International Tiger Day 2023: 1973 में 268, साल 2022 की गणना में भारत में बाघों की संख्या 3167, जानें टॉप-4 में कौन-कौन राज्य

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 29, 2023 20:17 IST2023-07-29T18:55:49+5:302023-07-29T20:17:44+5:30

International Tiger Day 2023: दुनियाभर में जितने बाघ हैं, उनमें से 75 प्रतिशत भारत में हैं। एक समय इनके जल्द विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसा 50 साल पहले 1973 में शुरू हुए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की वजह से संभव हो पाया है।

International Tiger Day 268 in 1973, 3167 tigers in India in 2022 count know which states are in top-4 | International Tiger Day 2023: 1973 में 268, साल 2022 की गणना में भारत में बाघों की संख्या 3167, जानें टॉप-4 में कौन-कौन राज्य

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Highlightsयह परियोजना शुरू हुई, उस वक्त बाघों की संख्या महज 268 थी।मध्य प्रदेश में 785 हैं। सूची में दूसरे स्थान पर कर्नाटक है, जहां पर 563 हैं। उत्तराखंड 560 के साथ तीसरे और महाराष्ट्र 444 बाघों के साथ चौथे स्थान पर काबिज है। 

International Tiger Day 2023: भारत में बाघों की संख्या बढ़ने के चलते उत्साह और चिंताएं दोनों बढ़ रही हैं। एक तरफ जहां बाघों की संख्या में गिरावट के बाद वृद्धि होना भारत के लिए राहत लेकर आया है, तो दूसरी ओर विकास बनाम पारिस्थितिकी को लेकर छिड़ी बहस और तेज हो गई है। साल 2022 की गणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 3,167 है।

दुनियाभर में जितने बाघ हैं, उनमें से 75 प्रतिशत भारत में हैं। एक समय इनके जल्द विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसा 50 साल पहले 1973 में शुरू हुए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की वजह से संभव हो पाया है। जिस समय यह परियोजना शुरू हुई, उस वक्त बाघों की संख्या महज 268 थी।

मध्य प्रदेश में 785 हैं। सूची में दूसरे स्थान पर कर्नाटक है, जहां पर 563 हैं। उत्तराखंड 560 के साथ तीसरे और महाराष्ट्र 444 बाघों के साथ चौथे स्थान पर काबिज है। आंध्र प्रदेश के वन मंत्री पी.आर. रेड्डी ने शनिवार को बताया कि राज्य में 2010 के मुकाबले बाघों की संख्या लगभग दोगुनी हो गयी है। मंत्री ने बताया कि आंध्र प्रदेश में 2010 में 45 बाघ थे जबकि 2023 में उनकी संख्या बढ़कर 80 हो गई है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को प्रदेश के लोगों को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि प्रदेश में बाघों की संख्या 2018 की 526 से बढ़कर 2022 में 785 हो गई है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने भी मध्य प्रदेश को "भारत के अग्रणी बाघ राज्य" का दर्जा बरकरार रखने के लिए बधाई दी।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा जारी रिपोर्ट ‘भारत में बाघों की स्थिति : 2022’ के अनुसार, ‘‘देश में बाघों की सबसे अधिक संख्या मध्य प्रदेश में है, इसके बाद कर्नाटक (563) और उत्तराखंड (560) आते हैं।’’ सर्वेक्षण के अनुसार, मध्य प्रदेश के जंगलों में चार साल की अवधि में 259 बाघ बढ़े हैं।

चौहान ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘यह बेहद खुशी की बात है कि हमारे राज्य के लोगों के सहयोग और वन विभाग के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप चार वर्षों में हमारे राज्य में बाघों की संख्या 526 से बढ़कर 785 हो गई है।’’ इस सफलता के लिए प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘‘आइए हम सब मिलकर अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लें।’’

मध्य प्रदेश में 2006 में बाघों की संख्या 300 थी, लेकिन 2010 में मध्य प्रदेश अपने नंबर एक स्थान से फिसल गया था क्योंकि कर्नाटक में बाघों की संख्या 300 के मुकाबले मध्य प्रदेश में घटकर 257 रह गई। कर्नाटक में 2014 में बाघों की संख्या 406 थी जबकि मध्य प्रदेश में 300 बाघ थे।

इसके बाद मध्य प्रदेश में बाघों की आबादी बढ़ गई और 2018 में कर्नाटक में 524 के मुकाबले 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश ने शीर्ष स्थान हासिल कर लिया। मध्य प्रदेश में छह बाघ अभयारण्य, कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा और संजय-दुबरी हैं।

केंद्रीय मंत्री यादव ने भी ट्विटर पर मध्य प्रदेश को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि नवीनतम बाघ आकलन अभ्यास के अनुसार 785 बाघों के साथ, मध्य प्रदेश भारत का अग्रणी बाघ राज्य है। यह स्थानीय समुदायों को शामिल करके गहन सुरक्षा और निगरानी के माध्यम से बाघों के संरक्षण के प्रति मध्य प्रदेश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

शनिवार को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस से पहले विशेषज्ञों ने कहा कि हालांकि यह बदलाव वन्यजीव स्थलों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, वन्यजीवों के सिकुड़ते ठिकाने, भारत के वनक्षेत्र की खराब होती गुणवत्ता और नीतियों में परिवर्तन के बीच आया है।

वन्यजीव संरक्षणवादी प्रेरणा बिंद्रा ने कहा, “हमारे जनसंख्या घनत्व और अन्य दबावों के बावजूद, बाघों के संरक्षण की यह उपलब्धि आसान नहीं है और प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत के बाद से यह एक क्रमिक प्रक्रिया रही है। हमें इस बात का गर्व हो सकता है कि भारत में बाघों की संख्या बढ़ रही है, जबकि कुछ देशों में ये विलुप्त हो चुके हैं। इस सफलता का श्रेय हमारे लोगों की सहनशीलता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और एक मजबूत कानूनी व नीतिगत ढांचे को दिया जा सकता है।”

हालांकि उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में हाल ही में प्रस्तावित संशोधनों, संरक्षित क्षेत्रों में हानिकारक विकास परियोजनाओं, बाघों के रहने के स्थानों पर खनन, और पन्ना बाघ अभयारण्य में केन बेतवा नदी लिंक जैसी परियोजनाओं का हवाला देते हुए कहा कि कानूनी ढांचे को "कमजोर" किया जा रहा है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक क़मर क़ुरैशी ने एक विपरीत दृष्टिकोण दिया और कहा कि सुधारात्मक उपाय किए जा रहे हैं। कुरैशी ने उत्तराखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सहित हालिया बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का हवाला देते हुए कहा “हमें विकास के बारे में पारिस्थितिक दृष्टि से सोचना होगा। राजमार्ग बनाते समय अब हम बाघों और अन्य जानवरों के गुजरने के लिए सुरक्षित मार्ग बनाने के बारे में सोच रहे हैं। यह भारत में कई स्थानों पर पहले से ही हो रहा है।”

प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व डीन वाई वी झाला ने कहा कि मानवीय हस्तक्षेप से शिकारी-शिकार के अनुपात में असंतुलन भी हो सकता है। बाघ जैसे शिकारी अपने शिकार की तलाश में उन क्षेत्रों से बाहर जा सकते हैं, जहां वे पैदा हुए हैं।

अपने मूल क्षेत्र से बाहर जाने की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति तब प्रभावित होती है जब वन्यजीवों के ठिकानों के आसपास राजमार्ग, रेलवे, खदानें, बाड़ वाले रिसॉर्ट और बगीचे बनाए जाते हैं। झाला ने कहा, “मानव-बाघ संघर्ष आम तौर पर तब होता है जब बाघ का शिकार ख़त्म हो जाता है और बाघों के रहने के लिए कोई जगह नहीं होती (गलियारे खत्म हो जाते हैं)। इसके अलावा, संघर्ष तब होता है जब मनुष्य उन जंगलों में जाते हैं जहां बाघों का घनत्व अधिक है।''

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