नैनीताल, 10 नवंबर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हरिद्वार के मनसादेवी मंदिर में कथित अवैध निर्माण के मामले में बुधवार को राज्य सरकार, वन विभाग, नगर निगम हरिद्वार और निरंजनी अखाड़ा के सचिव को नोटिस जारी किए।
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश आर एस चौहान और न्यायमूर्ति एन एस धनिक की खंडपीठ ने मामले में सभी पक्षों को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है ।
हरिद्वार निवासी रमेश चंद्र शर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि मनसादेवी मंदिर को 1940 में अंग्रेजों द्वारा जनता के लिए खोला गया था, लेकिन बाद में सरस्वती देवी नाम की एक महिला मंदिर में आकर रहने लगी और उसने अपनी 82 वर्ष की आयु में हरिद्वार के कुछ लोगों के नाम इसकी वसीयत बना दी ।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस भूमि पर वन विभाग का अधिकार है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि वसीयत के बाद निरंजनी अखाड़ा के सचिव महेंद्र गिरि ने एक फर्जी दस्तावेज तैयार किया और उसे एक न्यास घोषित कर दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि वन विभाग द्वारा मंदिर को दी गयी भूमि पर निरंजनी अखाड़े ने 30 कमरे, गोदाम, दुकानें और स्टोर भी बना दिए तथा अखाड़े के सचिव ने संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि पर भी कब्जा करते हुए वहां दुकानों का निर्माण करवा दिया है ।
याचिका में दावा किया गया है कि परिसर में निर्माण होने के कारण क्षेत्र में भूस्खलन की आशंका बढ़ गयी है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराया जाए तथा सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया जाए।
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