कौन थे डीके पारुलकर?, 1971 के युद्ध नायक नहीं रहे, देश कर रहा नमन!, भारतीय वायुसेना ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 11, 2025 09:54 IST2025-08-11T09:53:43+5:302025-08-11T09:54:17+5:30
पाकिस्तान की कैद से भागने वाले जवानों का बहादुरी से नेतृत्व किया, भारतीय वायुसेना में अद्वितीय साहस, सरलता और गौरव का प्रतीक थे-वे अपनी अंतिम यात्रा पर रवाना हो गए हैं।

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पुणेः 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान की कैद से भागने में जवानों का बहादुरी से नेतृत्व करने वाले भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) डीके पारुलकर का रविवार सुबह निधन हो गया। वह 82 साल के थे। वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। अधिकारी ने बताया कि पारुलकर ने पुणे के पास अपने आवास पर अंतिम सांस ली।
वायुसेना ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) डी.के. पारुलकर वीएम, वीएसएम-1971 के युद्ध नायक, जिन्होंने पाकिस्तान की कैद से भागने वाले जवानों का बहादुरी से नेतृत्व किया, भारतीय वायुसेना में अद्वितीय साहस, सरलता और गौरव का प्रतीक थे-वे अपनी अंतिम यात्रा पर रवाना हो गए हैं।
Gp Capt DK Parulkar (Retd) VM, VSM — 1971 War hero, who led a daring escape from captivity in Pakistan, embodying unmatched courage, ingenuity & pride in the IAF — has left for his heavenly abode.
— Indian Air Force (@IAF_MCC) August 10, 2025
All Air Warriors of the IAF express their heartfelt condolences.#IndianAirForce… pic.twitter.com/cti0X24u7g
भारतीय वायुसेना के सभी वायु योद्धा अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं।” पूर्व वायुसेना अधिकारी के बेटे आदित्य पारुलकर ने बताया, “मेरे पिता का 82 वर्ष की आयु में सुबह पुणे स्थित हमारे आवास पर हृदयाघात के कारण निधन हो गया।” पारुलकर 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए थे।
उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं। बयान में लिखा है, “1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, उनका विमान दुश्मन की गोलीबारी की चपेट में आ गया और उनके दाहिने कंधे में चोट लग गई। अपने वरिष्ठों की सलाह के बावजूद कि वे विमान से बाहर निकल जाएं, उन्होंने क्षतिग्रस्त विमान को वापस बेस तक उड़ाया, जिसके लिए उन्हें वायु सेना पदक से सम्मानित किया गया।”
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, तत्कालीन विंग कमांडर पारुलकर ने पाकिस्तान में युद्धबंदी रहते हुए भी “अपने देश और भारतीय वायुसेना के प्रति असाधारण गर्व और पहल का परिचय दिया। वह भागने के एक प्रयास के अगुआ थे, जिसमें वह अपने दो सहयोगियों के साथ युद्धबंदी शिविर से भाग निकले थे।” उन्हें विशिष्ट सेना पदक से भी सम्मानित किया गया था।