संसद में बहस न होना खेदजनक स्थिति है: प्रधान न्यायाधीश रमण

By भाषा | Updated: August 15, 2021 17:39 IST2021-08-15T17:39:57+5:302021-08-15T17:39:57+5:30

Lack of debate in Parliament is a regrettable situation: Chief Justice Ramana | संसद में बहस न होना खेदजनक स्थिति है: प्रधान न्यायाधीश रमण

संसद में बहस न होना खेदजनक स्थिति है: प्रधान न्यायाधीश रमण

नयी दिल्ली, 15 अगस्त प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने रविवार को कहा कि देश में कानून बनाने की प्रक्रिया एक ‘‘खेदजनक स्थिति’’ में है क्योंकि संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस नहीं होने के कारण कानूनों के कई पहलू अस्पष्ट रह जाते हैं।

न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि कानून बनाने की प्रक्रिया के दौरान एक विस्तृत चर्चा मुकदमेबाजी को कम करती है क्योंकि जब अदालतें उनकी व्याख्या करती हैं तो, ‘‘हम सभी को विधायिका की मंशा पता होती है’’। प्रधान न्यायाधीश 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ द्वारा आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे।

न्यायमूर्ति रमण की यह टिप्पणी संसद के हंगामेपूर्ण मॉनसून सत्र की पृष्ठभूमि में आई है, जब पेगासस जासूसी विवाद, कृषि कानूनों, मूल्य वृद्धि और अन्य मुद्दों पर विपक्ष के लगातार विरोध प्रदर्शन के बीच कई विधेयक बिना किसी बहस के पारित कर दिये गए। संसद निर्धारित तिथि के दो दिन पहले 13 अगस्त को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई थी।

सीजेआई की अहम टिप्पणियां एक ऐसे मामले के संबंध में भी महत्वपूर्ण है, जिसमें न्यायाधिकरण के गठन को लेकर मामला हालांकि शीर्ष अदालत के समक्ष विचाराधीन है, लेकिन केंद्र ने आगे बढ़कर संसद में बिना किसी चर्चा के न्यायाधिकरण से संबंधित एक संशोधन विधेयक पारित करा लिया। विधेयक के जरिये उन प्रावधानों को बहाल किया गया, जिन्हें उच्चतम न्यायालय ने रद्द किया था।

प्रधान न्यायाधीश ने साथ ही विधि जगत के सदस्यों से सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने और कानूनों के बारे में अपने अनुभव साझा करने का आह्वान किया।

न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि देश के लंबे स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व वकीलों ने किया है। उन्होंने कहा, ‘‘चाहे वह महात्मा गांधी हों या बाबू राजेंद्र प्रसाद, वे कानूनी दिग्गज थे, जिन्होंने अपनी संपत्ति, परिवार एवं जीवन का त्याग किया और आंदोलन का नेतृत्व किया।’’

उन्होंने बार सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पहली लोकसभा और राज्यसभा के अधिकतर सदस्य वकील और कानूनी समुदाय के सदस्य थे। दुर्भाग्य से, हम जानते हैं कि कानूनों पर बहस के संबंध में संसद में अब क्या हो रहा है।’’ उन्होंने कहा कि पहले विभिन्न संवैधानिक संशोधनों और उनके कारण लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव पर संसद में बहस हुआ करती थी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘बहुत पहले, मैंने औद्योगिक विवाद अधिनियम पेश किए जाते समय एक बहस देखी थी और तमिलनाडु के एक सदस्य ने इस बात को लेकर कानून पर विस्तार से चर्चा की थी कि कानून मजदूर वर्ग को कैसे प्रभावित करेगा। इससे अदालतों पर बोझ कम हुआ था, क्योंकि जब अदालतों ने कानून की व्याख्या की, तो हम सभी विधायिका की मंशा से अवगत थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब स्थिति खेदजनक है। बहस की कमी के कारण कानून बनाने की प्रक्रिया में बहुत सारी अस्पष्टताएं होती हैं। कानूनों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं होती। हम नहीं जानते कि विधायिका का इरादा क्या है। हम नहीं जानते कि कानून किस उद्देश्य से बनाए गए हैं। इससे लोगों को बहुत असुविधा होती है। ऐसा तब होता है, जब कानूनी समुदाय के सदस्य संसद और राज्य विधानमंडलों में नहीं होते हैं।’’

न्यायमूर्ति रमण ने इस दौरान वकीलों से कहा, ‘‘अपने को अपने पेशे, पैसा कमाने और आराम से रहने तक सीमित नहीं रखें। कृपया इस पर विचार करें। हमें सार्वजनिक जीवन में सक्रिय तौर पर शामिल होना चाहिए। कुछ अच्छी सेवा करिये और अनुभव देश के साथ साझा करिये। उम्मीद है देश में इससे अच्छाई आएगी।’’

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने देश में सक्रिय भूमिका निभाई है और संविधान ने जितना सोचा है, उससे कहीं अधिक दिया है, लेकिन वह विधि बिरादरी से अधिक योगदान की उम्मीद करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘छोटे मुद्दे हैं लेकिन न्याय की जरूरत वाले लगभग 75 प्रतिशत लोगों को कानूनी सहायता मिली है। आप (वकील) सभी को कानूनी सहायता आंदोलन में भाग लेना चाहिए। हम 26 और 27 नवंबर को कानूनी सहायता के संबंध में संविधान दिवस पर दो दिवसीय कार्यशालाएं आयोजित कर सकते हैं।’’

शुरुआत में, सीजेआई ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है और सभी के लिए नीतियों पर पुनर्विचार करने और समीक्षा करने का अवसर है कि ‘‘हमने क्या हासिल किया है और भविष्य में हमें क्या हासिल करना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘देश के इतिहास में 75 साल कम समय नहीं होता, लेकिन हमें अपने देश के विशाल परिदृश्य और उसकी भौगोलिक स्थिति पर भी विचार करना होगा।’’ प्रधान न्यायाधीश ने अपना बचपन याद करते हुए बताया कि उन्हें स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गुड़ और मुरमुरे दिए जाते थे।

उन्होंने कहा, ‘‘तब से काफी विकास हो गया है। उस समय स्कूल में दी जाने वाली छोटी चीजें भी हमें खुशी देती थीं, लेकिन आज जब हमारे पास कई सुविधाएं हैं, तो हम खुश नहीं है।’’

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए एम खानविलकर एवं न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन कई वकीलों और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों के साथ इस अवसर पर उपस्थित थे। इस अवसर पर मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश भारतीय कानूनी समुदाय के 'कर्ता' हैं और इसलिए वह और कुछ नहीं कहना चाहते। प्रधान न्यायाधीश ने इस अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, जिसके बाद एक पुलिस बैंड ने राष्ट्रगान की धुन बजाई।

एससीबीए अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि देश अपना 75 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। उन्होंने इस मौके की शोभा बढ़ाने के लिए प्रधान न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को धन्यवाद दिया।

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