ट्रांसफर-पोस्टिंग की 434 सिफारिशों में से केवल 33 को संशोधित किया गया : महाराष्ट्र सरकार

By भाषा | Updated: November 26, 2021 20:43 IST2021-11-26T20:43:13+5:302021-11-26T20:43:13+5:30

Out of 434 recommendations on transfer-posting, only 33 have been revised: Maharashtra government | ट्रांसफर-पोस्टिंग की 434 सिफारिशों में से केवल 33 को संशोधित किया गया : महाराष्ट्र सरकार

ट्रांसफर-पोस्टिंग की 434 सिफारिशों में से केवल 33 को संशोधित किया गया : महाराष्ट्र सरकार

मुंबई, 26 नवंबर महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय को शुक्रवार को अवगत कराया कि पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के कार्यकाल के दौरान राज्य पुलिस अधिकारियों के तबादलों और पदस्थापना पर पुलिस स्थापना बोर्ड द्वारा की गई 400 सिफारिशों में से केवल 33 को ही संशोधित किया गया था।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खम्बाटा ने न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस. वी. कोतवाल की पीठ को बताया कि जब देशमुख राज्य के गृहमंत्री थे, तब संशोधित निर्णय राज्य पुलिस अधिकारियों के कुल तबादलों और पदस्थापना का महज ‘7.6 प्रतिशत’ है।

खम्बाटा राज्य के पूर्व गृह मंत्री देशमुख से संबंधित मसले पर पूछताछ के लिए राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और डीजीपी संजय पांडे को सीबीआई की ओर से जारी समन रद्द करने का अनुरोध कर रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने पूछा था कि कितने मामलों में गृह मंत्री ने आदेश को पलटा था? उनके (सीबीआई वकील के) पास कोई जवाब नहीं था। मैं आपको इसका जवाब दे रहा हूं। कृपया इसे अपनी (सीबीआई) जांच के लिए इस्तेमाल करें।’’

उन्होंने कहा, ‘‘स्थानांतरण के लिए कुल सिफारिशें 434 थीं, जिनमें से 33 मामलों में सक्षम प्राधिकारी द्वारा तबादलों और पदस्थापना में संशोधन किया गया था। यह महज 7.6 प्रतिशत है।’’

खम्बाटा ने आगे कहा कि सीबीआई ने पुलिस महानिदेशक पांडेय को तलब किया था, लेकिन देशमुख मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह एजेंसी की ओर से परेशान करने का तरीका है। उन्होंने कहा, ‘‘पांडेय ने राज्य के डीजीपी के तौर पर अप्रैल 2021 में प्रभार संभाला था और आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा, वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति हैं और जिन्होंने अपना ज्यादातर कार्यकाल पक्षपात और बार-बार किये जा रहे तबादलों के खिलाफ सरकार से लड़ते हुए बीता है।’’

राज्य सरकार के वकील खम्बाटा ने कहा कि सीबीआई के निदेशक सुबोध जायसवाल राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख के कार्यकाल में महाराष्ट्र के डीजीपी थे, इसलिए सीबीआई की जांच के लिए जायसवाल महत्वपूर्ण विषय थे।

खम्बाटा ने उच्च न्यायालय से जांच को एक विशेष जांच दल को स्थानांतरित करने और इसकी निगरानी के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति करने का आग्रह किया।

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने खम्बाटा की दलीलों का विरोध किया और कहा कि एजेंसी की जांच में कोई दुर्भावना नहीं है। उन्होंने कहा कि देशमुख की जांच जायसवाल की इच्छा के कारण नहीं, बल्कि पांच अप्रैल के उच्च न्यायालय के आदेश के बाद की जा रही थी।

उन्होंने यह भी कहा कि भले ही संशोधित सिफारिशें केवल सात प्रतिशत हों, फिर भी उनकी जांच जरूरी है। देशमुख के खिलाफ जांच जायसवाल की इच्छा से नहीं, बल्कि उच्च न्यायालय के पांच अप्रैल के आदेश के अनुसार हो रही है।

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