मेघालय ने न्यायालय में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को उचित ठहराया

By भाषा | Updated: March 24, 2021 22:47 IST2021-03-24T22:47:58+5:302021-03-24T22:47:58+5:30

Meghalaya justifies over 50 per cent reservation in court | मेघालय ने न्यायालय में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को उचित ठहराया

मेघालय ने न्यायालय में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण को उचित ठहराया

नयी दिल्ली, 24 मार्च मेघालय सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि राज्य में असाधारण परिस्थितियों, विशिष्ट चरित्र और आदिवासियों की 85 फीसदी से अधिक आबादी को ध्यान में रखते हुए 50 फीसदी से अधिक आरक्षण उचित है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के समक्ष जिरह करते हुए मेघालय के महाधिवक्ता अमित कुमार ने कहा कि 1992 का इंदिरा साहनी फैसला (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) मामले पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है। इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई थी।

उन्होंने पीठ से कहा कि 2001 की जनगणना के मुताबिक मेघालय में आदिवासियों की आबादी 85.9 फीसदी है। पीठ में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति रविंद्र भट भी शामिल थे।

इंदिरा साहनी फैसले का जिक्र करते हुए कुमार ने कहा कि मेघालय में असाधारण परिस्थितियां हैं और राज्य में 50 फीसदी की सीमा लागू करने योग्य नहीं है।

पीठ ने कई अन्य राज्यों एवं पक्षों की तरफ से पेश हुए वकीलों के तर्क को भी सुना। मामले में जिरह बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।

केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को कहा कि महाराष्ट्र के पास मराठाओं को आरक्षण देने की विधायी क्षमता है और इसका निर्णय संवैधानिक है, क्योंकि 102वां संशोधन किसी राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची घोषित करने की शक्ति से वंचित नहीं करता।

वर्ष 2018 में लाए गए 102वें संविधान संशोधन कानून में अनुच्छेद 338 बी, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, दायित्वों और शक्तियों से संबंधित है, तथा अनुच्छेद 342ए, जो किसी खास जाति को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा घोषित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से संबंधित है, लाए गए थे।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि एसईबीसी कानून 2018 के मद्देनजर महाराष्ट्र द्वारा राज्य में नौकरियों और दाखिलों में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देना संवैधानिक है।

मेहता ने कहा, ‘‘केंद्र का मत है कि महाराष्ट्र एसईबीसी कानून संवैधानिक है।’’

उन्होंने कहा कि केंद्र अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के अभिवेदनों को स्वीकार करता है और इसे केंद्र सरकार का मत माना जाना चाहिए।

अटॉर्नी जनरल ने 18 मार्च को शीर्ष अदालत से कहा था कि संविधान का 102वां संशोधन राज्य विधायिकाओं को एसईबीसी निर्धारित करने और उन्हें लाभ देने के लिए कानून लाने से वंचित नहीं करता।

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Web Title: Meghalaya justifies over 50 per cent reservation in court

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