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बुधवार को होगी चंद्रयान-3 की अग्निपरीक्षा, चंद्रमा की सतह से 100 किमी की कक्षा में प्रवेश करने वाला है मिशन

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: August 15, 2023 19:38 IST

चंद्रयान-3 को 100 किमी की वृत्ताकार कक्षा में ले जाने के लिए नौ से 17 अगस्त के बीच सिलसिलेवा प्रक्रियाएं अपनाई जानी थीं। इसमें से दो प्रक्रियाएं योजना के अनुसार सफलता पूर्वक अंजाम दी जा चुकी हैं।

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ठळक मुद्देचंद्रयान-3 अब अपने सबसे मुश्किल चरण में प्रवेश करने वाला हैचंद्रयान-3 बुधवार को एक बड़े ऑपरेशन से गुजरने के लिए तैयार हैचंद्रमा की सतह से 100 किमी की कक्षा में प्रवेश करने वाला है चंद्रयान-3

नई दिल्ली: भारत का महात्वाकांक्षी चंद्र मिशन चंद्रयान-3 अब अपने सबसे मुश्किल चरण में प्रवेश करने वाला है। चंद्रयान-3 बुधवार को एक बड़े ऑपरेशन से गुजरने के लिए तैयार है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इसकी कक्षा को चंद्रमा की सतह से 100 किमी ऊपर तक कम करने के लिए बुधवार को एक  महत्वपूर्ण प्रक्रिया को अंजाम देगा।

इससे पहले इसरो  ने 9 अगस्त और 14 अगस्त को इसकी कक्षा में बदलाव किया था। चंद्रयान-3 को 100 किमी की वृत्ताकार कक्षा में ले जाने के लिए नौ से 17 अगस्त के बीच सिलसिलेवा प्रक्रियाएं अपनाई जानी थीं। इसमें से दो प्रक्रियाएं योजना के अनुसार सफलता पूर्वक अंजाम दी जा चुकी हैं। 16 अगस्त को अपनाई जानी वाली प्रक्रिया  मिशन के अंतिम लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

14 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया चंद्रयान-3 लगातार अपने उद्देश्य की ओर आगे बढ़ रहा है। 5 अगस्त को चंद्र कक्षा में प्रवेश करने के बाद, अंतरिक्ष यान कक्षा की गतिविधियों की एक श्रृंखला में लगा हुआ है, जिससे धीरे-धीरे चंद्रमा से इसकी दूरी कम हो रही है।

चंद्रयान-3 की सबसे बड़ी चुनौती सॉफ्ट लैंडिंग ही है क्योंकि जब पिछली बार चंद्रयान-2 के लैंडर ने चंद्रमा पर उतरने की कोशिश की थी तब यह क्रैश हो गया था और मिशन में इसरो को कामयाबी नहीं मिली थी। इस बार इसरो ने सारी अनुमानित समस्याओं का पहले से ही अंदाजा लगा कर काफी तैयारी की है। 

इससे पहले इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ बता चुके हैं कि चंद्रयान-3 को चंद्रमा की 100 किलोमीटर कक्षा मे ले जाना बेहद अहम प्रक्रिया है और ये अभियान के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरने से कम नहीं है। हालांकि इसरो प्रमुख पहले ही साफ कर चुके हैं कि अगर सब कुछ विफल हो जाता है, अगर सभी सेंसर विफल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है, फिर भी यह (विक्रम) लैंडिंग करेगा। इसे इसी तरह डिज़ाइन किया गया है। इसरो प्रमुख ने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि बस प्रणोदन प्रणाली अच्छी तरह से काम करे।

इस बेहद खास मिशन पर सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया की निगाहें भी टिकी हुई हैं। भारत के चंद्र अभियान को जो बात सबसे खास बनाती है वह है उस जगह का चुनाव जहां आगामी 24 अगस्त को चंद्रयान 3 मिशन का रोबोटिक उपकरण उतरेगा। जिस जगह रोबोटिक उपकरण उतरेगा उसका नाम है शेकलटन क्रेटर (Shackleton Crater)। यह एक ऐसी जगह है जहां अब तक दुनिया के किसी भी देश ने अपना लैंडर उतारने का कारनामा नहीं किया है। 

शेकलटन क्रेटर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। इसकी स्थिति ऐसी है कि  क्रेटर के किनारे की चोटियाँ लगभग निरंतर सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहती हैं, आंतरिक भाग हमेशा छाया में रहता है। इसका कारण यह है कि चंद्रमा अपनी धुरी पर पृथ्वी की तुलना में केवल 1.5°, 23.5° पर थोड़ा झुका हुआ है। इस जगह का तापमान -267 डिग्री फारेनहाइट रहता है।

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