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भारतीय वैज्ञानिकों ने हीलियम में कुछ इलेक्ट्रॉन बुलबुलों की दो नई प्रजातियां खोजीं

By भाषा | Updated: July 12, 2021 13:21 IST

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बेंगलुरु, 12 जुलाई भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने अति तरल (सुपरफ्लूइड) हीलियम में पहली बार ‘कुछ इलेक्ट्रॉन बुलबुलों’ (एफईबी) की दो प्रजातियों के अस्तित्व को प्रायोगिक रूप से दिखाया है।

सुपरफ्लूइड दरअसल किसी तरल पदार्थ की शून्य श्यानता की विशेषता होती है अर्थात इसके प्रवाह में गतिक ऊर्जा का ह्रास नहीं होता।

आईआईएससी ने एक बयान में बताया कि यह एफईबी ये अध्ययन करने के लिये एक उपयोगी मॉडल के तौर पर काम कर सकते हैं कि किसी सामग्री में इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा स्थिति और उनके बीच परस्पर क्रिया कैसे उनकी विशेषताओं को प्रभावित करती है।

इस अध्ययन दल में भौतिक विभाग की पूर्व शोधार्थी नेहा यादव, सेंटर फॉर नैनो साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीईएनएसई) के असोसिएट प्रोफेसर प्रोसेनजीत सेन, और सीईएनएसई में प्रोफेसर अंबरीश घोष शामिल हैं। यह अध्ययन ‘साइंस एडवांसेज’ में प्रकाशित हुआ है।

हीलियम के अति तरल रूप में जब इलेक्ट्रॉन को प्रेषित किया जाता है तो यह एकल इलेक्ट्रॉन बुलबुला (एसईबी) बनाता है, यह एक गुहा होती है जो हीलियम परमाणुओं से मुक्त होती है और इसमें सिर्फ इलेक्ट्रॉन होते हैं। बुलबुले का स्वरूप इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा स्थिति पर निर्भर करता है।

उदाहरण के लिए जब इलेक्ट्रॉन का ऊर्जा स्तर न्यूनतम (ग्राउंड स्टेट-1एस) होता है तो बुलबुला गोलाकार होगा। इसके अलावा बहु इलेक्ट्रॉन बुलबुले (एमईबी) भी होते हैं जिनमें हजारों इलेक्ट्रॉन रहते हैं।

दूसरी तरफ एफईबी, तरल हीलियम में नैनोमीटर के आकार की गुहाएं होती हैं जिनमें सिर्फ कुछ मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं। मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या, अवस्था और परस्पर क्रिया सामग्री की भौतिक और रसायनिक विशेषताओं का निर्धारण करती है।

आईआईएससी ने कहा, एफईबी का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को यह बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है कि जब सामग्री में मौजूद कुछ इलेक्ट्रॉन एक दूसरे से परस्पर क्रिया करते हैं तो इनमें से कुछ विशेषताएं कैसे उभरती हैं।

अध्ययन के लेखकों के मुताबिक, एफईबी कैसे बनते हैं यह समझने से नरम सामग्रियों (सॉफ्ट मेटेरियल) के स्व:संयोजन में अंतरदृष्टि मिल सकती है जो अगली पीढ़ी की क्वांटम सामग्री के विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण हो सकती है।

वैज्ञानिकों ने अब तक केवल सैद्धांतिक तौर पर एफईबी के अस्तित्व का अनुमान व्यक्त किया था।

यादव ने कहा, “हमनें अब पहली बार प्रायोगिक तौर पर एफईबी को देखा है और यह समझा है कि वे बनते कैसे हैं। ये अच्छी वस्तुएं हैं जिनके बड़े निहितार्थ हैं अगर हम उन्हें बना सकें…।”

यादव और उनके सहकर्मी नैनोमीटर के आकार के एमईबी की स्थिरता का अध्ययन कर रहे थे जब उन्होंने गहनतापूर्वक एफईबी को देखा।

शुरू में वे उत्साहित भी थे और थोड़े संशय में भी।

घोष ने कहा, “यह तय करने से पहले कि ये वास्तव में एफईबी हैं बड़ी संख्या में प्रयोग किये गए। उसके बाद यह निश्चित रूप से जबर्दस्त रोमांचक क्षण था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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