नर्मदा चुनौती सत्याग्रह: मेधा पाटकर का अनशन छठे दिन भी जारी, सीएम के आग्रह से किया इनकार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 30, 2019 08:36 PM2019-08-30T20:36:29+5:302019-08-30T20:36:29+5:30
मेधा पाटकर से मध्य प्रदेश सरकार ने अनशन खत्म करने के लिए कहा लेकिन 'नर्मदा बचाओ' अभियान की नेता ने प्रभावितों के पुनर्वास की ठोस योजना के अभाव में राज्य सरकार की बात मानने से इनकार कर दिया।
नर्मदा चुनौती सत्याग्रह के तहत नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर का अनशन छठे दिन भी जारी है. प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पाटकर से अनशन समाप्त करने का आग्रह किया, जिसे पाटकर ने प्रभावितों के पुनर्वास की ठोस योजना के अभाव में अस्वीकार कर दिया गया.
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के अंजड़ तहसील के छोटा बड़दा में सरदार सरोवर बांध के प्रभावितों के विस्थापितों की मांगों को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं के साथ मेधा पाटकर अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी है.
उनके अनशन का आज छठवां दिन था. अनशन के छठवें दिन राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उनकी बिगड़ी तबीयत को देखते हुए अनशन समाप्त करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इसके साथ ही कार्यकर्ताओं ने संघर्ष को और तेज करते हुए 10 प्रभावितों ने भी अनिश्चितकालीन अनशन प्रारंभ कर दिया है.
मेधा पाटकर के साथ भगवती पाटीदार, निर्मला यादव, सुभद्रा बाई, राधाबाई, समोतीबाई, भगवान पाटीदार, भुवान, किशोर, जितेन्द्र कहार और धीरज भी अनशन पर बैठ गए हैं.
मेधा पाटकर की तबीयत को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पाटकर से अनशन समाप्त करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इसके पूर्व प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन ने छोटा बड़दा पहुंच कर पाटकर से अपना अनशन समाप्त करने का आग्रह किया था, जिसे पाटकर ने अस्वीकार कर दिया क्योंकि जलस्तर एक निश्चित स्तर पर नियंत्रित करने की ठोस बात नहीं कही ताकि प्रभावित परिवार पुनर्वास होने तक अपने गांवों में सुरक्षित निवास कर सकें.
आंदोलनकारियों का कहना है कि केंद्र और गुजरात सरकार 192 गांवों और एक नगर को बिना पुनर्वास डुबाने की साजिश रच रहा है, जबकि वहां आज भी 32,000 परिवार रहते हैं. इस स्थिति में बांध में 138.68 मीटर पानी भरने से 192 गांव और एक नगर की जल हत्या होगी.
बांध में 134 मीटर पानी भरने से कई गांव जलमग्न हो गए हैं. हजारों हेक्टेयर जमीन डूब गई. गांववालों का आरोप है कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के बावजूद कई विस्थापितों को अभी तक 60 लाख रुपये नहीं मिले, कई घरों का भू-अर्जन भी नहीं हुआ.