नहीं पड़े वोट

उपचुनाव के पिछले रिकॉर्ड की बात करें तो 1998 से 2018 के बीच 26 सीटों पर उपचुनाव हुआ

Highlightsकांग्रेस ने इन दोनों सीट पर पुराने चेहरों पर दांव लगाया है।खींवसर सीट के लिए कुल तीन उम्मीदवार मैदान में हैं

राजस्थान में विधानसभा की दो सीट पर इस माह होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस के सामने जीत हासिल कर यह मिथक तोड़ने की भी चुनौती है कि उपचुनाव के नतीजे आमतौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में नहीं रहते। करीब दस महीने पहले सत्ता में आई कांग्रेस के लिए हालांकि खींवसर और मंडावा सीट पर उपचुनाव होना फायदे का सौदा प्रतीत हो रहा है क्योंकि ये पारंपरिक रूप से कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में शामिल हैं।

कांग्रेस ने इन दोनों सीट पर पुराने चेहरों पर दांव लगाया है। उपचुनाव के पिछले रिकॉर्ड की बात करें तो 1998 से 2018 के बीच 26 सीटों पर उपचुनाव हुआ, जिनमें सत्तारूढ़ पार्टी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है। भाजपा के पिछले पांच साल (2013-2018) के कार्यकाल में छह सीटों के लिए उपचुनाव हुआ।

इनमें से कांग्रेस ने चार सीटें जीती जबकि भाजपा कोटा दक्षिण सीट पर दोबारा जीत दर्ज करने के साथ धौलपुर सीट को बसपा से छीन केवल दो सीट अपने नाम कर पाई। यह अलग बात है कि 2008-13 के दौरान केवल दो उपचुनाव हुए और दोनों सीटें पूर्व विजेता पार्टी की झोली में ही गयीं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा उपचुनाव के परिणाम का राज्य के राजनीतिक समीकरणों पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी की साख जरूर दांव पर लगी है। राजस्थान में दिसंबर 2019 में विधानसभा चुनाव हुए थे। 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 106 विधायक हैं। इनमें बसपा के वे छह विधायक भी शामिल हैं जो पिछले महीने कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इस समय सदन में भाजपा के 72, माकपा, रालोप तथा बीटीपी के दो-दो विधायक हैं। इसके अलावा 13 निर्दलीय विधायक हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान में उपचुनाव के तहत खींवसर व मंडावा विधानसभा सीट पर 21 अक्टूबर को वोट पड़ेंगे।

कांग्रेस ने मंडावा से रीटा चौधरी को टिकट दिया है। रीटा के पिता रामनारायण चौधरी इस सीट से कई बार विधायक रहे। हालांकि बीते दो विधानसभा चुनाव में नरेंद्र खीचड़ ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाते हुए जीत दर्ज की। खीचड़ के झुंझुनू सीट से सांसद चुने जाने के बाद से ही यह सीट खाली है।

रोचक यह भी है कि मंडावा सीट पर बीते दो चुनाव 2014 और 2019 में मुख्य मुकाबला नरेंद्र खीचड़ और रीटा चौधरी में ही रहा है। 2014 में दोनों निर्दलीय मैदान में उतरे तो 2019 में खीचड़ भाजपा और रीटा कांग्रेस की प्रत्याशी थी। इस बार इस सीट पर भाजपा ने कांग्रेस की बागी सुशीला सीगड़ा पर दांव लगाया है।

सुशीला झुंझुनू पंचायत समिति की प्रधान हैं पिछले साल ही कांग्रेस ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते उन्हें निकाला था। वहीं खींवसर सीट राज्य के नागौर जिले में आती है जहां कांग्रेस का मिर्धा परिवार राजनीतिक रूप से काफी मजबूत रहा है। हालांकि हनुमान बेनीवाल पहले भाजपा के नेता के रूप में, बाद में निर्दलीय तथा उसके बाद अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोप) के जरिए खींवसर सीट पर एक सशक्त नेता के रूप में उभरे हैं।

दिसंबर 2019 के विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जीते बेनीवाल बाद में नागौर सीट से सांसद चुने गए। इस उपचुनाव में कांग्रेस ने हरेंद्र मिर्धा को प्रत्याशी बनाया है। मिर्धा पहले मूंडवा सीट से विधायक रह चुके हैं। वहीं भाजपा ने यह सीट गठबंधन के तहत रालोप के लिए छोड़ी है जिसने हनुमान बेनीवाल के छोटे भाई नारायण बेनीवाल को मैदान में उतारा है। यानी कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी पुराने हैं वहीं उसके करीबी प्रतिद्वंद्वी नए हैं। नाम वापसी के बाद इन दोनों सीट पर कुल 12 उम्मीदवार चुनावी मैदान में रह गए हैं।

खींवसर सीट के लिए कुल तीन उम्मीदवार मैदान में हैं, जबकि मंडावा विधानसभा क्षेत्र में नौ उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमां रहे हैं। दोनों सीट पर मतदान 21 अक्टूबर को होगा तथा मतगणना 24 अक्टूबर को की जाएगी। 

Web Title: Rajasthan by-election: The challenge to break this myth is in front of Congress, till date the votes of the ruling party in both these seats have not been voted

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