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Mirzapur Lok Sabha seat: इस बार राह आसान नहीं, अनुप्रिया पटेल के सामने सपा ने भाजपा सांसद रमेश बिंद को दिया टिकट, बहन पल्लवी ने दौलत सिंह पर खेला दांव

By राजेंद्र कुमार | Updated: May 27, 2024 18:13 IST

Mirzapur Lok Sabha seat: जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी अनुप्रिया पटेल के बयान से खफा होकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.

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ठळक मुद्देMirzapur Lok Sabha seat: तीसरी बार चुनाव जीतने के मंशा रखने वाली अनुप्रिया पटेल के लिए इस बार इस सीट से जीत उतनी आसान नहीं,Mirzapur Lok Sabha seat: अनुप्रिया पटेल को इस बार मिर्जापुर में कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है और जनता के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है.Mirzapur Lok Sabha seat: मिर्जापुर में पटेल मतदाता सर्वाधिक 3.50 लाख हैं. जबकि 90 हजार क्षत्रिय हैं.

Mirzapur Lok Sabha seat: केंद्र की मोदी सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल इस बार मिर्जापुर लोकसभा सीट पर जातीय चक्रव्यूह में फंस गई हैं. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भदोही से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रहे रमेश बिंद को मिर्जापुर सीट से चुनाव मैदान में उतारा कर अनुप्रिया को घेरने का दांव चला है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी इस सीट पर मनीष तिवारी उम्मीदवार बनाकर अनुप्रिया पटेल के विजय रथ को रोकने का प्रयास किया और अनुप्रिया पटेल की सगी बहन पल्लवी पटेल ने उनके खिलाफ दौलत सिंह पटेल को चुनाव मैदान में उतारकर उन्हे जातीय चक्रव्यूह में फंसा दिया है. जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी अनुप्रिया पटेल के बयान से खफा होकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.

कुल मिलाकर मिर्जापुर सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने के मंशा रखने वाली अनुप्रिया पटेल के लिए इस बार इस सीट से जीत उतनी आसान नहीं, जितनी पहले के चुनावों में थी. मिर्जापुर के रहने वाले इश्तियाक के अनुसार, भदोही जिले से वर्ष 2009 में अलग होने के बाद मिर्जापुर सीट कुर्मी बाहुल्य सीट हो गई तो इस सीट का जातीय समीकरण अपना दल (एस) के लिए मुफीद हो गया.

अनुप्रिया पटेल 2014 तथा 2019 का लोकसभा बड़े आराम से भाजपा के सहयोगी दल के रुप में जीता. परन्तु इस बार मिर्जापुर के लोग उनके क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों का हिसाब मांग रहे हैं. इस कारण से अनुप्रिया पटेल को अब यह बताना पड़ रहा है कि उन्होने जिले में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और केंद्रीय विद्यालय स्थापित कराया हैं.

उनके कार्यकाल में ही चुनार में गंगा नदी पर पक्का पुल बना और मां विंध्यवासिनी विश्वविद्यालय, इंडियन ऑयल डिपो तथा गंगा पर विंध्याचल के पास छह लेन के पुल पर कार्य चल रहा है. जबकि रमेश बिन्द और अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल मिर्जापुर की कालीन, पीतल और चुनार के मशहूर पाटरी उद्योग के चौपट होने का मुद्दा उठा रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि मोदी-योगी सरकार ने यहां के समुचित विकास की ओर ध्यान नहीं दिया. यहां के जो छोटे-मोटे उद्योग थे, वे अब बंद होने की कगार पर हैं.

यही नहीं मिर्जापुर की ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों की हालत खस्ता है, इसे सुधारने का प्रयास अनुप्रिया पटेल और उनके पति आशीष पटेल ने नहीं किया, जबकि आशीष पटेल भी योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री है. ऐसे आरोपों के चलते ही अनुप्रिया पटेल को इस बार मिर्जापुर में कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है और जनता के सवालों का जवाब उन्हें देना पड़ रहा है.

राजा भैया के समर्थकों को मनाने में जुटी अनुप्रिया

मिर्जापुर में पटेल मतदाता सर्वाधिक 3.50 लाख हैं. जबकि 90 हजार क्षत्रिय हैं. करीब डेढ़ लाख ओबीसी तथा डेढ़ लाख वैश्य मतदाता हैं. यह जानते हुए भी अनुप्रिया पटेल ने राजा भैया को भड़काने वाला बयान दिया. जिसके चलते ही अनुप्रिया पटेल को मिर्जापुर में इस बार राजा भैया के नाराज समर्थकों को भी मानना पड़ रहा है.

अनुप्रिया पटेल ने बीते दिनों राजा भैया पर प्रतापगढ़ में अनुचित टिप्पणी की थी. उन्होंने प्रतापगढ़ जाकर यह कहा था कि अब राजा लोकतंत्र में रानी के पेट से  पैदा नहीं होता है. अब राजा ईवीएम के बटन से पैदा होता है. स्वघोषित राजाओं को लगता है कि कुंडा उनकी जागीर है. उनके भ्रम को तोड़ने का अब आपके पास बहुत बड़ा और सुनहरा अवसर है.

अनुप्रिया के इस कथन से राजा भैया खफा हुए, उसी के बाद मिर्जापुर में ठाकुर समाज ने अनुप्रिया की खिलाफत करनी शुरू कर दी है. तो अब अनुप्रिया पटेल राजा भैया के समर्थकों को मनाने में जुटी हैं. वही दूसरी तरफ पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अनुप्रिया पटेल की जीत को सुनिश्चित करने के लिए चुनावी सभा चुके हैं.

फिलहाल इस सीट पर अनुप्रिया की चुनावी जंग सपा के रमेश बिन्द से हो रही हैं. और दोनों पक्ष के उम्मीदवार अपनी-अपनी जातियों, अन्य पिछड़ा और दलित जातियों के सहारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि दलित मतदाताओं का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं दिख रहा है.

अगर बसपा उन्हें साधने में कामयाब रही, तो हार-जीत का अंतर कम हो सकता है. और यदि रमेश बिन्द आरक्षण खत्म करने तथा संविधान के मुद्दे पर इन्हें समझाने और रिझाने में सफल हुए तो अनुप्रिया की चुनौतियां और बढ़ जाएंगी.

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