नई दिल्ली, 11 मईः लाल किले के 'रखरखाव' का जिम्मा निजी कंपनी को देने के सरकार के फैसले के खिलाफ सिविल सोसाइटी संगठनों, हेरिटेज समूहों, शिक्षकों और छात्र संघों सहित अन्य ने गुरुवार को एक विरोध मार्च निकाला। स्वतंत्रता के पहले संग्राम को 161 साल होने के मौके पर राजघाट से लाल किले तक विरोध मार्च निकाला गया और 'नो कंपनी राज एगेन' के नारे लगाए।
10 मई 1857 को स्वतंत्रता का पहला संग्राम शुरू हुआ था। भारत डालमिया समूह ने पिछले महीने सरकार के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे जिसके तहत समूह को धरोहर के रखरखाव का जिम्मा मिल गया था।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि लाल किले के रखरखाव का जिम्मा निजी कंपनी को देने का कदम, इतिहास को अपने हिसाब से दोबारा से लिखने तथा मिटाने के आरएसएस के प्रयासों के अनुरूप है।
सीपीआईएमएल के महासचिव दिनाकरण भट्टाचार्य ने कहा कि अपने 370 वर्ष के अस्तित्व में, लाल किला सिर्फ भारत के प्रतिरोध और स्वतंत्रता का प्रतीक नहीं रह गया है बल्कि यह एक विश्व विरासत स्थल है तो इस प्रतीक को निजी कंपनी को क्यों सौपा गया।
यह प्रदर्शन अनहद ने आइसा, सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एंड आर्ट, दलित लेखक संघ, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट, आईपीटीए, जन संस्कृति मोर्चा, प्रोगेसिव राइटर्स एसोसिएशन और अन्य के साथ मिलकर आयोजित किया था।