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खबर बनाने के लिए किसी की जान को खतरे में ना डालें पत्रकार : अदालत

By भाषा | Updated: July 1, 2021 19:58 IST

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लखनऊ, एक जुलाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने मानसिक रूप से परेशान एक किरायेदार को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्रकार शमीम अहमद की जमानत अर्जी खारिज कर दी है ।

अपने आदेश में अदालत ने पत्रकार के कृत्य पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि पत्रकार से किसी सनसनीखेज और भयावह घटना का नाटकीकरण करने की आशा नहीं की जाती है। उससे यह भी आशा नहीं की जाती कि वह मौत जैसे खतरे के समय अपने अभिनेता के गुण को सामने रख कर खबर को कवर करे।

अदालत ने कहा कि पत्रकार का काम प्रत्याशित या अप्रत्याशित रूप से घटी घटना पर नजर रखना और उसे बिना तोड़े मरोड़े विभिन्न माध्यमों से लोगों के सामने रखना होता है।

न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की पीठ ने लखनऊ के पत्रकार शमीम अहमद की जमानत याचिका ठुकराते हुए यह टिप्पणी की। अहमद समाचार बनाने के लिए एक व्यक्ति को विधान भवन के सामने आत्मदाह के लिए उकसाने के मामले में सह-अभियुक्त है।

अदालत ने हाल में दिए गए आदेश में कहा कि एक पत्रकार से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह एक सनसनीखेज और खौफनाक वारदात का जानबूझकर नाटक करने को कहे और उसे अंजाम देने वाले की स्थिति को दुर्दशापूर्ण बताते हुए उस पर खबर लिखे।

न्यायालय ने पिछली 21 जून को की गई टिप्पणी में कहा कि पत्रकार पूर्व अनुमान पर आधारित या एकाएक हुए घटनाक्रम पर नजर रखें और खबर के जरिए बिना किसी लाग-लपेट के उसे दुनिया के सामने लाएं।

इस मामले की प्राथमिकी मृतक की पत्नी ने 20 अक्टूबर 2020 को हुसैनगंज थाने में दर्ज करायी थी । उसने कहा था कि उसके पति सुरेंद्र चक्रबर्ती का मकान मालिक जावेद खान से मकान खाली करने को लेकर सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा था। 19 अक्टूबर 2020 को जावेद ने उसके पति को डांटते हुए कहा कि यदि मकान खाली नही कर सकते तो आग लगाकर मर जाओ।

इस घटना के बाद पत्रकार शमीम अहमद व नौशाद अहमद उसके घर आये और उसके पति से कहा कि यदि तुम विधान भवन के सामने अपने को आग लगा लो तो मैं उसे शूट करके टीवी पर चला दूंगा, जिससे मामला तूल पकड़ जायेगा और जावेद तुम पर मकान खाली करने का दबाव नहीं बना पायेगा। उसके पति दिमागी रूप से परेशान चल रहे थे, अगले दिन वह विधानसभा के सामने गये और आग लगा ली।

गंभीर रूप से झुलसने की वजह से 24 अक्टूबर 2020 को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी।

अपर शासकीय अधिवक्ता प्रेम प्रकाश ने अदालत को बताया कि विवेचना के दौरान मिले सबूतों से स्पष्ट है कि शमीम विधानसभा के सामने पहले से मौजूद था और चक्रबर्ती ने जब अपने को आग लगायी तो वह वीडियो बनाता रहा, जबकि पुलिस ने आकर बचाने की कोशिश की और उसे अस्पताल ले गयी जहां 24 अक्टूबर 2020 को उसकी मौत हेा गयी।

अदालत ने पूरी घटना पर पत्रकार के रवैये की निंदा की और उसे जमानत देने से इंकार कर दिया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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