टायर फटना 'एक्ट ऑफ गॉड नहीं', बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला; बीमा कंपनी को पीड़ित के परिवार को 1.25 करोड़ रुपये देने का निर्देश, जानें पूरा मामला
By विनीत कुमार | Updated: March 12, 2023 13:06 IST2023-03-12T12:53:47+5:302023-03-12T13:06:34+5:30
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 13 साल पुराने एक मामले में अहम फैसला सुनते हुए कहा है कि सफर के समय गाड़ी का टायर फट जाना एक्ट ऑफ गॉड नहीं है। कोर्ट ने 2010 की एक दुर्घटना के मामले में फैसला सुनाते हुए एश्योरेंस कंपनी को मृतक के परिवार को मुआवजा देने का भी निर्देश दिया।

बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला (फाइल फोटो)
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक कार दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को मुआवजे देने के खिलाफ बीमा कंपनी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि टायर फटना 'एक्ट ऑफ गॉड' नहीं बल्कि मानवीय लापरवाही है।
जस्टिस एसजी डिगे की एकल पीठ ने 17 फरवरी के अपने आदेश में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के 2016 के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें पीड़ित मकरंद पटवर्धन के परिवार को 1.25 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
साल 2010 का है मामला, एक शख्स की हुई थी मौत
दुर्घटना का यह मामला करीब 13 साल पुराना है। दरअसल, 25 अक्टूबर, 2010 को पटवर्धन (38) अपने दो सहकर्मियों के साथ पुणे से मुंबई जा रहे थे। एक सहकर्मी, जिसकी कार थी वह तेज और लापरवाही भरी गति से ड्राइव कर रहा था। इसी दौरान कार का पिछला पहिया फट गया और कार गहरी खाई में जा गिरी। इस हादसे में पटवर्धन की मौके पर ही मौत हो गई थी।
ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा था कि मृतक अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था। बीमा कंपनी ने अपनी अपील में कहा था कि मुआवजे की राशि अत्यधिक है और टायर फटना एक्ट ऑफ गॉड है न कि चालक की लापरवाही।
'टायर फटना मानवीय लापरवाही'
हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि 'एक्ट ऑफ गॉड' के मायने अनियंत्रित प्राकृतिक आपदाएं हैं। अदालत ने कहा, 'यह एक गंभीर अप्रत्याशित प्राकृतिक घटना को संदर्भित करता है, जिसके लिए कोई भी इंसान जिम्मेदार नहीं होता। टायर के फटने को एक्ट ऑफ गॉड नहीं कहा जा सकता है। यह मानवीय लापरवाही की वजह से हुआ है।'
कोर्ट ने कहा कि टायर फटने के कई कारण हो सकते हैं- जैसे तेज रफ्तार, कम हवा, ज्यादा हवा या सेकेंड हैंड टायर और तापमान आदि। आदेश में कहा गया है, 'वाहन के चालक या मालिक को यात्रा करने से पहले टायर की स्थिति की जांच करनी होती है। टायर के फटने को प्राकृतिक कृत्य नहीं कहा जा सकता। यह मानवीय लापरवाही है।'
उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल टायर फटने को एक्ट ऑफ गॉड कहना बीमा कंपनी को मुआवजा देने से छूट का आधार नहीं हो सकता है।