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उच्‍च न्‍यायालय ने गौ-हत्या के मामले में रासुका के तहत पारित आदेश को खारिज किया

By भाषा | Updated: August 13, 2021 20:46 IST

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लखनऊ, 13 अगस्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सीतापुर जिले के तीन निवासियों के खिलाफ गौ हत्या के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत पारित एक आदेश को खारिज कर दिया है।

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की पीठ ने पांच अगस्त को इरफान, परवेज व रहमतुल्लाह की ओर से दाखिल तीन अलग-अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को मंजूर करते हुए यह आदेश पारित किया।

पीठ ने कहा कि मान भी लिया जाये कि गाय के गोश्‍त का याचियों के घर के अंदर टुकड़े किये जा रहे थे तो उससे कानून-व्यवस्था बिगड़ने की बात तो मानी जा सकती है किन्तु लेाक व्यवस्था बिगड़ने की बात नहीं मानी जा सकती जबकि रासुका लगाने के लिए यह देखना आवश्यक है कि अभियुक्तों के कृत्य से लोक व्यवस्था छिन्न भिन्न हुई हो।

सीतापुर पुलिस ने 12 जुलाई, 2020 को मुखबिर द्वारा गाय को कहीं और काटने के बाद उप्र गोहत्या अधिनियम के तहत तीनों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

पुलिस रिकार्ड के अनुसार मुखबिर की सूचना क‍ि अभियुक्तगणों के घर पर गाय मार कर लायी गयी और वहां पर उसके मांस के टुकड़े किया जा रहे हैं, इस पर सीतापुर की तालगांव पुलिस ने छापा मारा तो याचीगण इरफान व परवेज मौके से पकड़े गये और उन्‍होंने रहमतुल्लाह व दो अन्य सहअभियुक्तों के नाम बताये।

इसके अनुसार बाद में रहमतुल्लाह भी पकड़ लिया गया। घटना की रिपेार्ट 12 जुलाई 2020 को तालगांव थाने पर गौहत्या व अन्य अपराधों के कारित करने के आरेाप में दर्ज कर ली गयी। बाद में याचीगण पर गैंगस्टर कानून भी लगा दिया गया। तत्पश्चात पुलिस व प्रशासन की रिपोर्ट पर 14 अगस्त 2020 को याचियों के खिलाफ रासुका भी तामील करा दिया गया। इसी आदेश को याचीगण ने उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी थी।

याचीगण की ओर से अधिवक्ता नरेंद्र गुप्ता ने बहस किया कि याचीगण के खिलाफ केवल एक अपराध के आधार पर रासुका लगा दी गई है और उनका अन्य कोई आपराधिक इतिहास नही है। पुलिस की ओर से यह भी कहा गया कि छूटने पर याचीगण फिर से उसी अपराध में लिप्त होंगे हालांकि इसका भी कोई साक्ष्य नहीं है और ऐसे में निरुद्ध आदेश रद्द किये जाने योग्य है।

सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि निरुद्ध आदेश एक मुकदमे के आधार पर भी पारित किया जा सकता है और इसे एडवाइजरी बोर्ड ने भी सही ठहराया है अतः याचिकाएं खारिज किये जाने योग्य हैं।

सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने याचिकाएं मंजूर करते हुए कहा कि गरीबी, बेरोजगारी अथवा भूख के कारण किसी का अपने घर के अंदर चुपचाप गो-वध करना कानून व्यवस्था का विषय तो हो सकता है लेकिन लेकिन इसकी ऐसी स्थिति से तुलना नहीं की जा सकती कि गोवध करने वाले आम लोगों पर हमला कर देते हों।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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