नयी दिल्ली, 30 सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि एहतियातन हिरासत का आदेश ऐसे ‘‘घिसे-पिटे और काल्पनिक’’ आधार पर कायम नहीं रह सकता, जिसका पहले हुई किसी पूर्वाग्रही गतिविधि से कोई वास्तविक संबंध नहीं हो।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदल और न्यायमूर्ति अनूप जे. भम्भानी की पीठ ने कहा कि चूंकि एहतियातन हिरासत महज संदेह पर आधारित कदम है, ऐसे में इसकी अनुमति सिर्फ तभी दी जा सकती है जब व्यक्ति की अतीत की गतिविधियों और उसे हिरासत में लेने की जरूरत के बीच कोई संबंध हो।
पीठ ने कहा, ‘‘एहतियातन हिरासत का आदेश घिसे-पिटे और काल्पनिक आधार पर कायम नहीं रह सकता है जिसका अतीत में की गई प्रतिकूल गतिविधियों के साथ कोई संबंध ना हो।’’
पीठ ने तस्करी निरोधी कानून के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ पारित एहतियातन हिरासत के आदेश को दरकिनार करते हुए उक्त टिप्पणी की।
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