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गुजरात उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस मामले में संजीव भट्ट की याचिका खारिज की

By भाषा | Updated: August 6, 2021 18:02 IST

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अहमदाबाद, छह अगस्त गुजरात उच्च न्यायालय ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट्ट की एक पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दी है। इसमे मादक पदार्थ पर नियंत्रण संबंधी ‘एनडीपीएस’ कानून के तहत 1996 के एक मामले में उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में संशोधन का अनुरोध किया गया था।

भट्ट की याचिका खारिज करने के साथ ही न्यायमूर्ति इलेश वोरा ने निचली अदालत को ‘‘तेजी से’’ मुकदमे की कार्यवाही शुरू करने का भी निर्देश देते हुए कहा प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हुई है क्योंकि पूर्व अधिकारी निचली अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालय में भी अर्जियां दाखिल करते रहे हैं।

भट्ट 2018 में इस मामले में अपराध जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा गिरफ्तारी के बाद से ही सलाखों के पीछे हैं। न्यायिक हिरासत के दौरान, भट्ट को 1990 के हिरासत में यातना के मामले में दोषी ठहराया गया था, जबकि 1996 के मादक पदार्थ बरामदगी मामले में पहले ही बनासकांठा की निचली अदालत द्वारा आरोप तय किए जा चुके हैं।

गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी भट्ट को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अगस्त 2015 में सेवा से ‘‘अनधिकृत अनुपस्थिति’’ के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। भट्ट 1996 में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) थे।

अभियोजन पक्ष का आरोप है कि जब भट्ट जिला पुलिस अधीक्षक, बनासकांठा के रूप में पालनपुर में पदस्थापित थे तब उन्होंने राजस्थान के पाली निवासी सुमेर सिंह राजपुरोहित को एनडीपीएस कानून के प्रावधान के तहत अफीम रखने के झूठे मामले में फंसाने की साजिश रची थी। भट्ट के नेतृत्व में बनासकांठा पुलिस ने दावा किया था कि पालनपुर शहर में राजपुरोहित के एक होटल के कमरे में 1.5 किलो अफीम मिली थी। हालांकि, राजस्थान पुलिस की जांच में पता चला था कि राजपुरोहित को झूठा फंसाया गया था।

पालनपुर की निचली अदालत ने सितंबर 2019 में भट्ट के खिलाफ आरोप तय किए थे। अब वह एनडीपीएस कानून की संबंधित धाराओं और आईपीसी की धारा 120 (बी) के साथ 465 और 471 के तहत मुकदमे का सामना कर रहे हैं।

आरोप था कि भट्ट ने राजपुरोहित के नाम पर होटल के रजिस्टर में जाली प्रविष्टि की थी। अपनी याचिका में पूर्व आईपीएस अधिकारी ने दलील दी थी कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 465 और 471 के तहत आरोप तय करने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि अभियोजन पक्ष ने इस पर चुप्पी साध ली कि होटल लाजवंती में गवाह सुमेर सिंह के नाम पर झूठी प्रविष्टि किसने की।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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