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पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा चीन के साथ मिलकर त्रिपक्षीय वार्ता प्रस्ताव को भारत डाल सकता है ठंडे बस्ते में

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 03, 2022 10:51 PM

पाकिस्तान-चीन-भारत त्रिपक्षीय वार्ता के लिए जनरल बाजवा के प्रस्ताव पर भारत की नरेंद्र मोदी सरकार किसी तरह की जल्दीबाजी नहीं दिखाना चाहती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि भारत दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत के जरिये मसले का हल निकालना चाहता है और इसमें चीन सहित किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को हरी झंडी नहीं देगा।

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ठळक मुद्देपाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने चीन के साथ मिलकर भारत को दिया वार्ता का प्रस्तावभारत ने पाकिस्तान-चीन के साथ त्रिपक्षीय वार्ता पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी हैभारत पाक के साथ शिमला समझौते और लाहौर घोषणा की शर्तों के मुताबिक बात करने को तैयार है

दिल्ली: पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के द्वारा चीन को शामिल करते हुए भारत को दिये गये शांति बहाली के लिए बातचीत और कूटनीति के प्रयासों पर नई दिल्ली की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने की संभावना नहीं है। 

भारतीय अधिकारियों का कहना है कि एक तरफ तो नई दिल्ली इस्लामाबाद के राजनीतिक अस्थिरता पर अपनी निगाह बनाये हुए हैं। वहीं दूसरी ओर सरकार का मानना ​​है कि भारत पाकिस्तानी फौज के साथ तभी बात करेगा, जब उसके यहां फैली हुई राजनीतिक अव्यवस्था दूर हो जाए।

पाकिस्तान-चीन-भारत त्रिपक्षीय वार्ता के लिए जनरल बाजवा के प्रस्ताव पर भारत की नरेंद्र मोदी सरकार किसी तरह की जल्दीबाजी नहीं दिखाना चाहती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि भारत दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत के जरिये मसले का हल निकालना चाहता है और इसमें चीन सहित किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को हरी झंडी नहीं देगा।

यही वजह है कि भारत सरकार ने अभी तक पाकिस्तान के सेना प्रमुख के बातचीत के प्रस्ताव या सीमा विवाद सहित कई मुद्दों के हल के लिए भारत-पाकिस्तान-चीन त्रिपक्षीय वार्ता पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।

इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बेदखल करने की कोशिशों के बीच जनरल बाजवा ने शनिवार को कहा कि पाकिस्तान और भारत के बीच सभी विवादों को बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर सहित भारत के साथ सभी लंबित मुद्दों को हल करने के लिए कूटनीति का उपयोग करने में विश्वास रखता है ताकि विवादित क्षेत्र को "आग की लपटों" को दूर रखा जा सके।

उन्होंने भारत, पाकिस्तान और चीन को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय वार्ता का भी प्रस्ताव रखा और कहा कि भारत-चीन सीमा विवाद पाकिस्तान के लिए "बड़ी चिंता" का विषय है। हम चाहते हैं कि यह (भारत-चीन) बातचीत और कूटनीति के जरिए जल्दी से सुलझ जाए।

हालांकि मोदी सरकार के आधिकारिक सूत्र का कहना है कि भारत से आतंकवाद को खत्म करने की प्रभावी कार्रवाई करके बातचीत के लिए माहौल को अनुकूल बनाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है न कि भारत पर।

इसके अलावा सूत्र ने यह भी कहा, "भारत पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी संबंध चाहता है और शिमला समझौते और लाहौर घोषणा के अनुसार यदि कोई बकाया मुद्दा हो तो द्विपक्षीय और शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत के लिए हमेशा प्रतिबद्ध है।"

हालांकि कोई भी सार्थक बातचीत केवल आतंक, दुश्मनी और हिंसा से मुक्त वातावरण में ही हो सकती है। इसलिए शांति का वातावरण तैयार करने की जिम्मेदारी भी पाकिस्तान की ही है। इसके साथ ही दिल्ली ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत-पाकिस्तान-चीन त्रिपक्षीय वार्ता प्रस्ताव को स्वीकार करने की कई संभावना नहीं है।

मालूम हो कि चीन और पाकिस्तान ने 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का जमकर विरोध किया था।

भारत जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे में वापस लाने के लिए पाकिस्तान और चीन के कदमों का लगातार विरोध कर रही है।

इसके साथ ही भारत पाकिस्तान के साथ हुए साल 1972 के शिमला समझौते और दोनों पक्षों के बीच हुए साल 1999 के लाहौर घोषणापत्र के मुताबिक केवल दोनों पक्षों को शामिल करते हुए बातचीत के लिए तैयार है। 

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