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कोरोना संक्रमण का खतरा 82% तक हो जाएगा कम, जब अपनाएंगे यह तरीका, 16 देशों में की गई 172 स्टडीज

By गुणातीत ओझा | Updated: June 4, 2020 11:30 IST

16 देशों में की गई 172 स्टडीज के एनालिसिस के अनुसार 1 मीटर की दूरी कोरोना के खतरे को 82% तक कम कर सकती है। डब्ल्यूएचओ ने भी गाइडलाइन जारी कर कोरोना के खतरे से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे जरूरी बताया था।

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ठळक मुद्दे16 देशों में की गई 172 स्टडीज के एनालिसिस के अनुसार 1 मीटर की दूरी कोरोना के खतरे को 82% तक कम कर सकती है।डब्ल्यूएचओ ने भी गाइडलाइन जारी कर कोरोना के खतरे से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे जरूरी बताया था।

नई दिल्ली।कोरोना वायरस से बचने के उपाय खोजने में पूरी दुनिया लगी हुई है। ज्यादातर देश अब इस खतरनाक संक्रमण चपेट में आ चुके हैं। दुनिया भर में 64,74,000 से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। संक्रमण पर ब्रेक लगाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग है। लैंसेट पत्रिका में छपी एक खबर के मुताबिक 16 देशों में की गई 172 स्टडीज के एनालिसिस के अनुसार 1 मीटर की दूरी कोरोना के खतरे को 82% तक कम कर सकती है। डब्ल्यूएचओ ने भी गाइडलाइन जारी कर कोरोना के खतरे से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे जरूरी बताया था।

छींकने-खांसने से 8 मीटर तक जाता है वायरस

इस स्टडी में यह भी बताया गया है कि संक्रमित व्यक्ति छींक या खांसी से निकलने वाली संक्रमण की बूंदें करीब 8 मीटर तक जा सकती हैं। इस संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही चेहरे पर मास्क लगाना जरूरी है। कोरोना संक्रमित व्यक्ति से 1 मीटर से ज्यादा दूरी बनाकर रखने पर संक्रमण का खतरा 3 फीसद तक कम हो सकता है।

वैज्ञानिकों ने भारत में एक अलग तरह के कोरोना वायरस का पता लगाया

हैदराबाद स्थित सेलुलर और आणविक जीव विज्ञान के लिये केंद्र (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने देश में कोविड-19 से संक्रमित लोगों में एक अलग तरह के कोरोना वायरस का पता लगाया है। यह दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु और तेलंगाना में ज्यादातर पाया गया है। वैज्ञानिकों ने वायरस के इस अनूठे समूह को ‘क्लेड ए3आई’ नाम दिया है, जो भारत में जीनोम (जीनों के समूह) अनुक्रम के 41 प्रतिशत में पाया गया है। वैज्ञानिकों ने 64 जीनोम का अनुक्रम तैयार किया। सीसीएमबी ने ट्वीट किया, ‘‘भारत में सार्स-सीओवी2 के प्रसार के जीनोम विश्लेषण पर एक नया तथ्य सामने आया है। नतीजों से यह यह प्रदर्शित हुआ कि विषाणु का एक अनूठा समूह भी है और यह भारत में मौजूद है। इसे क्लेड ए3आई नाम दिया गया है।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि यह समूह फरवरी 2020 में विषाणु से उत्पन्न हुआ और देश भर में फैला। इसमें भारत से लिये गये सार्स-सीओवी2 जीनोम के सभी नमूनों के 41 प्रतिशत और सार्वजनिक किये गये वैश्विक जीनोम का साढ़े तीन प्रतिशत है।’’

कोरोना को आगे बढ़ाने वाले आनुवांशिक कोड का पता चला

शोधकर्ताओं ने नोवेल कोरोना वायरस के आनुवंशिक कोड के एक खास हिस्से की पहचान की है, जो इसके जीवन चक्र को आगे बढ़ाता है। माना जा रहा है कि यह खोज कोविड-19 के उपचार के लिए दवा बनाने में मददगार साबित होगी। तोक्यो विश्वविद्यालय के शोधकर्ता नोबुयोशी अकीमित्सू समेत वैज्ञानिकों ने बताया कि इन्फ्लूएंजा वायरस और कोरोना वायरस समेत वायरस की कई प्रजातियां आरएनए के रूप में अपने आनुवंशिक अनुक्रम को इकट्ठा करती हैं, जो मानव कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं और वहां वायरस की संख्या बढ़ाते हैं। शोधकर्ता ने बताया कि वायरस को अपने आप को स्थिर रखने के लिए अपने आरएनए की जरूरत होती है, ताकि वे मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता से खुद को बचा सकें। यह अध्ययन जर्नल बायोकेमिकल एडं बायोफिजिकल रिसर्च कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने आनुवांशिक अनुक्रम के भविष्य का पता लगाने के लिए ‘फेट-सीक्’ नामक नयी तकनीक का इस्तेमाल किया। इससे पता चल सकेगा कि क्या आनुवांशिक अनुक्रम बना रहेगा या समाप्त हो जाएगा। शोधकर्ता ने कहा कि इन खोज से कोविड-19 जैसी संक्रमक बीमारी के उपचार का पता लगाने में मदद मिलेगी।

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