40 करोड़ श्रमिकों के फायदे वाले राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन का इंतजार हुआ लंबा, दो साल बाद भी नहीं बन पाई नीति
By विशाल कुमार | Published: October 4, 2021 01:11 PM2021-10-04T13:11:54+5:302021-10-04T13:14:17+5:30
अगस्त 2019 में संसद में पारित वेतन संहिता द्वारा अनिवार्य न्यूनतम वेतन को लागू करने से देश के 50 करोड़ श्रमिकों में से 40 करोड़ से अधिक के लाभान्वित होने की उम्मीद है.
नई दिल्ली: नए श्रम कानून के तहत पिछले दो साल से राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन लागू नहीं हो पाया है और अब उसमें और अधिक देरी होगी क्योंकि केंद्र सरकार ने राशि तय करने का फॉर्मूला देने वाली विशेषज्ञ समिति का पुनर्गठन कर दिया है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2019 में संसद में पारित वेतन संहिता द्वारा अनिवार्य न्यूनतम वेतन को लागू करने से देश के 50 करोड़ श्रमिकों में से 40 करोड़ से अधिक के लाभान्वित होने की उम्मीद है.
2 जून को गठित विशेषज्ञ समिति का पुनर्गठन दिल्ली स्थित आर्थिक विकास संस्थान (आईईजी) के अध्यक्ष अजीत मिश्रा और आईआईएम कलकत्ता के सदस्य तारिका चक्रवर्ती के पैनल से इस्तीफा देने के बाद किया गया.
श्रम अर्थशास्त्री केआर श्याम सुंदर ने कहा कि इस्तीफे के कारण स्पष्ट नहीं हैं. न तो दोनों शिक्षाविदों और न ही सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है.
भाकपा की श्रम शाखा एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि पैनल के पुनर्गठन से वेतन पर संहिता के कार्यान्वयन में और देरी होगी, जिसमें पहले से ही दो साल की देरी हो चुकी है.
उन्होंने सरकार की ईमानदारी पर सवाल उठाते हुए कहा कि अर्थशास्त्री अनूप सत्पथी की अध्यक्षता में श्रम मंत्रालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने तीन साल पहले जुलाई 2018 की कीमतों के स्तर पर राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 375 रुपये से कम नहीं होने की सिफारिश की थी.
अधिकांश राज्यों द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी लगभग 200 रुपये प्रतिदिन है. केंद्र को हर दूसरे साल राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को अधिसूचित करना चाहिए, लेकिन यह राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं है.
केंद्र ने पिछली बार जुलाई 2017 में 176 रुपये के फ्लोर-लेवल वेतन को अधिसूचित किया था. लेकिन जुलाई 2019 से संशोधन नहीं हुआ है.