मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव: कांग्रेस को शिवराज से सत्ता छीननी है तो भेदने होंगे बीजेपी के 80 'अभेद्य दुर्ग'
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 28, 2018 08:08 AM2018-08-28T08:08:16+5:302018-08-28T08:08:16+5:30
मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव इस साल के अंत तक हो सकते हैं। राज्य में कुल 230 विधान सभा सीटों के लिए चुनाव होते हैं। राज्य में अकेले दम पर सरकार बनाने के लिए 116 सीटों पर जीत हासिल करना जरूरी है।
मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों अपनी-अपनी कमर कस चुके हैं। बीजेपी राज्य में 15 सालों से सत्ता में है तो कांग्रेस राज्य में सत्ता-विरोधी लहर की सवारी गाँठ कर वापसी की उम्मीद कर रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अप्रैल में प्रदेश के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाकर साफ कर दिया कि वो राज्य की सत्ता में वापसी को लेकर गम्भीर है।
मध्य प्रदेश की राजनीति के जानकार मानते हैं कि कांग्रेस ने कमलनाथ और सिंधिया को समय रहते ये पद देकर दो मुश्किलों से छुटकारा पाने की कोशिश की है।
एक, राज्य कांग्रेस की आपसी गुटबाजी पर लगाम लगाना। दो, शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के तौर पर सम्भावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार का चेहरा पेश करना।
लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार कांग्रेस और मध्य प्रदेश की सत्ता के बीच सबसे बड़ी मुश्किल गुटबाजी या मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं बल्कि कुछ और ही है।
कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल
कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल मध्य प्रदेश की वो 80 विधान सभा सीटें हैं जिनपर पिछले कुछ चुनावों में उसे ज्यादातर हार ही मिलती रही है।
राज्य में कुल 230 विधान सभा सीटों के लिए चुनाव होते हैं। सरकार बनाने के लिए 116 विधायकों के समर्थन की जरूरत होती है।
ये वो विधान सभा सीटें हैं जो बीजेपी का अभेध्य गढ़ बनी हुई हैं।
मध्य प्रदेश की करीब 50 ऐसी विधान सभा सीटें ऐसी हैं जिनपर कांग्रेस को दो या तीन चुनाव पहले जीत मिली थी।
राज्य के 17 जिलों में करीब 24 विधान सभा सीटों पर कांग्रेस पिछले 25 सालों से जीत के लिए तरस रही है। राज्य में कुल 52 जिले हैं।
इन सीटों पर कांग्रेस 1993 और 1998 में भी जीत नहीं हासिल कर सकी थी जबकि दोनों ही चुनावों में उनसे राज्य में सरकार बनायी थी।
जिन 24 सीटों पर कांग्रेस को पाँच-छह विधान सभा चुनावों से हार मिल रही है उनमें हरसूद और खंडवा विधान सभा सीटें शामिल हैं।
हरसूद विधान सभा से 1990 से ही कुँअर विजय शाह जीतते आ रहे हैं। शाह इस सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं। शाह इस समय शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट में शिक्षा मंत्री हैं।
इंदौर है बीजेपी का मजबूत गढ़
जिन 24 सीटों पर कांग्रेस पिछले दो-ढाई दसकों से जीत के लिए तरस रही है उनमें बाबुलाल गौर की परंपरागत सीट गोविंदपुरा (भोपाल) भी शामिल है। गौर 1980 से ही इस सीट से जीत रहे हैं।
इसी तरह इंदौर-2 सीट से कैलाश विजयवर्गीय 1993 से 2003 तक जीतते रहे और उनके बाद रमेश मंदौला इस सीट पर जीते।
इंदौर-4 सीट पर 1990 से ही बीजेपी का कब्जा है। इस सीट से कैलाश विजयवर्गीय, लक्ष्मणसिंह गौर और मालिनी गौर जीत चुकी हैं।
ऐसी सीटों में भिंड जिले की महगाँव विधान सभा और मुरैना की अम्बाह विधान सभा, शिवपुरी जिले की शिवपुरी और पोहरी विधान सभा सीटें शामिल हैं।
सागर जिले की रेहली और सागर सीटें भी बीजेपी के कब्जे में दो दशकों से ज्यादा समय से हैं।
सतना जिले की रायगाँव और रामपुर बघेलन विधान सभा सीटें, रीवा जिले की देवतालाब और त्योंथर विधान सभा सीटें, अषढ़ा और सिहोर विधान सभा सीटों पर भी बीजेपी को दो दशक से जीत मिलती आ रही है।
अशोक नगर विधान सभा, छतरपुर की महराजपुर विधान सभा, सिओनी की बरघाट विधान सभा, जबलपुर जिले की जबलपुर कैंट विधान सभा और होशंगाबाद जिले की सोहागपुर विधान सभा भी बीजेपी का अभेद्य गढ़ बनी हुई हैं।
सीटें जिन पर कांग्रेस दो-तीन चुनावों से हार रही है
मध्य प्रदेश की करीब 50 ऐसी सीटें हैं जिनपर कांग्रेस दो या तीन चुनावों से हार रही है। ऐसी ज्यादातर सीटें मालवा-निमार, सेंट्रल मध्य प्रदेश और महाकौशल क्षेत्र में स्थित हैं।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार इन सीटों पर कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण उसका चुनाव से पहले ही हार मान लेना है।
जानकारों के अनुसार कांग्रेस ने इनमें से ज्यादातर सीटों पर पिछले कुछ चुनावों में आधे-अधूरे मन से चुनाव लड़ा था।
देखना ये है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस अपना पुराना रवैया बदलती है या मध्य प्रदेश में चौथी बार शिवराज के सिर पर ही ताज सजेगा।