मध्यप्रदेश किसान प्रदर्शन : कार्यकर्ताओं ने नजरबंद करने का आरोप लगाया, पुलिस का इनकार
By भाषा | Updated: June 26, 2021 23:06 IST2021-06-26T23:06:51+5:302021-06-26T23:06:51+5:30

मध्यप्रदेश किसान प्रदर्शन : कार्यकर्ताओं ने नजरबंद करने का आरोप लगाया, पुलिस का इनकार
भोपाल, 26 जून केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने के अवसर पर विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे कार्यकर्ताओं ने शनिवार को दावा किया कि मध्यप्रदेश पुलिस ने उन्हें घर में नजरबंद कर दिया है। हालांकि, पुलिस अधिकारियों ने इस आरोप का खंडन किया है।
राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिव कुमार शर्मा ‘‘कक्काजी’’ ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उन्हें नजरबंद करने के इरादे से सुबह करीब साढ़े आठ बजे उनके घर के बाहर पुलिस की तैनाती कर दी गई।
शर्मा ने कहा, ‘‘ उन्होंने (पुलिस) मुझे नजरबंदी के बारे में नहीं बताया, लेकिन मैंने महसूस किया कि उनका इरादा मुझे घर के अंदर रखने का था। मेंरे कई सहयोगियों ने बताया कि उनके घरों में भी ऐसी ही स्थिति थी और पुलिस बाहर मौजूद थी। दोपहर 12.30 बजे एक प्रतिनिधिमंडल को एक सरकारी कार्यालय में ज्ञापन देने के लिए जाने की अनुमति दी गई।’’
अखिल भारतीय किसान सभा के बादल सरोज ने एक बयान में कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा की मेधा पाटकर और डॉ सुनीलम सहित 100 से अधिक कार्यकर्ताओं और किसानों को गांधी भवन में शाम चार बजे तक नजरबंद रखा गया।
बयान में दावा किया गया कि कार्यकर्ताओं और किसानों के बहुत आग्रह के बाद पुलिस ने केवल पांच लोगों को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपने की अनुमति दी।
सरोज ने कहा, ‘‘ लेकिन प्रतिनिधिमंडल को पुलिस ने राजभवन में प्रवेश नहीं करने दिया और मुख्य दरवाजे से ही लौटना पड़ा।’’
आरोपों का खंडन करते हुए भोपाल रेंज के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) ए साई मनोहर ने ‘पीटीआई- भाषा’ को बताया कि किसी भी कार्यकर्ता को नजरबंद नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘ महामारी के प्रोटोकॉल के कारण कोई आंदोलन संभव नहीं है। कार्यकर्ता नजरबंद हुए तो राजभवन के दरवाजे तक कैसे पहुंचे। किसी को भी घर में नजरबंद नहीं किया गया।’’
इस बीच, शर्मा ने कहा कि बंगाल में विरोध करने वाले किसान अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी हिस्सा लेंगे। उन्होंने कहा कि वे किसी पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे बल्कि केन्द्र द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के जनविरोधी स्वभाव से लोगों को अवगत कराएंगे।
उन्होंने दावा किया कि इन नए कानूनों के कारण सरसों के तेल की कीमत 70 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 200 रुपये प्रति लीटर हो गई है क्योंकि यह कानून व्यापारियों और कॉरपोरेट्स को असीमित मात्रा में कृषि उपज जमा करने की अनुमति देते हैं।
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