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न्यायमूर्ति नरीमन ने महत्वपूर्ण फैसलों से न्यायपालिका को समृद्ध करने के बाद शीर्ष न्यायालय को अलविदा कहा

By भाषा | Updated: August 12, 2021 19:45 IST

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(संजीव कुमार)

नयी दिल्ली, 12 अगस्त निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने, आसानी से गिरफ्तारी की शक्ति देने वाले आईटी अधिनियम के प्रावधान को निरस्त करने और सभी उम्र की महिलाओं को केरल के सबरीमला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने समेत सात वर्षों से अधिक समय तक अपने कई ऐतिहासिक फैसलों से न्यायपालिका को समृद्ध करने के बाद उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन बृहस्पतिवार को सेवानिवृत्त हो गये।

न्यायमूर्ति नरीमन, प्रख्यात न्यायविद फली नरीमन के बेटे हैं। वह एक पारसी पुजारी हैं और उन पांच वकीलों के उस समूह में थे, जो वकालत के अपने सफल पेशे को छोड़ कर सात जुलाई 2014 को शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे तौर पर शामिल हुए थे।

दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद न्यायमूर्ति नरीमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएल.बी और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से एलएलएम की उपाधि हासिल की थी तथा 45 वर्ष की आयु की बजाये 37 वर्ष की आयु में ही उन्हें एक वरिष्ठ अधिवक्ता का ओहदा मिल गया था।

दरअसल, 1993 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एम एन वेंकटचलैया ने वरिष्ठ अधिवक्ता के उस नियम में संशोधन किया था, जो किसी वकील को इस तरह का ओहदा देने के लिए न्यूनतम आयु 45 वर्ष निर्धारित करता था।

उनकी सेवानिवृत्ति के साथ शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या घट कर 25 रह जाएगी, जबकि प्रधान न्यायाधीश सहित मंजूर पदों की संख्या 34 है। इसके साथ ही, अब उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम का पुनर्गठन करना होगा और इसमें न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव का प्रवेश होगा।

न्यायाधीश बने न्यायामूर्ति नरीमन ने 13,500 से ज्यादा मामलों का निस्तारण किया है। वह उन पीठों में शामिल थे जिन्होंने 1,000 से अधिक फैसले दिये हैं और यहां तक कि उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले ही उन्होंने दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए, जिनमें एक फैसले का देश में वाणिज्यिक और राजनीतिक परिदृश्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगाने के एक अभूतपूर्व फैसले में न्यायमूर्ति नरीमन ने 10 अगस्त को बिहार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) सहित नौ राजनीतिक दलों को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया तथा शीर्ष न्यायालय के फरवरी 2020 के एक आदेश का उल्लंघन करने को लेकर उनपर जुर्माना लगाया।

यह आदेश, विधानसभा चुनावों के लिए इन पार्टियों के उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रकाशन पर दिया गया था।

उन्होंने अपने फैसले में कहा था, ‘‘राष्ट्र लगातार इंतजार कर रहा है, और यह धैर्य खो रहा है। राजनीति की दूषित धाराओं की सफाई करना बेशक सरकार की विधायी शाखा की तात्कालिक चिंताओं में शामिल नहीं है।’’

दीर्घकालिक प्रभाव रखने वाले उनके फैसलों में दिवाला एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) की वैधता को बरकरार रखना भी शामिल है।

पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में रूचि रखने वाले न्यायमूर्ति नरीमन इतिहास, दर्शनशास्त्र, साहित्य और विज्ञान की पुस्तकों के प्रेमी हैं। उन्हें प्रकृति से गहरा लगाव है।

इन पीठों का हिस्सा रहने के अलावा भी उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाये हैं। इनमें एक प्रसिद्ध मामला श्रेया सिंहल मामला है, जिसमें उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को रद्द कर दिया था, जो कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर लोगों को गिरफ्तार करने की शक्ति देता था। उन्होंने इस धारा को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने वाला बताया था।

वह उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने कहा था कि मौत की सजा का सामना कर रहे दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई खुली अदालत में की जाए।

बाबरी विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य के खिलाफ सुनवाई को न्यायमूर्ति नरीमन ने फास्ट ट्रैक कोर्ट में रखा था। उन्होंने तीन तलाक, सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश, निजता का अधिकार और सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला भी लिखा था।

न्यायमूर्ति नरीमन के एक फैसले से हिरासत में होने वाली मौत रूक सकती है। दरअसल, उन्होंने अपने फैसले में पुलिस थानों और सीबीआई तथा एनआईए कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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