जलियांवाला बाग का किस्सा: 100 साल बाद आज भी यहां की दीवारें दिलाती हैं उस काले दिन की याद

By गुलनीत कौर | Updated: April 13, 2018 07:41 IST2018-04-13T07:18:30+5:302018-04-13T07:41:58+5:30

जलियांवाला बाग में ब्रिटिश पुलिस अफसरों ने वैसाखी पर पर इकट्ठा हुए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलवाई थीं जिसमें हजारो बेगुनाह मारे गये थे।

Jallianwala Bagh 100th Anniversary: unforgettable day for millions of Indian Pain still linger on | जलियांवाला बाग का किस्सा: 100 साल बाद आज भी यहां की दीवारें दिलाती हैं उस काले दिन की याद

जलियांवाला बाग का किस्सा: 100 साल बाद आज भी यहां की दीवारें दिलाती हैं उस काले दिन की याद

13 अप्रैल, 1699 की वैसाखी को सिख धर्म का हर अनुयायी याद रखता है। इसीदिन गुरु गोबिंद जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। लेकिन कुछ सालों बाद सन् 1919 की वैसाखी को पंजाब का केवल अमृतसर शहर ही नहीं, बल्कि पूरा देश याद करता है। मगर दुःख से...

अमृतसर का जलियांवाला बाग हमेशा से ही अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता रहा है। साल 1919 की उस वैसाखी पर कुछ प्रदर्शनकारी और पर्यटक भी इस बाग में थे। जहां एक तरफ पर्यटक इस बाग की खूबसूरती को निहार रहे थे और वहीँ दूसरी ओर प्रदर्शनकारी इस जज्बे से शामिल हुए थे कि भारत को स्वतंत्रता कैसे दिलाई जाए। किस तरह से अंग्रेजों को सबक सिखाया जाए। लेकिन वे लोग इस बात से अनजान थे कि कुछ ही पलों में वैसाखी का यह दिन भारतीय इतिहास की सुनहरी किताब में एक काले पन्ने की तरह दर्ज हो जायेगा। 

प्रदर्शनकारियों के बीच इन्क़लाब जिंदाबाद के नारे चल रहे थे, शरीर में तेजी से भारत के नाम का खून दौड़ रहा था, हर सांस में देश को आजादी दिलाने की कस्में खाई जा रहीं थीं। तभी जनरल डायर अपनी अंग्रेजी फ़ौज के साथ जलियांवाला बाग में दाखिल हुआ और गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया। करीब 10 मिनट तक बिना रुके गोलियां चलती रहीं। बच्चे, बड़े, बूढ़ों सभी पर अंधा धुंध गोलियां बरसाई गईं। जनरल डायर की इस क्रूर फ़ौज ने किसी को नहीं बख्शा।

बाग में अफरा तफरी मच गई। लोग गोलियों से बचने के लिए इधर उधर भागने लगे लेकिन अफ़सोस यह था कि बाग में दाखिल होने और निकलने का केवल एक ही द्वार था जिसे अंग्रेजी फ़ौज ने घेर रखा था। महिलाएं बच्चों को गोद में लेकर बाग़ के उस बड़े कुएं में गिर गईं। 10 मिनट के उस खूनी खेल ने बाग़ का नक्शा ही बदलकर रख दिया। 

आखिरकार 10 मिनट बाद सेना के पास जब गोलियां ख़त्म हो गई तब जाकर सीजफायर घोषित किया गया। बताया जाता है कि इस दौरान करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। ब्रिटिश सरकार के आंकड़े के अनुसार 379 लोगों की मौत हुई थी और तकरीबन 1200 लोग घायल या बुरी तरह से जख्मी हुए थे। लेकिन अन्य सूत्रों के अनुसार इस घटना में करीब हजार लोगों ने अपनी जान गवाई थी। 

इस नरसिंहार को 99 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इस बाग़ की एक-एक दिवार उस खौफनाक दिन का याद दिलाती है। दीवारों पर बने गोलियों के निशान, वह संकरी गलियां जहां से लोगों ने भागने कि कोशिश की लेकिन असफल रहे और वह कुआँ जिसमें कूदकर महिलाओं और बच्चों ने अपनी जान दे दी। बाग़ की एक-एक चीज आज भी उस जख्म को ताजा कर देती है। 

Web Title: Jallianwala Bagh 100th Anniversary: unforgettable day for millions of Indian Pain still linger on

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