बिहार की सियासत में कभी पुरुष नेताओं की रैलियों में दर्शक बनीं महिलाएं अब खुद संभाल रही हैं मंच, मतदान में महिलाएं हैं पुरुषों से आगे

By एस पी सिन्हा | Updated: November 1, 2025 16:17 IST2025-11-01T16:17:57+5:302025-11-01T16:17:57+5:30

साल 2010 में कुल 214 महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी थीं। उस समय कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 32 महिलाओं को टिकट दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से एक भी जीत नहीं सकीं। वहीं जदयू ने 23, भाजपा ने 12 और राजद ने 11 महिला उम्मीदवार उतारे थे। इस दौरान महिलाओं ने बड़ा असर छोड़ा है।

In Bihar politics, women who were once mere spectators at rallies held by male leaders are now taking center stage, and women are outnumbering men in voting | बिहार की सियासत में कभी पुरुष नेताओं की रैलियों में दर्शक बनीं महिलाएं अब खुद संभाल रही हैं मंच, मतदान में महिलाएं हैं पुरुषों से आगे

बिहार की सियासत में कभी पुरुष नेताओं की रैलियों में दर्शक बनीं महिलाएं अब खुद संभाल रही हैं मंच, मतदान में महिलाएं हैं पुरुषों से आगे

पटना: बिहार की सियासत में कभी पुरुष नेताओं की रैलियों में दर्शक बनीं महिलाएं अब खुद मंच संभाल रही हैं। माइक थामकर जनता से वोट मांग रही हैं। 2010 से 2025 तक के आंकड़े बताते हैं कि मतदान में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं, लेकिन टिकट वितरण में अब भी पिछली कतार में खड़ी हैं। साल 2010 में कुल 214 महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी थीं। उस समय कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 32 महिलाओं को टिकट दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से एक भी जीत नहीं सकीं। वहीं जदयू ने 23, भाजपा ने 12 और राजद ने 11 महिला उम्मीदवार उतारे थे। इस दौरान महिलाओं ने बड़ा असर छोड़ा है।

जदयू की 21 महिलाएं, भाजपा की 10 और एक निर्दलीय उम्मीदवार विधानसभा पहुंचीं। यानी महिलाओं की जीत दर भले कम थी (कुल उम्मीदवारों का करीब 15 फीसदी जीत)। यह शुरुआत बड़ी उम्मीद वाली थी। यह दौर बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का था, जहां महिलाओं को आरक्षण और सशक्तिकरण की नीतियां तो थीं, लेकिन चुनावी टिकट में पुरुष-प्रधान सोच हावी रही है। 2015 आते-आते महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़कर 272 हो गई। इस दौरान जदयू, राजद और भाजपा तीनों ने महिलाओं पर भरोसा दिखाया। जदयू और राजद ने 10-10, भाजपा ने 14 महिलाओं को टिकट दिया। लेकिन इसमें कुल 28 महिलाएं विधानसभा पहुंचीं। इनमें जदयू की 9, राजद की 10, भाजपा की 4, कांग्रेस की 4 और एक निर्दलीय चुनाव जीती थीं। 

महागठबंधन (तब जदयू-राजद-कांग्रेस) की जीत में महिलाओं की भूमिका अहम रही, खासकर शराबबंदी जैसे मुद्दों पर फोकस किया। जीत दर करीब 10 फीसदी रहा, जो दर्शाता है कि पार्टियां महिलाओं को रणनीतिक रूप से मैदान में उतार रही थीं। वहीं, 2020 में तस्वीर और दिलचस्प हुई है। इस साल 370 महिलाओं ने चुनावी मैदान में उतरने की हिम्मत दिखाई। जो 2010 की तुलना में करीब 73 फीसदी ज्यादा रही। लेकिन जीत का आंकड़ा ठहर गया कि सिर्फ 26 महिलाएं ही विधानसभा तक पहुंच सकीं। भाजपा ने इस दौरान 13 महिलाओं को टिकट दिया और उनमें से 9 ने जीत दर्ज की, यानी 69 फीसदी सफलता दर, जो सबसे अधिक थी। 

राजद की 23 में से 10 महिलाओं ने जीत दर्ज की, जबकि जदयू की सफलता दर 27 फीसदी के आसपास रही। लेकिन आंकड़ों का गहराई बताता है कि महिलाओं को टिकट देने की दर में कई दलों ने कमी की। कांग्रेस और भाकपा-माले जैसी पार्टियों ने पिछली बार से कम महिलाओं को उतारा है। इनमें से कुल मिलाकर, महिलाओं की जीत दर घटकर 7 फीसदी के आसपास रह गई, जो उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या के बावजूद निराशाजनक थी। कोविड महामारी और आर्थिक मुद्दों ने चुनाव को प्रभावित किया। 

अब 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की तरफ से 34 और महागठबंधन की तरफ से 30 महिलाएं मैदान में हैं। सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवार राजद ने 23 उतारी हैं, उसके बाद जन सुराज पार्टी ने 25 और बसपा ने 26 महिला उम्मीदवार उतारी है। लेकिन जदयू और भाजपा ने महिला टिकटों में कमी की है। जदयू ने 13, भाजपा ने भी 13 उम्मीदवारों को मौका दिया है। इसका मतलब साफ है कि महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाने के वादे तो खूब हुए, लेकिन हकीकत में कदम उतने तेज नहीं बढ़े। कुल महिला उम्मीदवारों की संख्या घटकर लगभग 258 रह गई है, जो 15 सालों में सबसे कम है। यह कमी पार्टियों के जीत की संभावना के बहाने को दर्शाती है, जहां महिलाओं को सुरक्षित सीटों पर भी कम प्राथमिकता मिली। 

दरअसल, ट्रेंड बताता है कि 15 सालों में महिला उम्मीदवारों की संख्या 214 से 370 तक बढ़ी, लेकिन सफलता दर लगभग 7 फीसदी पर ही अटकी रही। यानी भागीदारी तो बढ़ी है, मगर जीत की राह अब भी कठिन है। जानकारों की मानें तो बिहार में महिला मतदाताओं की सक्रियता को देखते हुए दलों को अब टिकट बंटवारे की सोच बदलनी होगी। क्योंकि आंकड़े साफ कहते हैं कि वोट बैंक में महिलाएं आगे हैं, लेकिन सत्ता में अब भी पीछे ही हैं। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी सराहनीय है, लेकिन जीत दर की कमी कई कारणों से जुड़ी है। 2025 के आगामी चुनावों में महिलाओं की भूमिका और मजबूत होने की उम्मीद है।

Web Title: In Bihar politics, women who were once mere spectators at rallies held by male leaders are now taking center stage, and women are outnumbering men in voting

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