कश्मीर घाटी में मंगलवार को मानवाधिकार दिवस पर अलगाववादियों के बंद का खासा प्रभाव देखने को मिला। सामान्य जनजीवन प्रभावित नजर आया। सभी दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे। हालांकि किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए प्रशासन ने भी सभी संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त रखा है। अलबत्ता, दोपहर बाद तक वादी में स्थिति लगभग शांत व सामान्य रही।
बंद का आह्वान कटटरपंथी सईद अली शाह गिलानी ने कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए किया था। गौरतलब है कि मंगलवार को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार दिवस मनाया गया।
गिलानी ने बंद के आह्वान को कामयाब बनाने की अपील करते हुए लोगों से कहा था कि कश्मीर में जिस तरह से प्रशासनिक पाबंदियों के नाम पर आम लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है, दुनिया का ध्यान उस तरफ दिलाने के लिए कश्मीर में सभी लोग अपने कारोबार बंद रखते हुए हड़ताल को कामयाब बनाएं। गिलानी ने बंद का यह आह्वान दो दिन पहले किया था।
यह सच है कि मानवाधिकार दिवस पर उन मांओं, बहनों और पत्नियों की दुखती रग एक बार फिर दर्द देने लगी है जिनके बेटे, भाई और पति कई सालों से लापता हैं और आज तक उनके प्रति कोई जानकारी तक नहीं मिल पाई है। उनके प्रति न ही यह जानकारी मिल पाई है कि वे जिन्दा हैं या फिर मर गए हैं।
ताज बेगम को ही लें। अब वह अधिकारियों से आग्रह करती है कि उसके बेटे का शव ही उसे मुहैया करवा दिया जाए ताकि वह उसे रस्मो रिवाज के साथ दफना सके। 27 साल के उसके बेटे मुख्तार अहमद बेग को कितने साल पहले सुरक्षाबलों ने रात के अंधेरे में चलाए जाने वाले तलाशी अभियान में हिरासत में लिया था अब ताज बेगम को इसके प्रति भी कुछ याद नहीं है क्यांेकि वह अधपगली की हालत में है।
ताज बेगम एक अकेला मामला नहीं है कश्मीर में जिसे अपने बेटे की इतने वर्षों से तलाश हो बल्कि हजारों मांओं को अपने बेटों की तलाश है। हजारों बहनों की आंखें अपने भाईयों की तलाश कर रही हैं और हजारों पत्नियां अपने पतिओं की तलाश में रो रोकर अधमरी हो चुकी हैं।
अनुमानतः दस हजार लोग कश्मीर में लापता हैं। सरकारी आंकड़ा 3 हजार से ऊपर कभी नहीं गया है। लापता होने वालों के प्रति अलग अलग वक्तव्य हैं। कभी उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें गिरफ्तार ही नहीं किया गया था। तो कभी कहा जाता है कि वे उस पार हथियारों की ट्रेनिंग लेने गए थे और वापस ही नहीं लौटे हैं।
इन लापता लोगों के प्रति चिंता उस समय और बढ़ गई थी जब कुछ अरसा पहले एलओसी के इलाकों में हजारों की संख्या में अनाम कब्रें मिलीं। इन कब्रों के बारे में सरकार का कहना था कि यह उन विदेशी आतंकियों की कब्रें हैं जिनकी पहचान नहीं हो पाई थी और उन्हें घुसपैठ करते हुए मार गिराया गया था। पर कश्मीरी सरकारी बयान को स्वीकार करने को राजी नहीं हैं। वे इन अज्ञात कब्रों की डीएनए जांच करवाना चाहते हैं।
अनाम कब्रों के मुद्दे पर कश्मीर में कई बार आग भी भड़क चुकी है। पर उन परिवारों को आज भी कोई जानकारी अपने प्रियजनों के प्रति नहीं मिल पाई है जो कई साल पहले लापता हो गए थे और उनके प्रति यह पता नहीं चल पाया है कि उन्हें जमीन खा गई या आसमान निगल गया। पर इतना जरूर था कि लापता होने का सिलसिला कश्मीर में आज भी जारी है।