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जम्मू-कश्मीर: डल झील नहीं, ट्यूलिप गार्डन बना कश्मीर की नई पहचान

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: March 30, 2023 12:32 IST

1947 से पहले सिराजद्दीन नामक एक व्यक्ति घाटी का मशहूर फल उत्पादक था। उसके पास 650 कनाल से ज्यादा जमीन पर फैला फलों का एक बाग था, जिसमें वह सेब, अखरोट, खुबानी और बादाम का उत्पादन किया करता था। ये बाग जब्रवान पहाड़ियों के दामन में स्थित था (जहां आजकल बाटोनिकल गार्डन और ट्यूलिप गार्डन है)।

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ठळक मुद्देडल झील का इतिहास सदियों पुराना है ट्यूलिप गार्डन का मात्र 16 साल पुराना हैट्यूलिप गार्डन के आकर्षण में बंध कर आने वालों की भीड़ से चकित होकर कश्मीर के किसानों ने भी अब ट्यूलिप के फूलों की खेती में हाथ डाल लिया है।

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में डल झील का इतिहास तो सदियों पुराना है पर ट्यूलिप गार्डन का मात्र 16 साल पुराना। मात्र 16 साल में ही यह उद्यान अपनी पहचान को कश्मीर के साथ यूं जोड़ लेगा कोई सोच भी नहीं सकता था।

डल झील के सामने के इलाके में सिराजबाग में बने ट्यूलिप गार्डन में ट्यूलिप की 65 से अधिक किस्में आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहती हैं। यह आकर्षण ही तो है कि लोग बाग की सैर को रखी गई फीस देने में भी आनाकानी नहीं करते।

जयपुर से आई सुनिता कहती थीं कि किसी बाग को देखने का यह चार्ज ज्यादा है पर भीतर एक बार घूमने के बाद लगता है यह तो कुछ भी नहीं है। सिराजबाग हरवान शालीमार और निशात चश्माशाही के बीच की जमीन पर पहले यह करीब 700 कनाल एरिया में फैला हुआ था फिर तीसरे चरण में इसे 1360 और 460 कनाल भूमि और साथ में जोड़ दिया गया।

शुरू-शुरू में इसे शिराजी बाग के नाम से पुकारा जाता था। असल में महाराजा के समय उद्यान विभाग के मुखिया के नाम पर ही इसका नामकरण किया गया था। पर अब यह शिराज बाग के स्थान पर ट्यूलिप गार्डन के नाम से अधिक जाना जाने लगा है।

कहा जाता है कि 1947 से पहले सिराजद्दीन नामक एक व्यक्ति घाटी का मशहूर फल उत्पादक था। उसके पास 650 कनाल से ज्यादा जमीन पर फैला फलों का एक बाग था, जिसमें वह सेब, अखरोट, खुबानी और बादाम का उत्पादन किया करता था। ये बाग जब्रवान पहाड़ियों के दामन में स्थित था (जहां आजकल बाटोनिकल गार्डन और ट्यूलिप गार्डन है)। इस बाग का नाम उसके नाम से ही मशहूर था।

पास ही रहने वाले एक 70 वर्षीय बुजुर्ग अहमद गनेई ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि हम इस बाग को सिराज बाग के नाम से जानते थे। जहां पर हर तरफ सेब, अखरोट, बादाम और खुबानी के  पेड़ फैले हुए थे। इस बाग की देखरेख खुद मलिक सिराजद्दीन को बरसे में मिली थी।

कहा जाता है कि 1947 में भारत-पाक विभाजन के  दौरान मलिक सिराजद्दीन अपनी सारी संपत्ति को छोड़ परिवार सहित पाकिस्तान चला गया। उसके चले जाने के बाद स्थानीय लोगों ने इस बाग पर कब्जा कर लिया और तकरीबन 13 वर्षों तक उनके कब्जे में रहने के बाद 1960 में कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम मुहम्मद सादिक ने इस बाग को अपने कब्जे में ले लिया।

जब्रवान पहाड़ियों की तलहटी में स्थित ट्यूलिप गार्डन में खिलने वाले सफेद, पीले, नीले, लाल और गुलाबी रंग के ट्यूलिप के फूल आज नीदरलैंड में खिलने वाले फूलों का मुकाबला कर रहे हैं।

फूल प्रेमियों के लिए ये नीदरलैंड का ही माहौल कश्मीर में इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि भारत भर में सिर्फ कश्मीर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर मार्च से लेकर मई के अंत तक तीन महीनों के दौरान ये अपनी छटा बिखेरते हैं। रोचक बात यह है कि पिछले साल ट्यूलिप गार्डन के आकर्षण में बंध कर आने वालों की भीड़ से चकित होकर कश्मीर के किसानों ने भी अब ट्यूलिप के फूलों की खेती में हाथ डाल लिया है।

वे इस कोशिश में कामयाब भी हो रहे हैं कि जिन केसर क्यारियों में बारूद की गंध 33 सालों से महक रही हो वहां अब ट्यूलिप की खुशबू भी हो चाहे वह कम अवधि के लिए ही क्यों न हो।

यह सच है कि अभी तक कश्मीर में डल झील और मुगल गार्डन- शालीमार बाग, निशात और चश्माशाही -ही आने वालों के आकर्षण का केंद्र थे और कश्मीर को दुनिया भर के लोग इसलिए जानते थे। लेकिन अब वक्त ने करवट ली तो ट्यूलिप गार्डन के कारण कश्मीर की पहचान बनती जा रही है।

चाहे इसके लिए डल झील पर मंडराते खतरे से उत्पन्न परिस्थिति कह लिजिए या फिर मुगल उद्यानों की देखभाल न कर पाने के लिए पैदा हुए हालत की कश्मीर अब ट्यूलिप गार्डन के लिए जाना जाने लगा है।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरJammu
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