डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: असली हत्यारा तो बिगड़ैल बेटे का बाप है
By विजय दर्डा | Published: May 27, 2024 06:31 AM2024-05-27T06:31:31+5:302024-05-27T06:31:31+5:30
अब वह समय आ गया है जब नाबालिगों के संबंध में कानून की नए सिरे से रचना की जानी चाहिए। हर साल तीस हजार से ज्यादा नाबालिगों पर मुकदमे दर्ज होते हैं और 90 फीसदी मामलों में दोष साबित भी होता है। और ये अपराध करने वाले अनाथ बच्चे नहीं होते बल्कि ज्यादातर बच्चे वो होते हैं जो माता-पिता के साथ रहते हैं।
मैं दुखी हूं, मैं दर्द में हूं, दिल रो रहा है। मुझे अचरज हो रहा है, मैं अचंभित हूं और भीषण आक्रोश में भी हूं। इतनी सारी भावनाएं एक साथ शायद ही किसी के जेहन में कभी उभरती हैं! लेकिन पुणे की यह घटना है ही ऐसी कि किसी के भी जेहन को झकझोर कर रख दे।
ये दुख, ये दर्द और ये दिल का रोना पुणे में अपना भविष्य बनाने आए मध्यप्रदेश के दो युवा इंजीनियरों अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा के लिए है और आक्रोश उस रईसजादे पर आ रहा है जो 18 मई की देर रात मदहोशी की हालत में था और दोनों इंजीनियरों को अपने बाप की तेज रफ्तार करोड़ों की कार से उड़ा दिया।
हैरत तो मुझे इस बात को लेकर है कि गिरफ्तारी के बाद उसे ताबड़तोड़ जमानत भी मिल गई! और जमानत की शर्तें तो देखिए कि नाबालिग अभियुक्त को 15 दिन तक ट्रैफिक पुलिस के साथ चौराहे पर खड़े होकर ट्रैफिक संचालन में मदद करनी होगी। ट्रैफिक नियमों को समझने के बाद एक रिपोर्ट आरटीओ को सौंपनी होगी। सड़क दुर्घटनाओं और समाधान पर 300 शब्दों का निबंध लिखना होगा। शराब की लत छोड़ने के लिए इलाज कराना होगा और व्यसन मुक्ति केंद्र की मदद लेनी चाहिए। और अंतिम शर्त है कि भविष्य में वह कोई दुर्घटना देखे तो दुर्घटना पीड़ितों की मदद करनी होगी!
शर्ते मजाक जैसी लगती हैं लेकिन क्या कीजिएगा, किशोर न्याय अधिनियम की व्याख्या ही ऐसी है। दो लोगों की मौत के जिम्मेदार का मैं सार्वजनिक रूप से नाम भी नहीं लिख सकता क्योंकि कानून इसकी इजाजत नहीं देता है! मैं मानता हूं कि यदि किसी किशोर से अनजाने में कोई अपराध हो जाता है तो उसे सुधरने का मौका मिलना ही चाहिए लेकिन जब कोई नाबालिग रईसजादा शराब के नशे में धुत्त होकर इतना बड़ा कांड कर देता है तो उसे नाबालिग क्यों माना जाए? उसका बाप विशाल अग्रवाल ही बेटे को नाबालिग नहीं मानता इसीलिए तो दोस्तों के साथ नशे में धुत्त होने की इजाजत देता है, ड्राइविंग लाइसेंस के बगैर बिना नंबर प्लेट वाली नई-नवेली महंगी कार उसे सौंप देता है।
रात ढाई बजे भी उसे घर से बाहर रहने की इजाजत देता है। जब वह दो लोगों को उड़ा देता है तो उसे बचाने की कोशिश करता है। दादा सुरेंद्र अग्रवाल ड्राइवर को आरोप अपने सिर पर ले लेने के लिए बहलाता और धमकाता है, दो दिन बंद करके रखता है। लोकप्रतिनिधियों के माध्यम से वह पुलिस पर दबाव बनाता है। कमाल देखिए कि लोकप्रतिनिधि ने एक आरोपी को बचाने की कोशिश की। भला हो लोगों की जागरूकता और मीडिया की सक्रियता का कि यह मामला दबने नहीं पाया, नहीं तो अग्रवाल अपने बेटे को निर्दोष बचा ले जाता!
असली सवाल है कि जब बाप अपने बेटे को और दादा अपने पोते को नाबालिग नहीं माने तो फिर कानूनी फायदा क्यों मिलना चाहिए? विशाल अग्रवाल के बेटे की हरकतें भी नाबालिग वाली कहां थीं। दोस्तों के साथ एक बार में आधी रात बाद तक विभिन्न तरह की शराब पीता रहा। वहां से निकलने के बाद वह दूसरे पब में जाकर और मदहोश हो गया। क्या कोई नाबालिग ऐसी हरकतें करता है?
सवाल यह भी है कि दो शराबखानों (बार और पब) में उसे प्रवेश कैसे मिला? हालांकि हल्ला मचने के बाद होटल कोजी के मालिक प्रह्लाद भूतड़ा, प्रबंधक सचिन काटकर, होटल ब्लैक के मालिक संदीप सांगले और बार प्रबंधक जयेश बोनकर लपेटे में आए हैं लेकिन इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि कानूनी प्रावधान कुछ भी रहे, शराबघर चलाने वाले अपने आंगन में बस पियक्कड़ों के स्वागत का लक्ष्य रखते हैं। जेब में भरपूर पैसा होना चाहिए, वक्त कुछ भी हो, शराब मिलेगी! ये हाल केवल पुणे या महाराष्ट्र के शराबघरों का नहीं बल्कि पूरे देश के शराबघरों का है।
विशाल अग्रवाल का बेटा जिस अत्यंत महंगी कार को अंधाधुंध रफ्तार से चला रहा था, उसका रजिस्ट्रेशन भी नहीं हुआ था। नियमत: डीलर ग्राहक के हवाले कार तभी करता है जब रजिस्ट्रेशन हो जाता है। मुंबई के डीलर ने रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पूरी किए बिना ही अग्रवाल को कार सौंप दी थी क्योंकि उसके रुतबे के कारण सभी नतमस्तक थे। सवाल तो यह भी है कि क्या कुछ पुलिस वालों ने आरोपी को वीआईपी ट्रीटमेंट दिया? पुलिस एक व्यापक शब्द है लेकिन मैं सीपी अमितेश कुमार की दक्षता को बखूबी जानता हूं। वे अच्छे अच्छों के छक्के छुड़ा देते हैं। आरोपी के बाप को गिरफ्तार करने के बाद दादा सुरेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।
जांच में लापरवाही बरतने वाले दो पुलिसकर्मियों को सीपी ने निलंबित भी कर दिया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने भी सख्त रवैया अपनाया है। और आप जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि पुणे की इस घटना के बारे में चर्चा विदेश में भी हो रही है। अमेरिका-मैक्सिको की यात्रा के दौरान क्यूबा के एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि आपके यहां इस तरह के आरोपी को बचाने की कोशिश क्यों होती है? मैक्सिको के एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि मानवीयता के मामले में आपके पीएम पहले और हमारे पीएम दूसरे क्रम पर हैं, फिर ऐसे नियम क्यों नहीं बदले जाते?
मुझे लगता है कि अब वह समय आ गया है जब नाबालिगों के संबंध में कानून की नए सिरे से रचना की जानी चाहिए। आप शायद भूले नहीं होंगे कि निर्भया के साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी एक नाबालिग ने की थी। दिल्ली के एक स्कूल में नाबालिग ने गला रेत कर नाबालिग की हत्या कर दी थी। चंडीगढ़ में एक नाबालिग ने नाबालिग बच्ची के साथ दो बार बलात्कार किया था। ऐसी घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है। हर साल तीस हजार से ज्यादा नाबालिगों पर मुकदमे दर्ज होते हैं और 90 फीसदी मामलों में दोष साबित भी होता है। और ये अपराध करने वाले अनाथ बच्चे नहीं होते बल्कि ज्यादातर बच्चे वो होते हैं जो माता-पिता के साथ रहते हैं। इसलिए माता-पिता की जिम्मेदारी है कि बच्चों का खयाल रखें, उन पर नियंत्रण रखें। विशाल अग्रवाल की तरह बेटे को बिगड़ैल न बनाएं। पुणे मामले में मुझे बेटे से बड़ा अपराधी तो उसका बाप और दादा नजर आता है।