कैदियों की कैद की अवधि सार्वजनिक की जाए ताकि वे अपनी रिहायी संबंधी अधिकारों से अवगत हो सकें: न्यायालय

By भाषा | Published: July 29, 2021 08:07 PM2021-07-29T20:07:24+5:302021-07-29T20:07:24+5:30

Prisoners should be made public so that they can be aware of their release rights: Court | कैदियों की कैद की अवधि सार्वजनिक की जाए ताकि वे अपनी रिहायी संबंधी अधिकारों से अवगत हो सकें: न्यायालय

कैदियों की कैद की अवधि सार्वजनिक की जाए ताकि वे अपनी रिहायी संबंधी अधिकारों से अवगत हो सकें: न्यायालय

नयी दिल्ली, 29 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कैदियों की कैद की अवधि के बारे में विवरण सार्वजनिक किये जाने चाहिए ताकि ऐसे कैदियों को छूट, पैरोल और फरलो का लाभ उठाकर समय से पहले रिहायी के संबंध में उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कैदियों द्वारा जेल में बिताई गई सजा की अवधि के बारे में विवरण प्रदान करने के लिए एक पोर्टल बनाने पर दिल्ली सरकार से पहले ही जवाब मांगा है।

पीठ दिल्ली सरकार के इस तर्क से संतुष्ठ नहीं थी कि यदि कैद की अवधि जैसे विवरण सार्वजनिक किये जाते हैं, तो इससे कैदियों के निजता के अधिकार के उल्लंघन को लेकर कुछ चिंताएं हैं।

पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल जयंत सूद से कहा, ‘‘गोपनीयता के मुद्दे क्या हैं? हमें समझ में नहीं आता। नहीं, नहीं, यह आम जनता के लिए भी उपलब्ध होना चाहिए...मान लीजिए कि कोई व्यक्ति पिछले 20 वर्षों से जेल में है। क्या आपको नहीं लगता कि आपको उस व्यक्ति को पैरोल, फरलो का सहारा लेकर रिहायी की मांग करने के अधिकार के बारे में अवगत कराना चाहिए।’’

सुनवायी के दौरान, सूद ने कहा कि दिल्ली की जेलों में, 'ई-कियोस्क' स्थापित किए गए हैं, जहां कैदी खुद जा सकते हैं और कैद की अवधि जैसे विवरण की जांच कर सकते हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने बुधवार को कहा था, ‘‘मुझे संबंधित अधिकारियों की एक बैठक बुलाने और दोषियों को छूट का अनुरोध करने में मदद के लिए एक तंत्र विकसित करने के मुद्दे पर गौर करने दें।’’

पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 16 जुलाई, 2007 के एक आदेश के खिलाफ दायर मुकेश कुमार की अपील खारिज कर दी थी लेकिन उसने कैद की अवधि के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने संबंधी व्यापक मुद्दे पर विचार के लिये मामला लंबित रखा था।

उच्च न्यायालयने जुलाई 2007 के आदेश में मुकेश को हत्या के मामले में दोषी ठहराते हुये उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

पीठ इस मामले में अब चार सप्ताह बाद आगे सुनवाई करेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Prisoners should be made public so that they can be aware of their release rights: Court

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे