पत्नी को तलाक दिये बगैर दूसरी महिला के साथ व्यक्ति का रहना 'लिव-इन-रिलेशनशिप' नहीं- उच्च न्यायालय

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 14, 2023 08:02 PM2023-11-14T20:02:34+5:302023-11-14T20:04:09+5:30

न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी की एकल पीठ ने पंजाब के एक युगल की याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा मांगी थी। अदालत ने कहा कि ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ में रह रही महिला अविवाहित है, जबकि पुरुष विवाहित है और तनावपूर्ण संबंधों को लेकर अपनी पत्नी से अलग रह रहा है।

living with another woman without divorcing wife is not a 'live-in-relationship' High Court | पत्नी को तलाक दिये बगैर दूसरी महिला के साथ व्यक्ति का रहना 'लिव-इन-रिलेशनशिप' नहीं- उच्च न्यायालय

(फाइल फोटो)

Highlightsपंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अहम फैसला दियापत्नी को तलाक दिये बगैर दूसरी महिला के साथ रहने को ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ नहीं मानाउच्च न्यायालय ने कहा कि यह आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 494/495 के तहत दंडनीय अपराध हो सकता है

चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपनी पत्नी को तलाक दिये बगैर दूसरी महिला के साथ एक व्यक्ति के ‘वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन’ जीने को ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ या शादी जैसा संबंध नहीं कहा जा सकता। 

न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी की एकल पीठ ने पंजाब के एक युगल की याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा मांगी थी। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि वे ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ में हैं, जिससे महिला के परिवार के सदस्यों को शिकायत है और उन्होंने उन्हें जान से मारने की धमकी दी है।

सुनवाई के दौरान, अदालत ने कहा कि ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ में रह रही महिला अविवाहित है, जबकि पुरुष विवाहित है और तनावपूर्ण संबंधों को लेकर अपनी पत्नी से अलग रह रहा है। ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ में रह रहे व्यक्ति और उसकी पत्नी के दो बच्चे हैं, जो अपनी मां के साथ रहते हैं। अदालत ने कहा, "अपने पहले पति/पत्नी से तलाक का कोई वैध (अदालती) निर्णय प्राप्त किए बिना और अपनी पिछली शादी के अस्तित्व में रहने के दौरान, याचिकाकर्ता नंबर 2 (लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाला पुरुष), याचिकाकर्ता नंबर 1 (लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला) के साथ वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहा है।"

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 494/495 के तहत दंडनीय अपराध हो सकता है, क्योंकि ऐसा संबंध विवाह की श्रेणी में नहीं आता है। अदालत ने यह भी पाया कि जीवन को खतरा होने के आरोप मामूली और अस्पष्ट हैं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने ऐसी कोई सामग्री रिकार्ड में नहीं रखी है जो आरोपों का समर्थन करता हो, ना ही धमकियों के तौर-तरीकों से जुड़े एक भी दृष्टांत का विवरण उपलब्ध किया गया। इसने कहा, "इस आलोक में, ऐसा लगता है कि व्यभिचार के मामले में किसी आपराधिक अभियोजन को टालने के लिए, मौजूदा याचिका दायर की गई। अदालत का मानना है कि इसके रिट क्षेत्राधिकार की आड़ में याचिकाकर्ताओं का छिपा हुआ मकसद अपने आचारण पर इसकी (अदालत की) मुहर लगवाना है।" अदालत ने कहा कि इस अदालत ने राहत प्रदान करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं पाया है, इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है।  

(इनपुट- भाषा)

Web Title: living with another woman without divorcing wife is not a 'live-in-relationship' High Court

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