जम्मू: इसे आप गुरिल्ला वॉरफेयर भी कह सकते हैं और सरप्राइज अटैक की रणनीति भी। जम्मू संभाग में पिछले दो सालों में होने वाले दर्जनों आतंकी हमलों में इस रणनीति को अपनाते हुए आतंकियों ने 52 के करीब जवानों की जानें ली हैं। कहा तो अब यह भी जा रहा है कि हमलावर आतंकियों के गुटों को पाक सेना के पूर्व सैनिक लीड कर रहे हैं जिन्हें आतंकियों के साथ इस ओर भेजा गया है।
हालांकि अभी तक खुफिया एजेंसियां उन आतंकियों की सही संख्या का पता नहीं लगा पाई हैं जो ताबड़तोड़ हमले कर जम्मू संभाग के सभी जिलों को दहला चुके हैं। कठुआ, राजौरी, पुंछ, डोडा, भद्रवाह, उधमपुर और किश्तवाड़ में पिछले दो सालों में हुए इन सरप्राइज हमलों का एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इनमें आतंकियों ने सैन्य वर्दियों के साथ साथ उस अमेरीकी एम-4 कारर्बाइनों का जम कर इस्तेमाल किया है जिनके प्रति पुलिस अब खुद दावा करती है कि वे बरास्ता अफगानिस्तान कश्मीर पहुंच चुकी हैं।
आतंकियों के इन सरप्राइज हमलों से सबसे अधिक सेना त्रस्त है जिसके पास पिछले दो से तीन सालों में सूचनाओं का अकाल इसलिए आन पड़ा है क्योंकि तकनीक के अधिक इस्तेमाल के कारण उसने जमीन पर स्थित अपने सूत्रधारों को नजरअंदाज कर दिया था। इसे सैन्य अधिकारी अब मानते हैं कि ड्रोन और तकनीक से अधिक महत्वपूर्ण मानवीय इंटेलिजेंस है जिसको नजरअंदाज कर दिए जाने से आतंकी तीन सालों से जम्मू संभग में भारी पड़ रहे हैं।
हालांकि अब इन सभी जिलों में आनन फानन हजारों सैनिकों को रवाना कर जगह जगह कैंप स्थापित करने की प्रक्रिया को तेज किया गया है लेकिन अभी तक वे आतंकी हत्थे नहीं चढ़ पा रहे हैं जिनके प्रति सुरक्षाधिकारी बार बार यह दावा करते हैं कि राजौरी, पुंछ और डोडा में हमलों के पीछे वे ही गुट हैं जो अभी तक जिन्दा बचे हुए हैं। उनके जिन्दा बचने के प्राकृतिक कारणों में वे ओवर ग्राउंड वर्करों का समर्थन सबसे अधिक शामिल है जिनकी धर पकड़ अब तेज की गई है। एक सप्ताह में बीसियों ओजीडब्यू को इन जिलों से पकड़ा भी गया है।