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पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार कृष्ण बिहारी मिश्र का 90 साल की उम्र में निधन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 7, 2023 12:09 IST

कृष्ण बिहारी मिश्र का जन्म 1 जुलाई 1936 को बलिया के बलिहार में हुआ था। वे कोलकाता में ही रह रहे थे। उनके चार पुत्र और दो पुत्रियां हैं।

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ठळक मुद्देकृष्ण बिहारी मिश्र के निधन की जानकारी उनके पुत्र कमलेश मिश्र ने दी है।करीब एक महीने पहले उपचार के लिए कोलकाता के अस्पताल में भर्ती कराया गया था।रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर आत्मकथात्मक शैली में उन्होंने "कल्पतरु की उत्सवलीला" पुस्तक की रचना की थी। 

पद्मश्री से सम्मानित हिंदी के लोकप्रिय साहित्यकार डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र का 90 साल की उम्र में निधन हो गया है। कृष्ण बिहारी मिश्र के निधन की जानकारी उनके पुत्र कमलेश मिश्र ने दी है। वे पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। उन्हें कोलकाता के साल्टलेक स्थित एएमआरआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एक दिन पहले ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। हालांकि 6 और 7 मार्च की दरम्यानी रात में उनका निधन हो गया।

कृष्ण बिहारी मिश्र को श्रद्धांजलि देते हुए डॉ अमरनाथ ने लिखा- ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ के रूप में रामकृष्ण परमहंस की अद्भुत जीवनी के प्रणेता, पत्रकारिता की समीक्षा के विरल आचार्य और प्रतिष्ठित ललित निबंधकार पद्मश्री डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र का आज रात साढ़ें बारह बजे निधन हो गया। सुबह 6 बजे उनके बड़े बेटे कमलेश मिश्र ने मुझे यह खबर दी, जब मैंने कल की खबर जानने के लिए उन्हें फोन किया।

अमरनाथ ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में कृष्ण बिहारी श्रद्धांजलि देते हुए लिखा-  मिश्र जी में मुझे अपने गुरु आचार्य रामचंद्र तिवारी की छवि दिखायी देती थी। गाँव जाने से पहले गत 15 अगस्त 2022 को उनसे मिलने उनके नए फ्लैट में गया था जिसमें कुछ दिन पहले ही वे शिफ्ट हुए थे। अपना फ्लैट और कक्ष उन्हें पसंद आया था। किन्तु उनकी आँखों में मुझे उनकी पहले वाली अपनी उस कुटिया का मोह झाँकता हुआ दिखायी दिया था जिसमें चारो तरफ दीवालों के सहारे और अमूमन बेतरतीब सी किताबें बिखरी रहती थीं।

कृष्ण बिहारी मिश्र का जन्म 1 जुलाई 1936 को बलिया के बलिहार में हुआ था। उनकी आरंभिक पढ़ाई लिखाई गोरखपुर के एक मिशन स्कूल में हुई। पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था उनके बाबा ने की थी। बाबा के पास कई गांवों की जमींदारी थी। वे गांव के मालिक कहलाते थे। पिता कलकत्ता में व्यवसाय करते थे।

कृष्ण बिहारी का परिवार भी कोलकाता में ही रहता था। उनके चार पुत्र और दो पुत्रियां हैं। पश्चिम बंगाल के हिंदी जगत में वे काफी चर्चित थे। साहित्य में योगदान के लिए कृष्णबिहारी मिश्र को भारत सरकार ने 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। अभी नवंबर में ही उन्हें संस्कृति सौरभ सम्मान-4 से सम्मानित किया गया था।

 रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर आत्मकथात्मक शैली में उन्होंने "कल्पतरु की उत्सवलीला" पुस्तक की रचना की थी। अमरनाथ ने लिखा है कि  कृष्ण बिहारी मिश्र ने कभी कोई पत्रकारिता नहीं की, किसी अखबार या पत्रिका का संपादन नहीं किया किन्तु उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने अनुसंधान, अध्ययन और समीक्षण से एक कीर्तिमान बनाया। डॉक्टरेट की उपाधि के लिए शोध हेतु पत्रकारिता का क्षेत्र चुना।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के बाद ललित निबंधकारों के जो चंद नाम गिनाये जाते हैं उनमें मिश्र जी प्रमुख हैं। ‘बेहया का जंगल’, ‘अराजक उल्लास’, ‘नेह के नाते अनेक’ जैसी उनकी कृतियों के निबंध की काफी चर्चा रही। कृष्णबिहारी मिश्र ऐसे भाग्यशाली लेखकों में हैं जिन्होंने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी, आचार्य विश्वनाथपसाद मिश्र और आचार्य चंद्रबली पाण्डेय के सानिध्य में रहकर अध्ययन का संस्कार पाया है।

कृष्ण बिहारी के व्यक्तित्व के निर्माण में काशी और कलकत्ते की संयुक्त भूमिका रही है। वे कोलकाता जैसे महानगर में रहते हुए भी गाँव को जीते थे। बलिया के गांव के बाद बनारस में उनका मन रमता। लेकिन बदलते बनारस को लेकर उदास भी होते। व्यथा व्यक्त करते हुए लिखा था-  मेरा सर्वाधिक प्रिय नगर बनारस , व्यवसायवाद की गिरफ्त में आते ही मेरे लिए अनाकर्षक हो गया । … घाट पर, पान की दुकान पर, मंदिरों के परिसर में और हर गली, हर नुक्कड़ पर हमेशा थिरकती रहने वाली बनारसी मस्ती की खुशबू अब खोजे नहीं मिलती। सहज आत्मीयता की ऊष्मा बुझी – बुझी लग रही है...।

प्रमुख रचनाएंः

- कल्पतरु की उत्सव लीला (रामकृष्ण परमहंस)- जीवनी-मौन का सर्जनशील सौंदर्य (संस्मरण निबंध)-खोंइछा गमकत जाइ-न मेधया-फगुआ की तलाश में-बेहया का जंगल और नई-नई घेरान-मकान उठ रहे हैं-सइयाँ के जाए न देबों बिदेसवा

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