कन्हैया कुमार राजद्रोह मामले पर नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने लिखा था आर्टिकल, की थी अपने समय से तुलना

By रोहित कुमार पोरवाल | Published: October 15, 2019 03:52 PM2019-10-15T15:52:42+5:302019-10-15T15:52:42+5:30

अभिजीत बनर्जी ने लेख में 1983 का अपना वो वक्त याद किया था जब उन्हें अन्य छात्रों के साथ दस दिन के लिए दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में बंद होना पड़ा था। उन्होंने लेख में बताने की कोशिश की थी कि वर्तमान सरकार 1983 की कांग्रेस सरकार की तरह व्यवहार कर रही थी। 

Nobel laureate Abhijit Banerjee wrote an article on Kanhaiya Kumar treason case | कन्हैया कुमार राजद्रोह मामले पर नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने लिखा था आर्टिकल, की थी अपने समय से तुलना

नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी। (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

Highlightsभारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी ने 2016 में जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) के कन्हैया कुमार राजद्रोह मामले पर अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स में स्तंभ लिखा था। उन्होंने 'वी नीड थिंकिंग स्पेसेज लाइक जेएनयू एंड द गवर्नमेंट मस्ट स्टे आउट ऑफ इट' शीर्षक से लेख लिखा था जिसका मतलह होता है- हमें जेएनयू जैसी जगह की जरूरत है जहां सोच जा सकता है और सरकार इससे जरूर दूर रहना चाहिए।

भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी ने 2016 में जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) के कन्हैया कुमार राजद्रोह मामले पर अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स में स्तंभ लिखा था। बनर्जी ने जेएनयू के अपने समय से उस वक्त की तुलना की थी। उन्होंने 'वी नीड थिंकिंग स्पेसेज लाइक जेएनयू एंड द गवर्नमेंट मस्ट स्टे आउट ऑफ इट' शीर्षक से लेख लिखा था जिसका मतलह होता है- हमें जेएनयू जैसी जगह की जरूरत है जहां सोच जा सकता है और सरकार इससे जरूर दूर रहना चाहिए। 

अभिजीत बनर्जी ने लेख में 1983 का अपना वो वक्त याद किया था जब उन्हें अन्य छात्रों के साथ दस दिन के दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में बंद होना पड़ा था। उन्होंने लेख में बताने की कोशिश की थी कि वर्तमान सरकार 1983 की कांग्रेस सरकार की तरह व्यवहार कर रही थी।

उन्होंने लेख की शुरुआत में लिखा था- जेएनयू में मुझे एक और बड़ी पुलिस कार्रवाई याद है। 1983 की गर्मियों की बात है, हम जेएनयू के छात्रों ने कुलपति को उनके घर में लंबे समय तक घेरा था। कारण छात्र संघ के अध्यक्ष का निष्कासन था, जोकि कि तब के कन्हैया कुमार थे, अब मैं उन कारणों से बचता हूं। 

पुलिस देर दोपहरी में आई थी, उन्होंने कुलपति के घर को तोड़ा और उन्हें बाहर निकाला और हम में से कुछ छात्रों को धर लिया। 300 अन्य छात्रों की गिरफ्तारी हुई। हमें पीटा गया और तिहाड़ जेल भेजा गया, हम पर राजद्रोह का आरोप नहीं लगाया गया, बल्कि हत्या की कोशिश करने और अन्य गुनाहों को अंजाम देने का आरोप लगा था। परिणामस्वरूप हम से आरोप हट गए लेकिन तब तक हम लोग तिहाड़ जेल में दस दिन गुजार चुके थे। 

पुलिस की कार्रवाई तब केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार द्वारा प्रस्तावित थी जिसे ज्यादातर फैकल्टी का समर्थन मिला था। उनमें से वाइस चांसलर की तरह ज्यादातर लोग वाम दल के विशेष सदस्य थे। 

मुझे याद है कि तब कहा गया था कि छात्रों की इकाई उग्र हो चुकी है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। एक कारण यह भी था कि छात्र संघ अध्यक्ष एसएफआई और एआईएस यानी सीपीएम और सीपाआई दलों से नहीं था। जेएनयू की कट्टरपंथी दाखिला नीति के खिलाफ घटना हुई थी। इसके तहत उन छात्रों को प्रवेश नें सहूलियत दी जानी थी जिन्होंने स्कूल की पढ़ाई ग्रामीण इलाकों से की थी।

जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष को निकाले जाने के पीछ जानबूझकर उकसावे की कार्रवाई बताई गई थी। 

निस्संदेह सरकार अथॉरिटी की एक रेखा खींचना चाहती थी। वे हमें कह रहे थे हम बॉस हैं, चुप रहो और कायदे से पेश आओ। 

ऐसा लगता है कि वर्तमान घटना भी वैसी है और मुझे याद नहीं आ रहा है कि 1983 के उस मामले को लेकर गृहमंत्री ने कुछ कहा था और वकीलों द्वारा पत्रकार पीटे गए थे और न ही समूचे विपक्ष ने मामले पर रोटियां सेकी थीं। इस तरह यह प्रदर्शन कई मामले में उसी के जैसे था।

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Web Title: Nobel laureate Abhijit Banerjee wrote an article on Kanhaiya Kumar treason case

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