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"कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलना, चुनावी मजबूरी का फैसला है", तेजस्वी यादव ने पिता लालू यादव की तरह साधा मोदी सरकार पर निशाना

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: January 24, 2024 14:50 IST

जननायक कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिये जाने के मोदी सरकार के फैसले पर बिहार में ही जमकर सियासत हो रही है।

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ठळक मुद्देजननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने पर बिहार में हो रही है जमकर सियासतराजद नेता तेजस्वी यादव ने प्रसन्ना व्यक्त करते हुए परोक्ष रूप से साधा केंद्र सरकार पर निशानाउन्होंने कहा भले ही केंद्र की कोई मजबूरी रही हो लेकिन यह हम सभी के लिए खुशी का वक्त है

पटना: जननायक कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिये जाने के मोदी सरकार के फैसले पर बिहार में ही जमकर सियासत हो रही है। इस संबंध में राजद नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बुधवार को प्रसन्ना व्यक्त करते हुए परोक्ष रूप से केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि भले ही केंद्र सरकार की कोई मजबूरी रही हो लेकिन यह हम सभी के लिए खुशी का वक्त है।

समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मिले भारत रत्न के फैसले पर राजद और जदयू के बीच मतभेद का जिक्र करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा, "हमारे लिए अब यह महत्वपूर्ण नहीं है कि यह निर्णय किन मजबूरियों के कारण लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लिया गया, महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी मांग पूरी हो गई है।  हम लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। हम वास्तव में खुश हैं कि हमारे पूर्व मुख्यमंत्री को भारत रत्न से सम्मानित किये जाने की घोषणा हुई है।"

 उन्होंने कहा, "फैसला अच्छा है लेकिन इसका प्रभाव राजनीतिक रूप से भी देखा जाएगा। दरअसल हमारे द्वारा जाति जनगणना कराने के बाद केंद्र सरकार को यह निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।''

तेजस्वी ने अपने पुराने भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि राजद बहुत पहले से मांग कर रही थी कि बिहार के गौरव और जननायक कर्पूरी ठाकुर को देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाए।

मालूम हो कि इससे पहले बीते मंगलवार को कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने के ऐलान के बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने प्रतिक्रिया देते हुए मोदी सरकार पर हमला तो जरूर किया लेकिन साथ ही कर्पूरी ठाकुर को अपना "गुरु" बताते हुए यह भी कहा कि उन्हें तो बहुत पहले ही भारत रत्न का सम्मान मिल जाना चाहिए था।

केंद्र पर निशाना साधते हुए राजद प्रमुख लालू यादव ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने के बाद केंद्र सरकार की नींद खुली और उसने बहुजनों के हित पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने कहा, "मेरे राजनीतिक और वैचारिक गुरु कर्पूरी ठाकुर को बहुत पहले ही भारत रत्न मिल जाना चाहिए था। हमने सदन से लेकर सड़क तक उनको सम्मान देने के लिए आवाज उठाई थीा, लेकिन केंद्र सरकार की तो नींद तब खुली जब बिहार की गठबंधन सरकार ने जातीय जनगणना कराई। हमने बहुजनों के हित के लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाया। राजनीति को दलित-बहुजन की चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा।"

इससे पहले दिन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न की घोषणा के लिए केंद्र सरकरा की प्रशंसा की। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, "बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' देना बहुत खुशी की बात है। यह केंद्र सरकार का एक अच्छा निर्णय है। स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी को दिया गया यह सर्वोच्च सम्मान है। उनकी 100वीं जयंती पर सभी वर्गों में सकारात्मक भावनाएं पैदा होंगी। हम हमेशा स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी को 'भारत रत्न' देने की मांग करते रहे हैं। वर्षों पुरानी मांग आज पूरी हो गई है।''

इस बीच, राजद के मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जब कर्पूरी ठाकुर जीवित थे तो भाजपा उन्हें गालियां दे रही थी और बीते 9 सालों तक उन्हें याद नहीं किया।

उन्होंने कहा, "हमारी पार्टी और नेता लालू यादव लगातार उनके लिए भारत रत्न की मांग कर रहे थे। अब जब चुनाव नजदीक आ गए हैं, तो भाजपा वाले कर्पूरी ठाकुर को याद कर रहे हैं और उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। वे वोट के लिए उन्हें याद कर रहे हैं।"

मालूम हो कि भारक रत्न का सर्वोच्च सम्मान कर्पूरी ठाकुर के आजीवन समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित रहने और उनके द्वारा लड़ी गई सामाजिक न्याय के लिए दी गई है। बिहर में कर्पूरी ठाकुर को 'जन नायक' (पीपुल्स लीडर) कहा जाता है।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समाज के सबसे पिछड़े वर्गों में से एक नाई समाज में हुआ था और उनका निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ था। ठाकुर बिहार के एक उल्लेखनीय नेता थे, जिनकी राजनीतिक यात्रा समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से चिह्नित थी।

उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ संघर्ष में एक प्रमुख व्यक्ति थे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करते हुए वह बाद में 1977 से 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपने प्रारंभिक कार्यकाल के दौरान जनता पार्टी के साथ जुड़ गए। समय के साथ उन्होंने जनता दल के साथ संबंध स्थापित किए, जो कि उनकी राजनीतिक संबद्धता के महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक था। 

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