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गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद भारतीय नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में तैनात किया युद्धपोत

By पल्लवी कुमारी | Updated: August 30, 2020 16:53 IST

चीन की सरकार के लिए हमेशा से दक्षिण चीन सागर काफी महत्वपूर्ण है। चीन किसी दूसरे देश की यहां पर मौजूदगी को पंसद नहीं करता है। गलवाव घाटी हिंसक में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे।

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ठळक मुद्देचीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी के विरोध के बाद भी भारत ने अपना युद्धपोत दक्षिण चीन सागर में तैनात किया है। पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव को देखते हुए दक्षिण चीन सागर में युद्धपोत तैनात करने का फैसला किया गया है।

नई दिल्ली: 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारतीय नौसेना ने बड़ा कदम उठाते हुए दक्षिण चीन सागर में युद्धपोत तैनात किया है। नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में अपना एक फ्रंटलाइन वॉरशिप (जंगी जहाज) तैनात किया है। भारत ने यह कदम चीन को तीखे तेवर दिखाने के लिए किया है। हालांकि चीन ने दोनों देशों के बीच हुई वार्ता में इस कदम पर आपत्ति जताया था। पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव को देखते हुए दक्षिण चीन सागर में युद्धपोत तैनात करने का फैसला किया गया है।

एनएनआई के मुताबिक दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में जहां पर युद्धपोत तैनात किया गया है, वह वो इलाका है, जहां चीन भारत के वॉरशिप का विरोध करता रहा है। चीन इसके खिलाफ भारत से शिकायत भी करता है। चीन ने भारत के सामने यह मुद्दा उठाया है और इस पर विरोध भी जताया है। चीनी इस क्षेत्र में भारतीय नौसेना के जहाजों की उपस्थिति पर आपत्ति जताते रहे हैं, जहां उन्होंने कृत्रिम द्वीपों और सैन्य उपस्थिति के माध्यम से 2009 से अपनी उपस्थिति में काफी विस्तार किया है। 

चीन की सरकार के लिए हमेशा से दक्षिण चीन सागर काफी महत्वपूर्ण है। चीन किसी दूसरे देश की यहां पर मौजूदगी को पंसद नहीं करता है। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के विरोध के बाद भी भारत ने अपना युद्धपोत वहां तैनात किया है। 

15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में 16 बिहार इंफेंट्री रेजीमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू सहित 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। चीन ने गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में हताहतों की संख्या के बारे में कुछ भी नहीं बताया है। 

भारतीय सेना के सैनिकों की ओर से इस हिसंक झड़प में हैंड टू हैंड सामना किया गया था और इस झड़प से हुए नुकसान के बारे में सेना द्वारा जानकारी भी दी गई थी, लेकिन बीजिंग की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान अब तक नहीं आया है। 

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