आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की आज जयंती है। दयानंद का जन्म 12 फरवरी को गुजरात में 1825 ई. को टंकारा के ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम कर्षण तिवारी और मां यशोदा बाई थीं। महर्षि का नाम बचपन में मूलशंकर रखा गया , जो बात में अपनी उपलब्धियों के कारण महर्षि दयानंद के नाम से विख्यात हुआ।
आर्य समाज के जनक
उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की , जिसके नियम में कहा कि किसी भी इंसान को अपने विकास से ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए, बल्कि सबकी प्रगति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए। इतना ही नहीं साल 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम से लेकर महाप्रयाण 1883 तक वे अंग्रेजी शासन से छुटकारा दिलाने और आजादी के रणबांकुरों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने का भी उन्होंने का किया था।
भेदभाव से समाज को उबारा
दयानंद ने अपना सारा जीवन वेद, दर्शन, धर्म, भाषा, देश, स्वतंत्रता, समाज की बदतर हालात को सुधारने, समाज में फैले अंधविश्वासों, पाखंड़ों और बुराइयों को को दूर करने में लगा दिया। उन्होंने शिक्षा, दलितों और स्त्रियों की हालत सुधारने में काफी योगदान दिया था। बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों से भी समाज को उबारने का उन्होंने काम किया था।
जानिए महर्षि दयानंद सरस्वती की कुछ अहम बातें-
- कहते हैं दयानंद को महज चौदह साल की उम्र में ही उन्होंने संस्कृत व्याकरण, सामवेद, यजुर्वेद का अध्ययन हो गया था।- ज्ञान की प्रात्ति के लिए उन्होंने 21 साल की उम्र में ही अपने घर परिवार को छोड़ दिया था।- हिंदू धर्म की मूर्ति पूजा के विरोध मे जाकर उन्होंने 7 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की।- स्वामी दयानंद ने 'वेदों की ओर लौटो' का नारा भी दिया।- उन्होंने 60 किताबें लिखी, जिसमें 16 खंडों वाला 'वेदांग प्रकाश' शामिल है।- दयानंद पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सबसे पहले स्वतंत्रता आंदोलन में स्वराज्य की मांग की-इनकी मौत को लेकर कहा जाता है कि वह जोधपुर नरेश जसवंत सिंह के निमंत्रण पर वे वहां गए थे, जहां नन्हीं नाम की वेश्या ने उनके दूध में पिसा हुआ कांच दे दिया, जिसके बाद वे अस्पताल में भर्ती हुए और चिकित्सक ने अंग्रेजी अफसरों से मिलकर उन्हें जहर दे दिया था।