नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिक यूनिवर्सिटी ने अपने 103वें स्थापना दिवस समारोह की शुरुआत कर दी है और इस खास मौके पर विश्वविद्यालय में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। साहित्य में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए आज शाम-ए-सुखन का आयोजन किया गया है जो कि हिंदी-उर्दू कविता की एक शाम है।
इस कार्यक्रम का आयोजन 28 अक्टूबर शाम 5-7 बजे एफटीके-सीआईटी ऑडिटोरियम, जेएमआई में किया जाएगा। हिंदी- उर्दू में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को ये शानदार मौका है।
गौरतलब है कि जेएमआई की स्थापना 29 अक्टूबर, 1920 को यूपी के अलीगढ़ में हुई थी और बाद में परिसर दिल्ली में स्थानांतरित हो गया। 31 अक्टूबर तक चलने वाले पांच दिवसीय उत्सव में विभिन्न शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ शामिल होंगी।
इस अवसर पर कुलपति नजमा अख्तर ने कहा कि यह खुशी की बात है कि विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र समाज के सभी क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं। लेखिका और महिला अधिकार कार्यकर्ता डॉ. सैयदा हामिद ने अपनी पुस्तक "जामिया की ख्वातीन-ए-अव्वल (जामिया मिल्लिया इस्लामिया की महिला नेता)" का अनावरण किया।
सुगरा मेहंदी (1937-2014) की शिक्षा घर पर ही हुई। वह उस विश्वविद्यालय में शामिल होने वाली पहली कुछ लड़कियों में से थीं, जब लड़के और लड़कियाँ एक साथ पढ़ते थे। उनके चाचा सैयद आबिद हुसैन और शिक्षिका सालेहा आबिद हुसैन ने उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपना करियर एक स्कूल शिक्षिका के रूप में शुरू किया और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में उर्दू की प्रोफेसर बनने तक काम किया। उनका पहला उपन्यास राग भोपाली 1969 में प्रकाशित हुआ था और उनकी आखिरी किताब हमारी जामिया उनकी मृत्यु से कुछ महीने पहले 2014 में प्रकाशित हुई थी।
एक उत्कृष्ट हास्य लेखिका, उन्होंने लघु कहानियाँ लिखीं और कई लेखों का अनुवाद किया। दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की लेखिका के रूप में उन्हें अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए यूपी, दिल्ली और एमपी उर्दू अकादमियों द्वारा सम्मानित किया गया। वह मुस्लिम महिला मंच की संस्थापक ट्रस्टी भी थीं।
सलेहा आबिद हुसैन (1913-1988) का जन्म उस समय पंजाब के हिस्से, पानीपत में हुआ था। वह एक प्रमुख और विपुल उर्दू लेखिका थीं और उन्होंने उपन्यास, लघु कथाएँ, निबंध, पत्र संग्रह और अनुवाद सहित 50 से अधिक रचनाएँ लिखीं। साहित्यिक कार्यों का उत्साह उन्हें अपने परदादा, कवि मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली से विरासत में मिला।