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इलाहाबाद हाईकोर्ट में धारा 494 को चुनौती, हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, "मुस्लिमों को चार शादियों की छूट, हिंदू, सिख और ईसाईयों पर प्रतिबंध भेदभाव है"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: March 5, 2023 08:33 IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड की जनहित याचिका पर अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अटॉर्नी जनरल को यह नोटिस संविधान की धारा 494 के संबंध में जारी किया है, जिसे हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड ने लोगों के बीच में धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बताया है।

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ठळक मुद्देइलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड की याचिका पर अटॉर्नी जनरल को जारी किया नोटिसयह नोटिस धारा 494 के संबंध में है, जिसे हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड ने असंवैधानिक बताया है हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि कानून मुस्लिम को 4 शादियों की छूट देता है, जबकि अन्य को नहीं

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा दायर की गई जनहित याचिका सुनवाई करते हुए देश के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अटॉर्नी जनरल को यह नोटिस इस कारण जारी किया है कि क्योंकि हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी याचिका में भारतीय संविधान की धारा 494 का उल्लेख करते हुए बताया है कि यह धारा लोगों के बीच में धर्म के आधार पर भेदभाव करती है, इस कारण यह पूरी तरह से असंवैधानिक है।

दरअसल संविधान की धारा 494 इस बात का उल्लेख करती है कि अगर कोई व्यक्ति पहली पत्नी के जिंदा रहते हुए या उसे बिना तलाक दिये दूसरा विवाह करता है तो वह गैर-कानूनी अपराध माना जाएगा और इस अपराध के लिए सात साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन यह कानून केवल हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय पर लागू होता है और मुस्लिम समुदाय इस कानून के दायरे में नहीं आता है क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 के मुताबिक शरियत उन्हें 4 शादियों की छूट प्रदान करता है।

इस मामले में लखनऊ खंडपीठ की दो जजों की बेंच ने, जिसमें जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थि शामिल हैं। उन्होंने जनहित याचिका फाइल करने वाले पवन कुमार दास शास्त्री के तर्कों को देखते हुए 27 फरवरी को इस मामले में जवाब देने के लिए अटॉर्नी जनरल को आदेश जारी किया है। पवन कुमार शास्त्री हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हैं।

मामले में अटॉर्नी जनरल को आदेश जारी करते हुए कोर्ट ने कहा, "चूंकि इस जनहित याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 के वैधानिकता को चुनौती दी गई और साथ में संविधान की धारा 494 को भेदभाव वाला बताया गया है। इस कारण से कोर्ट अटॉर्नी जनरल को आदेश देती है कि वो इस मामले में स्थिति स्पष्ट करें।"

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को संबंधित जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए 6 हफ्तों का समय दिया है और साथ में यह भी कहा है कि अटॉर्नी जनरल के जवाब देने के बाद हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड भी दो हफ्तों के भीतर प्रतिउत्तर दाखिल करे। कोर्ट इस मामले में अब आगे की सुनवाई 8 हफ्ते करेगी।

हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कोर्ट में इस जनहित को दाखिल करने वाले वकील अशोक पांडे ने कहा, "संविधान की धारा 494 धर्म के आधार पर भेदभाव करती है। इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए। हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड एक ट्रस्ट है, जो भारतीय ट्रस्ट एक्ट के तहत गठित हुआ है, जो हिंदू पर्सनल लॉ को सुरक्षित और संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस कारण से हमने इस याचिका को दाखिल किया है।" 

हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से यह भी कहा गया है कि देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है और यहां पर कई ऐसे धार्मिक समूह मिलते हैं जिनके पूर्वज और भगवान बहुविवाहवादी थे । लेकिन मौजूदा कानून-व्यवस्था में उनके बहुविवाह को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। जबकि वहीं धर्म विशेष को इससे छूट मिली हुई है और वो भी उनके अपने धार्मिक नियमों के आधार पर। इस कारण संविधान की धारा 494 नागरिकों के बीच भेदभाव करती हुई प्रतीत होती है। 

टॅग्स :Lucknow Bench of the Allahabad High CourtAllahabad High CourtIPC
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