India-Pakistan Conflict: भारत-पाकिस्तान में जारी युद्ध के बीच बिहार के सीमांचल इलाके और भारत-नेपाल बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई है। सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और राज्य पुलिस ने इन इलाकों में गश्त बढ़ा दी है। साथ ही संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। बिहार सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए राज्य के सभी सरकारी और पुलिस अधिकारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं। यह फैसला हालात की गंभीरता को देखते हुए लिया गया है। सीमा पर आने-जाने वालों की जांच के साथ-साथ संदिग्ध इलाकों में होटलों के अंदर भी छापेमारी की जा रही है। वहीं बिहार में जारी रेड अलर्ट के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कल सीमांचल इलाके का दौरा करने वाले हैं। सीमांचल में विशेष रूप से अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिलों में अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं।
संभावित आतंकी हमले की आशंका को लेकर बिहार के सभी जिलों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया। दरअसल, किशनगंज जिले की सीमा भारत-बांग्लादेश की सीमा से काफी नजदीक है। जिसके कारण जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी बढ़ाई गई है। पश्चिम बंगाल की सीमा से जो भी थाने सटे हुए हैं उनके थानाध्यक्ष को विशेष रूप से अलर्ट किया गया है। उन्हें विशेष सतर्कता बरतने कहा गया है।
सीमा पर गश्ती अब बढ़ा दी गई है। किशनगंज पुलिस बीएसएफ व बंगाल पुलिस के साथ लगातार संपर्क में है। बंगाल पुलिस के साथ तालमेल बनाकर स्थिति पर नजर रखी जा रही है। बिहार में डीजीपी स्तर से सुरक्षा को लेकर चाक-चौबंद व्यवस्था करने के निर्देश जारी किए गए हैं। डीजीपी विनय कुमार खुद लगातार इसकी समीक्षा कर रहे हैं और अपने मातहतों को दिशा-निर्देश दे रहे हैं।
विनय कुमार ने दावा किया कि पूरे बिहार में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत है। उल्लेखनीय है कि बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया को समेकित रूप से इसी नाम से पुकारा जाता है। सीमांचल खतरे में है क्योंकि अवैध घुसपैठियों के कारण इस इलाके की डेमोग्राफी पूरी तरह बदल गई है। 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी जहां चार प्रतिशत बढ़ी है।
वहीं सीमांचल में यह आंकड़ा करीब 16 प्रतिशत है। किशनगंज बिहार का ऐसा जिला है, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। बांग्लादेशी मुसलमानों ने पिछले कुछ दशकों में यहां जबरदस्त घुसपैठ की है। 2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज में मुस्लिमों की जनसंख्या 67.58 प्रतिशत थी, तो हिंदू मात्र 31.43 प्रतिशत रह गए।
कटिहार में 44.47, अररिया में 42.95 और पूर्णिया में मुस्लिम जनसंख्या 38.46 प्रतिशत हो चुकी है। पिछले एक दशक में मुस्लिम जनसंख्या और तेज गति से बढ़ी है। जिलों के दर्जनों गांवों में हिंदू अल्पसंख्यक होकर पलायन कर गए हैं। अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के रामपुर गांव से दर्जनों लोग पलायन कर दोगच्छी गांव चले गए, जहां हिंदुओं की जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
कई जगहों पर इनकी जमीन मुस्लिमों ने खरीद ली है। इसके साथ ही बांग्लादेश और नेपाल के बीच मेची नदी की खुली सीमा बांग्लादेशी घुसपैठियों के आवागमन का आसान मार्ग है। घुसपैठ के बाद कहीं ठिकाना मिल जाए तो ये अपनी आबादी तेजी से बढ़ाते हैं। बता दें कि किशनगंज जिले दिघलबैंक की सिंधीमारी पंचायत के पलसा गांव की ताजकेरा खातून 14 बच्चों की मां है।
फतीउर खातून नौ, नेजाता बीबी आठ व मुस्तरा खातून 10 बच्चों की मां हैं। अररिया के रानीगंज प्रखंड की नरगिस खातून, शाहीना खातून, साजिदा खातून, रूबी खातून व इश्मत पांच-पांच बच्चों की मां हैं। ऐसे कई उदाहरण सीमांचल में हैं। पूर्णिया के सिविल सर्जन डा. अभय चौधरी कहते हैं कि जागरूकता की कमी के कारण इस इलाके में जनसंख्या नियंत्रण का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है।
1971 में भारत-पाक युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश के गठन के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम असम पहुंचे। कालांतर में ये सीमांचल के कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया आदि जिलों में बसने लगे। जानकारों के अनुसार देश में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 14.23 है, बिहार में यह 17 प्रतिशत है, जबकि सीमांचल में बिहार से दोगुना से अधिक मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत है।
यह आंकड़े ही घुसपैठ की पुष्टि करते हैं। आंकड़ों के अनुसार बिहार में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 25.4 है। 2001 से 2011 के बीच दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर पर नजर डालें तो पूर्णिया में 28.66, कटिहार में 30, अररिया में 30 और किशनगंज में यह 30.44 प्रतिशत है।
घुसपैठ को नकारने वाले दलील देते हैं कि मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण सीमांचल में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है, लेकिन इस दलील को मुंगेर जिला की रिपोर्ट नकारती है। बिहार में ही बांग्लादेश सीमा से दूर इस जिले की दो अल्पसंख्यक पंचायत (मिर्जापुर बरदह व श्रीमतपुर) में जनसंख्या की दशकीय बढ़ोतरी 25.78 और 21.23 प्रतिशत है।