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पंजाब: गुरदेव कौर पेश कर रहीं मानवता की मिसाल, धुंधली आंखों और कांपते हाथों से जरूरतमंदों के लिए बनाती हैं मास्क

By भाषा | Updated: May 3, 2020 12:49 IST

पंजाब के मोगा शहर में अकालसर रोड पर रहने वाली 98 वर्षीय गुरदेव कौर धालीवाल कोरोना वायरस के कारण पैदा हुए इस मुश्किल समय में सभी के सामने मानवता की मिसाल पेश कर रही हैं। उनकी एक आंख की रौशनी धुंधला चुकी है, लेकिन इसके बावजूद वो परिवार के साथ मिलकर ढेरों मास्क सिलती हैं और फिर उन्हें गरीबों में बांट देती हैं।

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ठळक मुद्देगुरदेव कौर की बहू अमरजीत कौर बताती हैं कि उनकी सास की एक आंख में रौशनी नहीं है।गुरदेव कौर को चलने के लिए उन्हें वॉकर का सहारा लेना पड़ता है।

नई दिल्ली: कोरोना (Coronavirus) संकट में मास्क पहनना बहुत जरूरी हो गया है, लेकिन कुछ लोगों के पास मास्क खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं । ऐसे में 98 बरस की गुरदेव कौर हर दिन अपने परिवार के साथ मिलकर ढेरों मास्क सिलती हैं और फिर उन्हें गरीबों में बांट देती हैं। पंजाब के मोगा शहर में अकालसर रोड पर रहने वाली गुरदेव कौर धालीवाल की एक आंख की रौशनी धुंधला चुकी है और दूसरी आंख में भी 25 बरस पहले आपरेशन कराया था। 

कांपते हाथों से वह 100 साल पुरानी मशीन पर जब मास्क बनाने बैठती हैं तो मानवता की सेवा के अलावा उन्हें और कुछ याद नहीं रहता। इस मुश्किल समय में लोगों को अपने घरों में रहने और सरकार द्वारा बताए गए नियमों का पालन करने की सलाह देते हुए गुरदेव कौर कहती हैं, ‘‘बीमारी से बच सकते हो तो बचो। सरकार जो कुछ कहती है, हमारी भलाई के लिए कहती है। अपने घरों में रहो, भगवान का नाम लो और अगर किसी की मदद कर सकते हो तो जरूर करो।’’ 

मास्क बनाने के सिलसिले की शुरूआत के बारे में पूछने पर गुरदेव कौर बताती हैं ‘‘ गली में सब्जी, दूध, फल बेचने के लिए आने वालों से जब मैंने पूछा कि उन्होंने मास्क क्यों नहीं पहना तो उन्होंने बताया कि उनके पास मास्क खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। यह भी कहा जा रहा था कि बीमारी से बचना है तो मास्क पहनना जरूरी है। मुझे मास्क बनाने आते थे । मैंने 100 साल पुरानी मशीन जो मेरे ससुरालवाले सिंगापुर से लाए थे, वह निकाली और मास्क सिलने शुरू कर दिए। 

गुरदेव कौर की बहू अमरजीत कौर बताती हैं कि उनकी सास की एक आंख में रौशनी नहीं है, चलने के लिए उन्हें वॉकर का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन उनका सेवा भाव देखकर हमारा भी हौंसला बढ़ता है। वह सुबह पूजा करने के बाद मास्क की सिलाई के काम में लग जाती हैं और कई बार बिना रूके आठ घंटे तक मशीन पर उनके हाथ चलते रहते हैं। 

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