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#KuchhPositiveKarteHain: सरस्वती राजमणि- भारत की सबसे कम उम्र की वो जासूस, जिसकी 'चाल' के सामने अंग्रेज हुए फेल

By विनीत कुमार | Updated: August 5, 2018 11:58 IST

हमलोगों में से भले ही कई लोग राजमणि की कहानी नहीं जानते लेकिन भारत की आजादी में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता।

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भारत की आजादी की कहानी हम सभी जानते हैं। कई वीरों और जोशीले मिजाज के लोगों ने आजादी की लड़ाई की नींव रखी और फिर इसे अंजाम तक पहुंचाया। इन लड़ाई में हालांकि, कई ऐसे लोगों का भी योगदान है, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है या फिर वे इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गए। इनमें से ही एक हैं- सरस्वकी राजमणि। केवल 16 साल की उम्र में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में उनके इंडिया नेशनल आर्मी से जुड़ने वाली इस वीरांगना को भारत की पहली महिला जासूस कहें तो कम नहीं होगा।

सरस्वती राजमणि का जन्म 1927 में बर्मा (अब म्यांमार) में हुआ। उनका परिवार उस समय आजादी की लड़ाई का हिस्सा था। जाहिर है, इस माहौल का प्रभाव सरस्वती के युवा मन पर भी पड़ा। दरअसल, राजमणि के पिता आजादी की लड़ाई में जुटे थे और अंग्रेज सरकार की गिरफ्तारी की तलवार उन पर भी लटक रही थी। इसलिए वे बर्मा में आकर बस गये थे। राजमणि केवल 10 की थी जब उन्हें पहली बार महात्मा गांधी से मिलने का मौका मिला।

उस समय राजमणि का पूरा परिवार गांधी जी से मिलना गया था। पूरा परिवार जब गांधी जी से मिल रहा था तभी उन्हें ख्याल आया कि राजमणि तो उनके बीच में है ही नहीं। खोजबीन शुरू हुई और फिर पता चला कि 10 साल की ये बच्ची बगीचे में शूटिंग का अभ्यास कर रही थी।

गांधी जी ने जब ये देखा तो राजमणि से पूछा कि उन्हें बंदूक क्यों चाहिए। इस पर इस बच्ची ने कहा, 'अंग्रेजों को मारने के लिए।'

इस पर गांधी जी ने समझाया, 'हिंसा किसी बात का जवाब नहीं है। हम अहिंसा के सहारे अंग्रेजों से लड़ रहे हैं। आपको भी यही करना चाहिए।'

इस पर राजमणि बोलीं कि अंग्रेज भारत को लूट रहे हैं और जब वे बड़ी होंगी तो कम से कम एक अंग्रेज को जरूर मारेंगी।

सुभाष चंद्र से मिलकर आजादी की लड़ाई में हुईं शामिल

राजमणि जब युवा हो रही थीं, उस दौरान उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके इंडियन नेशनल आर्मी के बारे में काफी कुछ सुना। राजमणि केवल 16 साल की थीं, जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नेताजी फंड इकट्ठा करने और युवाओं की अपने सेना में भर्ती के लिए रंगून गये। यहीं नेताजी के भाषण से प्रभावित होकर राजमणि ने उनके साथ जुड़ने का फैसला किया।

राजमणि ने अपने सारे महंगे आभूषण और सोना इंडियन नेशनल आर्मी को दान कर दिया। इसके बारे में जब नेताजी को मालूम हुआ तो वे खुद राजमणि के घर उनके आभूषण लौटाने गये। राजमणि ने हालांकि इसे वापस लेने से इंकार कर दिया। इसे देख नेताजी ने कहा, 'लक्ष्मी (पैसा) आती है और जाती है लेकिन सरस्वती नहीं। तुम्हारे पास सरस्वती जैसी बुद्धि है। इसलिए मैं तुम्हारा नाम सरस्वती रखता हूं।'

यहीं से राजमणि का नाम सरस्वती हो गया। इसके बाद राजमणि ने नेताजी से उन्हें अपनी सेना में शामिल होने को कहा और सुभाष चंद्र बोस इससे इंकार नहीं कर सके। बोस ने राजमणि को आईएनए के इंटेलिजेंस विंग में जगह दी।

जब राजमणि की बहादुरी से प्रभावित हुए नेताजी

नेताजी की सेना के इंटेलिजेंस विंग से जुड़ने के बाद राजमणि और उनकी कुछ महिला दोस्त लड़कों के रूप में अंग्रेजों की सेना के कैम्प और दूसरे अधिकारियों के कैम्प में काम करने लगीं और बड़ी जानकारियां लीक करने लगीं। इस यूनिट को निर्देश थे कि वे किसी भी हालत में पकड़े नहीं जाएं। हालांकि, एक लड़की पकड़ी गई और फिर राजमणि ने अपनी जान खतरे में डाल कर उसे बचाने का फैसला किया।

राजमणि फिर बेहद चालाकी से एक अंग्रेज अफसर को नशीली दवा देकर अपनी साथी को छुड़ाने में कामयाब रहीं। हालांकि, भागने के दौरान राजमणि के पैर में गोली लग गई। बहते हुए खून के बावजूद राजमणि नहीं रूकीं और अपनी दोस्त के साथ एक पेड़ पर चढ़ गईं। तीन दिनों तक दोनों उसी पेड़ पर रहे। दूसरी ओर नीचे ब्रिटिश सेना दोनों की खोजबीन करती रही। आखिरकार तीन दिन बाद मौका पाकर यह दोनों भागने में कामयाब रहे। गोली के घाव के कारण राजमणि का एक पैर खराब हो गया और वे ठीक से नहीं चल सकती थी। इसके बावजूद उन्हें अपने आप पर गर्व था। नेताजी ने भी जब ये कहानी सुनी तो हैरान रह गये।

चेन्नई में रहती हैं राजमणि

बहरहाल, आजादी के बाद से राजमिण भारत में ही हैं और तमिलनाडु के चेन्नई में रहती हैं। देश और समाज की सेवा का उनका काम आज भी जारी है। साल-2006 में जब सूनामी ने लाखों लोगों का घर बर्बाद कर दिया तब भी राजमणि मदद के लिए आगे आईं और अपनी पेंशन को राहत कोष में जमा कर दिया। हमलोगों में से भले ही कई लोग राजमणि की कहानी नहीं जानते लेकिन भारत की आजादी में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता। 

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