जानें राफेल विमान सौदे से जुड़े वो सभी पेंच जिसकी वजह से आमने-सामने हैं मोदी-राहुल
By आदित्य द्विवेदी | Published: July 23, 2018 05:38 PM2018-07-23T17:38:03+5:302018-07-23T17:38:03+5:30
इस बीच कांग्रेस लगातार सौदे की रकम को सार्वजनिक करने की मांग पर अड़ी है, जबकि मोदी सरकार दोनों देशों के बीच हुए सुरक्षा समझौते की गोपनीयता का हवाला दे रही है।
अप्रैल 2015 की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि भारत सरकार फ्रांस में बनाए गए 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद करेगी जिन्हें फ्रांस की हथियार निर्माण कंपनी डसॉल्ट एविएशन बना रही है। थोड़ा और पीछे चलते हैं। साल 2012 में यूपीए की सरकार थी। भारतीय वायुसेना गुणवत्तापरक लड़ाकू विमानों की मांग लंबे समय से कर रही थी। लड़ाकू विमानों की रेस में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैसे 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे, लेकिन राफेल ने बाजी मारी।
भारत ने फ्रांस से 126 राफेल विमान खरीदने का फैसला किया था। उस वक्त योजना थी कि फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन से भारत 18 रेडी टू फ्लाई राफेल विमान खरीदेगा और बाकि 108 विमान बेंगलुरु स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में असेंबल किए जाएंगे। कीमतों को लेकर बात अटकी हुई थी और इस बीच भारत में चुनाव हुए। 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार बन गई।
मोदी सरकार ने यूपीए की 126 राफेल विमान खरीदने की योजना में थोड़ा परिवर्तन किया। सरकार ने कहा कि दो इंजन वाले राफेल विमान काफी महंगे हैं। पीएम मोदी के दखल के बाद 126 की बजाए सिर्फ 36 'रेडी टू फ्लाई' विमानों को खरीदने का फैसला किया गया बजाए इसके कि डसॉल्ट से टेक्नोलॉजी लेकर भारत में बनाया जाए। इस सौदे की घोषणा के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार पर अरबों का सौदा गुपचुप तरीके से करने का आरोप लगाया। कांग्रेस ने कहा कि यह मेक-इन-इंडिया की सबसे बड़ी असफलता है।
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जनवरी 2016 में भारत ने फ्रांस की डेसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल जेट का ऑर्डर दिया। साथ ही यह भी करार किया गया कि वो अपनी टेक्नोलॉजी डीआरडीओ, एचएएल और कुछ प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों से भी साझा करेगी। सितंबर 2016 में भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच एक एग्रीमेंट हुआ जिसे राफेल सौदा कहते हैं। इस सौदे के मुताबिक भारत को 36 रेडी टू फ्लाई एयरक्राफ्ट के लिए 58,000 करोड़ रुपये (7.8 बिलियन यूरो) अदा करने होंगे। इस रकम का 15 प्रतिशत एडवांस देना होगा। इस सौदे के मुताबिक भारत को स्पेयर और हथियार भी दिए जाएंगे।
नवंबर 2016 में इस राफेल सौदे पर राजनीतिक घमासान शुरू हुआ। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि 58,000 करोड़ रुपये का सौदा करके देश के करदाताओं के पैसे की बर्बादी की जा रही है। कांग्रेस ने यह भी दावा किया कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को गलत तरीके से फ्रांस की फर्म का इंडियन पार्टनर बनाया गया। कांग्रेस सरकार ने आरोप लगाया कि यूपीए सरकार ने जितने में यह सौदा 2012 में तय किया था उससे तीन गुना ज्यादा कीमत में मोदी सरकार ने सौदा किया।
रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस के इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है। उन्होंने कहा कि पिछली यूपीए सरकार ने 10 सालों से विमानों की खरीद लटका रखी थी, यह जानते हुए भी कि भारतीय वायुसेना को इसकी सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने यूपीए के मुताबले सस्ते में यह सौदा किया है। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वो बिना तथ्यों को जाने ही शोर मचा रहे हैं।
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कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि यूपीए सरकार में राफेल विमान की कीमत 526.1 करोड़ रुपये तय की गई थी जो कि मोदी सरकार में 1570.8 करोड़ हो गई। निर्मला सीतारमण ने इसका भी जवाब दिया, 'हमने यूपीए सरकार से कम पैसे में सौदा किया। सेना की मजबूती में कीमत रोना शर्मनाक है।' रक्षामंत्री ने संसद में कहा कि फ्रांस के साथ राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह दो सरकारों के बीच की गुप्त सूचना है।
20 जुलाई 2018 को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के फ्रांस दौरे पर ऐसा क्या जादू चला कि अचानक राफेल विमान की कीमत तीन गुना बढ़ गई। उन्होंने कहा कि मुझसे फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा कोई समझौता नहीं है जिससे विमान की कीमतों का खुलासा ना किया जा सके। राहुल गांधी के इस बयान पर बीजेपी ने आपत्ति जताई। कुछ देर बाद फ्रांस का आधिकारिक बयान आ गया जिसमें उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच करार है। निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह करार 2008 में यूपीए सरकार ने ही किया है जिसके तहत संवेदनशील सूचनाएं गुप्त रखी जाएंगी।
रक्षामंत्री के आरोपों पर पूर्व रक्षामंत्री एक एंटनी ने मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा कि 2008 में राफेल से कोई समझौता नहीं हुआ था। 2012 में राफेल को एल-1 के तौर पर चुना गया तब 18 राफेल विमान सीधे आने थे और बाकी एचएएल में बनने थे और राफेल बनाने वाली कंपनी तकनीक ट्रांसफ़र करती। पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि 2008 का कोई समझौता नहीं था इसलिए गोपनीयता की कोई शर्त नहीं थी।
इस बीच कांग्रेस लगातार सौदे की रकम को सार्वजनिक करने की मांग पर अड़ी है, जबकि मोदी सरकार दोनों देशों के बीच हुए सुरक्षा समझौते की गोपनीयता का हवाला दे रही है।
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