संसद में पीएम मोदी-निर्मला के खिलाफ आया विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव तो क्या होगा?
By खबरीलाल जनार्दन | Published: July 24, 2018 01:24 PM2018-07-24T13:24:28+5:302018-07-24T13:25:05+5:30
कांग्रेस पीएम मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ राफेल विमान मामले को लेकर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने वाली है।
नई दिल्ली, 24 जुलाईः भारतीय संसद में फ्रांस के साथ हुए राफेल विमानों के सौदे को लेकर पहले राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री का नाम लेकर गंभीर आरोप लगाए। तो बीजेपी सांसदों ने विशेषाधिकार हनन का मामला बताकर नोटिस जारी किया। अब कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर राफेल विमानों के सौदे को लेकर गुमराह किए जाने पर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव ला सकती है। तो दोनों पक्ष इस वक्त प्रिविलेज्ड-प्रिविलेज्ड खेल रहे हैं।
चलिए ये जानने की कोशिश करते हैं कि संसद में किसी सदस्य के विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव के मायने क्या हैं?
यह मामला संविधान से जुड़ा हुआ है। दअरसल, भारतीय संविधान के अनुच्छेद के 118 के अनुसार संसद को खुद अपने नियम बनाने के अधिकार हैं। और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं।
जैसे-
1- सदन या उसकी किसी समिति के लिये किये गए वोट, कार्यवाही या पेश की गई रिपोर्ट के लिए उन्हें देश की किसी भी अदालत में नहीं घसीटा जा सकता।
2- और इसके बाद भी संसद को यह भी अधिकार है कि वह समय-समय पर अपने विशेषाधिकार, शक्तियों आदि के बारे में स्वयं ही नये नियम बनाता रहे।
3- हां संसद या विधानसभा को यह अधिकार जरूर है कि विशेषाधिकार हनन मामले में दोषी पाए जाने वाले को अर्द्धन्यायिक निकाय की तरह सजा सुना सकते हैं।
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने अपनी विशेषाधिकार समितियों की दो अलग-अलग रिपोर्टों के आधार पर दो पत्रकारों को 1-1 साल की कैद की सजा सुना दी थी।
लेकिन विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव की स्वीकृति या अस्वीकृति दोनों ही लोकसभा स्पीकर का विशेषाधिकार के अंतर्गत आता है। स्वीकृति के बाद विशेषाधिकार मामलों में लोकसभा स्पीकर एक समिति गठित करती है, जो मामले की पूरी जांच-पड़ताल करेगा, उसके बाद संबंधित संसद सदस्य पर कार्रवाई करेगा। ऐसे में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन पर निर्भर करेगा कि वह प्रस्ताव को स्वीकारने के बाद वह कोई समिति गठित करती हैं या स्वीकार नहीं करतीं।
लेकिन यह हमेशा ही विवादों में रहता है। क्योंकि संसद के विशेषाधिकार से संबंधित शक्तियों या इसके उल्लंघन को लेकर दी जाने वाली सजाओं का कोई स्पष्ट लिखित प्रावधान नहीं है। ऐसे में कई बार इसके दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है। लोकसभा में यह पूरी तरह से लोकसभा स्पीकर के विवेक के ऊपर निर्भर करता है कि वह विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव को स्वीकारें या ना स्वीकारें।
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दअरसल, भारतीय संसद में विशेषाधिकार के प्रावधान ज्यादातर ब्रिटिश संसदीय प्रावधानों से लिए गए हैं। कई बार इन विशेषाधिकार मामलों के चलते भारतीय संविधान के तहत नागरिकों को दिए अधिकारों का भी उल्लंघन करते हैं। ऐसे में संसद में विशेषाधिकार हनन को लेकर तय किए जाने नियमों पर फिर से सोचे जाने की जरूरत है।