ओएनजीसी के मुंबई हाई और वसई ईस्ट को बेचने की थी तैयारी, विरोध के बाद टली योजना
By भाषा | Published: March 15, 2019 11:09 AM2019-03-15T11:09:11+5:302019-03-15T11:09:11+5:30
ओएनजीसी का कहना था कि उसने पिछले चार दशकों तक मेहनत तथा अरबों डालर निवेश कर जो खोज और विकास की है, उसे निजी/विदेशी कंपनियों को थाली में सजाकर नहीं दे सकती।
नयी दिल्ली, 14 मार्चः सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी की मुंबई हाई तथा वसई ईस्ट जैसे नौ बड़े तेल एवं गैस फील्डों को निजी और विदेशी कंपनियों को बेचने की योजना थी लेकिन सरकार के भीतर से ही प्रस्ताव के पुरजोर विरोध के बाद योजना को छोड़ दिया गया। सूत्रों ने यह जानकारी दी। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अध्यक्षता वाली उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने पिछले साल मुंबई हाई के पश्चिमी अपतटीय तेल एवं गैस फील्डों, हीरा, डी-1, वसई ईस्ट तथा पन्ना के साथ असम में ग्रेटर जोराजन तथा गेलेकी फील्ड, राजस्थान में बाघेवाला तथा गुजरात में कलोल फील्ड निजी / विदेशी कंपनियों को हस्तांतरित करने पर विचार किया था।
नीति आयोग तथा सरकार के कई सूत्रों ने कहा कि आयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) के साथ सरकार के भीतर ही कुछ तबकों के पुरजोर विरोध के कारण देश के मौजूदा तेल एवं गैस उत्पादन में 95 प्रतिशत का योगदान करने वाले इन फील्डों को निजी / विदेशी कंपनियों को नहीं दिया जा सका। उनका कहना था कि प्रस्ताव में कुछ चीजें नदारद हैं। इन नौ फील्डों के अलावा 49 छोटे क्षेत्रों को संकुल में रखकर नीलाम किया जाना था। इन फील्डों का कुल उत्पादन में करीब 5 प्रतिशत योगदान है।
ओएनजीसी का कहना था कि उसने पिछले चार दशकों तक मेहनत तथा अरबों डालर निवेश कर जो खोज और विकास की है, उसे निजी / विदेशी कंपनियों को थाली में सजाकर नहीं दे सकती। वहीं सरकार में शामिल कुछ इस बात से सहमत नहीं थे कि इससे उत्पादन की संभावना बढ़ेगी। उनका कहना था कि वास्तविक बेसिन या फील्ड अध्ययन के बिना बढ़े हुए उत्पादन आंकड़ों पर कैसे पहुंचा गया। प्रस्ताव समिति के समक्ष लाया गया था। समिति को फील्डों के बारे में निजी / विदेशी कंपनियों से बढ़े हुए उत्पादन का खाका प्राप्त करने के बाद उन्हें विपणन और कीमत में पूरी आजादी देनी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के पुराने पड़ चुके फील्डों से उत्पादन बढ़ाने के उपाय तलाशने को लेकर समिति गठित की थी। सूत्रों ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को सामान्य स्थिति में बढ़े हुए उत्पादन में 10 प्रतिशत हिस्सा मिलना था। निजी और विदेशी कंपनियों ने खोज जाने वाले ब्लाक लेने की जगह ओएनजीसी तथा आयल इंडिया लि. के उत्पादन वाले तेल एवं गैस फील्ड में हिस्सेदारी लेने के लिये जनसंपर्क शुरू किया। उनका कहना था कि वे पूंजी तथा प्रौद्योगिकी लाकर उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
वहीं सरकारी कंपनियों का कहना था कि उनके पास कीमत और विपणन का अधिकार नहीं है तथा वे भी प्रौद्योगिकी ला सकते हैं जो निजी कंपनियां ला सकती हैं। समिति ने 29 जनवरी को अंतिम रिपोर्ट दी और प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया। रिपोर्ट में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के लिये फील्डों के चयन, संयुक्त उद्यम बनाने आदि के मामले में आजादी देने की सिफारिश की।