जम्मू-कश्मीर: हाइटेक निगरानी उपकरण भी नहीं रोक पा रहे आतंकियों के कदम
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: June 27, 2023 16:27 IST2023-06-27T16:23:28+5:302023-06-27T16:27:55+5:30
जम्मू कश्मीर में कड़ी सुरक्षा के बीच भी आतंकी किसी न किसी तरह अपनी काली करतूतों को अंजाम दे रहे हैं। सेना लगातार हर मोर्चे पर इन आतंकियों का सामना करने के लिए खड़ी है।

फाइल फोटो
श्रीनगर: तमाम दावों के बावजूद और कोशिशों के, अमन की बयार प्रदेश में दस्तक नहीं दे पा रही है। इसके लिए सेना सीमा पार से लगातार हो रही घुसपैठ को दोषी ठहरा रही है जो सीमा पर हाईटेक निगरानी उपकरणों की स्थापना के बावजूद बदस्तूर जारी है।
कुछ अधिकारियों के बकौल निगरानी उपकरण तथा तारबंदी घुसपैठिए आतंकियों की तमाम कोशिशों के आगे नतमस्क होने लगे हैं। ऐसा होने के पीछे का स्पष्ट कारण, घुसपैठ करने वालों द्वारा तारबंदी तथा निगरानी उपकरणों को निशाना बनाया जाना है।
ऐसी करीब दो दर्जन घटनाएं पिछले पांच महीनों के दौरान पाकिस्तान से सटी एलओसी पर हो चुकी हैं जिनमें अगर घुसपैठ की कोशिश करने वालों ने तारबंदी को भी काट डाला तो उन इमेज सेंसरों को क्षति पहुंचाई जिन्हें घुसपैठ पर नजर रखने के लिए स्थापित किया गया था।
अब सेना के लिए यह चिंता का विषय है कि आतंकियों को निगरानी उपकरणों के स्थान की जानकारी कैसे मिली तथा वे वहां तक कैसे पहुंच गए।
इन घटनाओं के बाद तो सेना मानती है कि घुसपैठ करने वाले आतंकियों की ओर से जो नई रणनीति अपनाई जा रही है उसके तहत उन्हें तारबंदी को काटने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है वहीं निगरानी उपकरणों के साथ छेड़छाड़ करने की जानकारी भी।
इस संदर्भ में यह जानकारी अत्याधिक चौंकाने वाली हो सकती है कि एक मामले में तो आतंकवादियों से पकड़े गए लैपटाप में निगरानी उपकरणों को सैटैलाइट के संपर्क के माध्यम से खराब करने की जानकारी दी गई थी और वाकई वे इसमें कामयाब भी हुए थे।
नतीजतन आतंकवादियों को रोक पाने में न ही तारबंदी कामयाब हो पा रही है और न ही वे निगरानी उपकरण जिन पर अभी तक सेना गर्व करती रही है। लेकिन इतना जरूर है कि इस बार की भारी बर्फबारी से पूर्व ये सभी सेना के लिए रामबाण साबित हो रहे थे और उन्हें इसके प्रति ऐसी शंका भर नहीं थी कि एक ही भारी बर्फबारी इन सभी को नकारा साबित कर देगी।
हुआ भी वही था। करीब 40 प्रतिशत तारबंदी की कब्र खोदने में भारी बर्फबारी ने अहम भूमिका निभाई थी तो अभी भी कई निगरानी उपकरण बर्फबारी के पांच महीने के बाद भी नीचे दबे पडे़ हैं जिनकी तलाश जारी है। सेना कहती हैः‘सिर्फ बर्फबारी के कारण ऐसा हुआ है वरना तारबंदी और निगरानी उपकरण आतंकवादियों के लिए मौत के परकाले साबित हो रहे थे।’
सेना के दावे में कितनी सच्चाई है सेनाधिकारियों के वे वक्तव्य इसके प्रति सच्चाई को जरूर उजागर करते हैं जिसमें वे आप मानते हैं कि तारबंदी और निगरानी उपकरणों को धोखा दे आतंकवादी इस ओर घुसने में कामयाब हो रहे हैं।
वे इसे भी स्वीकार करने में हिचकिचाते नहीं हैं कि सीमाओं पर जारी सीजफायर ने कुछ अरसे तक सिर्फ गोलीबारी से निजात दिलाई थी सेना और नागरिकों को।
परिणाम यह है कि आतंकवादियों के बढ़ते कदमों को रोक पाने में नाकाम साबित हो रही सेना के लिए मुसीबतें इसलिए बढ़ती जा रही हैं क्याोंकि अब उसे तारबंदी तथा निगरानी उपकरणों को बचाने की कवायद भी करनी पड़ती है जबकि पहले उनका एकमात्र लक्ष्य आतंकवादियों को मार गिराना होता था।