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रेत पर पांव के निशानों को देख लोगों का पता लगाने में महारत हासिल रखने वाले ‘खोजी’ इंसान विलुप्त होने की कगार पर

By भाषा | Updated: December 25, 2019 15:02 IST

जैसलमेर जिले की इस सीमा चौकी से उन्होंने बताया कि सीमा सुरक्षा बल के पास सैकड़ों ‘खोजी’ होते थे जो पाकिस्तान के साथ लगने वाली 471 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुबह की पहली किरण के साथ गश्त किया करते थे लेकिन अब उनकी संख्या घट कर 25 हो गई है।

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ठळक मुद्दे‘खोजी’ राजस्थान के मरुस्थलों से गायब होते जा रहे हैं। ‘खोजी’ इंसान ही होते हैं जो रेत पर पड़े पांव के निशान से लोगों का पता लगाने में प्रशिक्षित होते हैं

रेत पर पांव के निशानों की जांच करते हुए लोगों का पता लगाने में महारत हासिल रखने वाले ‘खोजी’ राजस्थान के मरुस्थलों से गायब होते जा रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक अधिकारी ने बताया कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर बाड़ लगाई जाने और बेहद सख्त सुरक्षा के चलते अब ये दुर्लभ होते जा रहे हैं।

दरअसल ये ‘खोजी’ इंसान ही होते हैं जो रेत पर पड़े पांव के निशान से लोगों का पता लगाने में प्रशिक्षित होते हैं और उनमें किसी व्यक्ति के चलने के ढंग से उसकी पहचान करने की विलक्षण प्रतिभा होती है। अधिकारी ने  बताया, “यह थका देने वाला काम है जिसके लिए उच्च स्तर की बुद्धिमता, व्यक्ति के वजन का हिसाब लगाने की क्षमता और मरुस्थल की रेत पर छूटे पांव के विभिन्न निशानों के जरिए उसका पता लगाने की काबीलियत की जरूरत होती है।”

जैसलमेर जिले की इस सीमा चौकी से उन्होंने बताया कि सीमा सुरक्षा बल के पास सैकड़ों ‘खोजी’ होते थे जो पाकिस्तान के साथ लगने वाली 471 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुबह की पहली किरण के साथ गश्त किया करते थे लेकिन अब उनकी संख्या घट कर 25 हो गई है।

बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बाड़ से घेराव, राजस्थान में 1990 के मध्य में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तेज रोशनी की व्यवस्था और 24 घंटे निगरानी रखे जाने से सीमा-पार से अवैध आवाजाही घट कर शून्य हो गई है। बीएसएफ के पास बचे चंद ‘खोजियों’ में से एक नसीब सिंह ने कहा कि वह रोजाना सुबह पैदल गश्त करते हैं। 1988 में बल में शामिल हुए सिंह ने कहा, “प्रत्येक सैनिक हर ढाई घंटे में 10 किलोमीटर की दूरी तय करता है।”

सिंह ने कहा, “हर किसी का चलने का अलग-अलग तरीका होता है और किसी के पैर के निशान मुझे कई लोगों में उसकी पहचान करने में मदद करते हैं।” उन्होंने कहा कि पैरों के निशान की गहराई और जमीन पर कोई किस तरह से पैर रखता है, यह हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है।

अधिकारी ने बताया कि बीएसएफ कुछ स्थानीय लोगों को भी नौकरी देता है जो कई पीढ़ियों से ‘खोजी’ हैं और अपना कौशल अपने बच्चों को देते हैं। लेकिन कम जरूरत के चलते वे भी दुर्लभ होते जा रहे हैं और उनमें से कई दूसरे पेशे अपना रहे हैं।

उन्होंने बताया कि सीमा पार कर यहां के किसी क्षेत्र में आना बहुत मुश्किल है क्योंकि सीमा से सबसे पास के नगर की दूरी कई किलोमीटर है। अगर कोई आ भी जाता है तो सुबह की गश्त के दौरान खोजी पैरों के निशान का पीछा करते हैं और उस व्यक्ति को बाद में पकड़ लिया जाता है। भाषा नेहा शोभना शोभना

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