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ग्राउंड रिपोर्ट: बेगूसराय के भूमिहार कन्हैया या गिरिराज किसकी तरफ?

By निखिल वर्मा | Updated: April 28, 2019 14:18 IST

पिछली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले भोला सिंह भूमिहार जाति से थे। बेगूसराय के बरौनी प्रखंड स्थित बीहट पंचायत के निवासी कन्हैया कुमार भी भूमिहार जाति से आते हैं। इस सीट पर करीब 4.5 लाख भूमिहार वोटर हैं।

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ठळक मुद्देबीजेपी से नवादा के सांसद गिरिराज सिंह इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। कन्हैया जलेवार भूमिहार है। जिले में 50 फीसदी ज्यादा जलेवार भूमिहार हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार का बेगूसराय जिला लगातार चर्चाओं में बना हुआ है। इस सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह, सीपीआई के कन्हैया कुमार और महागठबंधन के डॉक्टर तनवीर हसन के बीच मुकाबला है। यहां वोट चौथे चरण में यानि 29 अप्रैल को डाला जाएगा।

बेगूसराय में भूमिहार वोट निर्णायक

पिछली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले भोला सिंह भूमिहार जाति से थे। बेगूसराय के बरौनी प्रखंड स्थित बीहट पंचायत के निवासी कन्हैया कुमार भी भूमिहार जाति से आते हैं। इस सीट पर करीब 4.5 लाख भूमिहार वोटर हैं। इस बार बीजेपी से नवादा के सांसद गिरिराज सिंह इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। कट्टर हिन्दूवादी नेता की पहचान बना चुके गिरिराज भी भूमिहार जाति से आते हैं। 

बीएचयू से पढ़े रामदीरी गांव के डॉक्टर नीलेश कुमार के अनुसार, कन्हैया जलेवार भूमिहार है। जिले में 50 फीसदी ज्यादा जलेवार भूमिहार हैं। बेगूसराय संसदीय सीट का इतिहास रहा है कि यहां से जलेवार भूमिहार ही जीतते आए हैं। कन्हैया को इसका फायदा मिलेगा। गिरिराज दिघवे भूमिहार हैं। 

सवर्णों को कन्हैया से सहानुभूति

पिछले साल जेल से निकलने के बाद कन्हैया ने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मिलकर उनका आर्शीवाद लिया था। इसके बाद से उम्मीद जताई जा रही थी कि कन्हैया महागठबंधन से उम्मीदवार होंगे। हालांकि महागठबंधन में सिर्फ आरा सीट वामदलों को मिली। 

मटिहानी विधानसभा के बीरपुर के पूर्व प्रखंड प्रमुख मदन मोहन प्रसाद सिंह कहते हैं, महागठबंधन से टिकट नहीं मिलने के कारण लोगों के बीच कन्हैया के प्रति सहानुभूति है। लोगों को लग रहा है कि बेगूसराय जिले से उभरते हुए नेता कन्हैया को जानबूझकर टिकट नहीं दिया गया।

डॉक्टर नीलेश कुमार के अनुसार, पाटलिपुत्र सीट पर लालू यादव की बेटी मीसा भारती चुनाव लड़ रही है, वहां भाकपा-माले का भी जनाधार है। मीसा के लिए आरजेडी ने पटना के बगल वाली सीट आरा माले को दी है। लेकिन बेगूसराय सीट जहां सीपीआई का जनाधार रहा है, वो सीट सीपीआई को नहीं दी गई। इससे लोगों के बीच गलत मैसेज गया। लोकमत से विशेष बातचीत में भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने भी कहा था, उनकी पार्टी ने आरा के बदले मीसा भारती के लिए पाटलिपुत्र सीट छोड़ा है।

हालांकि कई लोग गिरिराज को चुनावी दौड़ में सबसे आगे बता रहे हैं। बेगूसराय विधानसभा के पचंबा गांव के रहने वाले लाल मोहन सिंह का दावा है कि गांव में करीब 2300 वोट है। इसमें 60 फीसदी से ज्यादा वोट बीजेपी के पक्ष में जा सकता है।

जेडीयू-कांग्रेस के वोटर्स असमंजस में

इस सीट पर जेडीयू से 2009 में डॉक्टर मोनाजिर हसन जीत चुके हैं। बेगूसराय में करीब 4 लाख कुर्मी-कुशवाहा है। बछवाड़ा विधानसभा के जोकिया गांव के रजनीश कुमार सिंह का कहते हैं, "महागठबंधन से नीतीश कुमार के अलग होने के बाद कुर्मी मतदाताओं के बीच असमंजस की स्थिति है। यहां की उच्च जातियों के लोग अति पिछड़ों को ताना देते है कि नीतीश को लाइन पर ला दिए ना। इस बार ये स्थिति है कि अति पिछड़े जो नीतीश के वोटबैंक हैं, उनका कुछ हिस्सा कन्हैया कुमार को जा सकता है।"

बीरपुर के पूर्व प्रखंड प्रमुख मदन मोहन प्रसाद सिंह कहते हैं, बीजेपी के गिरिराज सिंह को हराने के लिए कांग्रेस का सवर्ण वोट सीपीआई की ओर झुक सकता है। विपक्षी वोट को लेकर आम धारणा है कि जो गिरिराज को हराएगा, वोट उसकी तरफ जाएगा, चाहे वह कन्हैया हो या तनवीर।

डॉक्टर नीलेश कुमार कहते हैं, जिस गांव में सीपीआई और बीजेपी में लड़ाई है वहां भूमिहार वोट बीजेपी को जाएगा। लेकिन जिस गांव में सीपीआई की लड़ाई कांग्रेस से है, वहां वोट कन्हैया को पड़ेगा।

तेजस्वी के खिलाफ सवर्णों में गुस्सा

जिले के भूमिहार आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बयानों से नाराज हैं। उनका कहना है कि लालू यादव से आर्शीवाद मिलने के बावजूद तेजस्वी ने जानबूझकर महागठबंधन से कन्हैया को टिकट नहीं दिया। कांग्रेस को मिलने वाला भूमिहार वोट तनवीर हसन को मिल सकता था, लेकिन तेजस्वी के एक ट्विट को लेकर भी भूमिहार लोगों के बीच नाराजगी है। ट्विट में तेजस्वी ने नीतीश-गिरिराज की फोटो के साथ कैप्शन लगाया है-"सुनो सामंती जमींदार विषराज सिंह"।

इस बार बेगूसराय में सभी पार्टियों के परंपरागत वोटों में सेंधमारी की स्थिति है। स्थानीय समीकरणों में हुए बदलाव के चलते सभी वोटबैंक टूटते हुए नजर आ रहे हैं। अब इसका फायदा किसे मिलेगा और नुकसान किसका होगा ये 23 मई को चुनाव परिणाम बाद आने के बाद ही स्पष्ट होगा।

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