लोकसभा चुनावः उत्तर प्रदेश में दो सीटों की सियासी पहेली क्या है? क्या इस बार भी बीजेपी को मिलेगा गैर-भाजपाई वोटों के बिखराव का फायदा? 

By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 11, 2019 04:10 PM2019-03-11T16:10:53+5:302019-03-11T16:10:53+5:30

अखिलेश यादव का कहना है कि कांग्रेस के प्रमुख नेता- राहुल गांधी और सोनिया गांधी को बीजेपी घेरने में कामयाब नहीं हो जाए, इसलिए ये सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी गई है, लेकिन इसके सियासी मायने कुछ और भी हैं.

Lok Sabha Election 2019: What is the political puzzle of the two seats in Uttar Pradesh? | लोकसभा चुनावः उत्तर प्रदेश में दो सीटों की सियासी पहेली क्या है? क्या इस बार भी बीजेपी को मिलेगा गैर-भाजपाई वोटों के बिखराव का फायदा? 

लोकसभा चुनावः उत्तर प्रदेश में दो सीटों की सियासी पहेली क्या है? क्या इस बार भी बीजेपी को मिलेगा गैर-भाजपाई वोटों के बिखराव का फायदा? 

यूपी में सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस को नजरअंदाज करके बहुत बड़ी पॉलिटिकल रिस्क ले ली है. यह तो पहले ही लग रहा था कि यूपी के इस सियासी समीकरण से बीजेपी को लोस चुनाव में राहत मिलेगी, लेकिन ताजा सर्वे पर भरोसा करें तो इससे पीएम मोदी को केन्द्र की सत्ता से बेदखल करने के विपक्षी इरादे भी ढेर हो जाएंगे. हांलाकि, एकतरफा सपा-बसपा गठबंधन करने के बावजूद सपा प्रमुख अखिलेश यादव बार-बार यह कह रहे हैं कि कांग्रेस गठबंधन में साथ है और कांग्रेस के लिए यूपी में दो सीटें- अमेठी और रायबरेली छोड़ी गई हैं. सवाल यह है कि- ये दो सीटों की सियासी पहेली क्या है?

वैसे तो अखिलेश यादव का कहना है कि कांग्रेस के प्रमुख नेता- राहुल गांधी और सोनिया गांधी को बीजेपी घेरने में कामयाब नहीं हो जाए, इसलिए ये सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी गई है, लेकिन इसके सियासी मायने कुछ और भी हैं. यह इसलिए भी है कि- इस बार केन्द्र में गठबंधन की सरकार बनने की संभावना है और किसी विषम सियासी परिस्थिति में मायावती या मुलायम सिंह यादव को भी पीएम बनने का अवसर मिल सकता है. यदि कांग्रेस के साथ बेहतर संबंध नहीं रहे तो ऐसी स्थिति में सपा-बसपा के लिए केन्द्र में कांग्रेस का समर्थन हांसिल करना मुश्किल हो जाएगा.

यह एक सियासी संदेश भी है कि- कांग्रेस भी सपा और बसपा के प्रमुख नेताओं के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारे. कांग्रेस ने यह साफ भी कर दिया है कि वह भी सपा-बसपा गठबंधन के लिए दो-तीन सीटें छोड़ देगी. सपा-बसपा गठबंधन, कांग्रेस को साथ नहीं लेना चाहता है, इसके दो बड़े कारण हैं, एक- गठबंधन में कांग्रेस के जुड़ने से कांग्रेस की लोस सीटें तो बढ़ जाएंगी, लेकिन सपा और बसपा की सीटें कम हो जाएंगी, ऐसी स्थिति में सपा-बसपा लोस में सियासी ताकत क्या दिखाएंगी, और दो- यूपी में कांग्रेस को फिर से मजबूती से खड़े होने का अवसर मिल जाएगा, जो भविष्य में सपा-बसपा के लिए ही बड़ा सियासी सवाल होगा.

इधर, लोकसभा चुनाव का एलान हो चुका है. सभी सियासी दल पूरी तरह से चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं, लेकिन अभी तक सामने आए सर्वे पर भरोसा करें तो- इस बार किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है.

एक मीडिया ग्रुप के सर्वे के अनुसार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन लोस चुनाव में बहुमत से थोड़ा दूर रहेगा, किन्तु गठबंधन के जरिए सरकार बना लेगा. इसमें सबसे खास बात यूपी को लेकर है. सर्वे में एनडीए को 264 सीटें मिल रही हैं, तो यूपीए को 141 सीटें और शेष दलों को 138 सीटें मिलने का अनुमान है. लेकिन, यदि यूपी में महागठबंधन नहीं होता है, तो एनडीए को 307 सीटें मिल सकती हैं, जबकि यूपीए को महज 139 सीटों से संतोष करना पड़ेगा. शेष दलों के खाते में 97 सीटें जा सकती हैं.

सर्वे की माने तो यूपी में महागठबंधन होता है, तो बीजेपी को मात्र 29 सीटें ही मिल सकती है, जबकि महागठबंधन नहीं होने की स्थिति में बीजेपी 2014 के बराबर- 72 सीटों पर कब्जा कर सकती है. बहरहाल, इस बार लोस चुनाव की सारी राजनीतिक गणित यूपी के सियासी समीकरण पर निर्भर है. यदि बीजेपी यूपी में कामयाब हो गई, तो नरेन्द्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री होंगे और यदि यूपी में बीजेपी नाकामयाब हो गई, तो केन्द्र की सत्ता से बाहर हो जाएगी!

Web Title: Lok Sabha Election 2019: What is the political puzzle of the two seats in Uttar Pradesh?