जॉर्ज ऑरवेल का ‘1984’ और लॉर्ड ऑफ दि रिंग्स का ‘पैलेंटीर’

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 5, 2025 05:20 IST2025-08-05T05:20:04+5:302025-08-05T05:20:04+5:30

लगभग तीस साल बाद ‘अनुभवी’ हो चले युवा एरिक ने नाम बदलकर जॉर्ज ऑरवेल कर लिया. शायद औपनिवेशिक पहचान मिटाने की कोशिश रही होगी.

George Orwell's '1984' and 'Palantir' from Lord Rings blog Sunil Soni | जॉर्ज ऑरवेल का ‘1984’ और लॉर्ड ऑफ दि रिंग्स का ‘पैलेंटीर’

file photo

Highlightsऔपनिवेशिक सोच को छिपानेवाले राजनेता मानते थे कि जनता को मूर्ख बनाए रखा जा सकता है.भारत के बजट से कुछ कम और अमेरिका के बजट का दसवां हिस्सा है.ट्रम्प को यह कंपनी शायद इसलिए भी पसंद आई हो कि वे बहुत फिल्मी हैं.

सुनील सोनी

जॉर्ज ऑरवेल को गुजरे तीन चौथाई सदी हो चुकी, पर ‘एनिमल फार्म’ अब भी राजनीतिक हकीकत बना हुआ है. ‘1984’ लिखते हुए वे भविष्य का संकेत दे रहे थे, पर वैसे नहीं जैसे हम मौजूदा वक्त को देख रहे हैं. किसी कवि की तरह, जो समय की धारा में बहते हुए लिखता है. ऑरवेल बिहार के मोतिहारी में 25 जून 1903 को पैदा हुए. नाम रखा गया एरिक आर्थर ब्लेयर. लगभग तीस साल बाद ‘अनुभवी’ हो चले युवा एरिक ने नाम बदलकर जॉर्ज ऑरवेल कर लिया. शायद औपनिवेशिक पहचान मिटाने की कोशिश रही होगी.

उन्होंने ‘पॉलिटिक्स एंड दि इंग्लिश लैंग्वेज’ लिखा ही इसलिए कि उस वक्त भाषा का इस्तेमाल दमनकारी और क्रूर व्यवस्था को जायज ठहराने के लिए किया जा रहा था. घिसे-पिटे मुहावरों और लफ्फाजी से दकियानूस औपनिवेशिक सोच को छिपानेवाले राजनेता मानते थे कि जनता को मूर्ख बनाए रखा जा सकता है.

ऑरवेल ने जब यह निबंध लिखा, तब वे ‘एनिमल फाॅर्म’ लिख चुके थे और यहीं समकालीन साहित्य के राजनीति के प्रति असमंजस को उन्होंने साफ महसूस किया. आगे चलकर यह ‘1984’ में स्पष्ट होता है. 21वीं सदी को 18वीं सदी में खींचकर ले जाने की कोशिश में डोनाल्ड ट्रम्प 2025 में जब दुनिया को अमेरिका का उपनिवेश बनाने पर तुले हैं, तो अनजाने में सही, वे ऑरवेल की भविष्यवाणी के ‘बिग ब्रदर’ की भूमिका में भी हैं. मार्च, 2025 में उन्होंने ‘पैलेंटीर’ को यह जिम्मा सौंपा है. ‘पैलेंटीर’ 300 अरब डॉलर की ‘निगरानी कंपनी’ है. यह भारत के बजट से कुछ कम और अमेरिका के बजट का दसवां हिस्सा है.

ट्रम्प को यह कंपनी शायद इसलिए भी पसंद आई हो कि वे बहुत फिल्मी हैं. हॉलीवुड की कई फिल्मों में वे कुछ सेकंडों के लिए झलकते रहे हैं. ‘माइनाॅरिटी रिपोर्ट’ वह फिल्म है, जिसे ‘पैलेंटीर’ के संस्थापक एलेक्स कार्प और पीटर थिएल 9/11 के बाद हकीकत में बदलना चाहते थे और उससे भी आगे निकल गए. फिलिप के. डिक स्वप्नदर्शी विज्ञान गल्प लेखक थे.

कुुल जीवन के 30 लेखकीय वर्षों में उन्होंने 40 उपन्यास, कहानियां, लघुकथाएं लिखीं. सब विज्ञानगल्प. सन 1956 में लिखी गई लघुकथा ‘दि माइनॉरिटी रिपोर्ट’ पर स्टीवन स्पिलबर्ग ने 2002 में इसी नाम से फिल्म बनाई. सन 2015 में बेहद चर्चित सीरीज भी बनी. कार्प और थिएल ने कोई गल्प नहीं लिखी, न ही फिल्म बनाई. उन्होंने ऐसे सॉफ्टवेयर बनाए, जो भविष्य में होनेवाले अपराधों या घटनाओं से आगाह कर दे.

दुनिया के गुप्तचर साम्राज्य की स्वामिनी सीआईए ने तब थिएल के भविष्यदर्शी प्रोजेक्ट में 20 लाख डॉलर लगाए और फल सामने है. अब ‘पैलेंटीर’ हर अमेरिकी नागरिक की संपूर्ण निगरानी करती है. हर वक्त कौन क्या कर रहा है, उससे कुछ छिपा नहीं है. वह उग्रवादियों और चरमपंथियों को खोजती है, कर्मचारियों की जासूसी करती है,

युद्धों, शेयर बाजारों, फार्मूला-वन रेस और विमान दुर्घटनाओं की भविष्यवाणी करती है. ‘पैलेंटीर’ के दो मुख्य निगरानी टूल हैं. पहला ‘गोथम’ और दूसरा ‘फाउंड्री’. जासूसों के सर्च इंजन ‘गोथम’ का इस्तेमाल सेना, पुलिस, खुफिया एजेंसियां करती हैं. इसी से लादेन को खोजा गया था. ‘फाउंड्री’ का इस्तेमाल कारोबार में होता है.

वह वित्त, मानव संसाधन, चालन-संचालन, आपूर्ति श्रृंखला के बिखरे डाटा को एक ही मंच पर सुनियोजित कर देता है. एयरबस इसका इस्तेमाल विमान में खराबी जानने, फेरारी रेस जीतने, अस्पताल आसन्न मरीजों का पता लगाने, जेपी मॉर्गन कर्मचारियों की जासूसी के लिए करती रही है.

ट्रम्प के हुक्म के बाद अमेरिका का हरसंभव डाटा ‘पैलेंटीर’ के पास है. कर-अकर, स्वास्थ्य, आवास-प्रवास, जन्म-मृत्यु, संपत्ति-परिसंपत्ति; सब. सबसे बड़ी निगरानी प्रणाली. यह असीम ताकत है. इसके सामने ‘पेगासस’ जैसे ‘अवैध निगरानी बग’ कुछ भी नहीं हैं. यह सुपर‑डाटाबेस वैध ही नहीं, सेना-नेता-उद्योग गठजोड़ की राष्ट्रपति डी. आइजनहोवर की चेतावनी का हकीकत बनना भी है.

हाल में रिलीज डॉक्युमेंटरी ‘वॉचिंग यू : द वर्ल्ड ऑफ पैलेंटीर एंड एलेक्स कार्प’ का शीर्षक इसे चरितार्थ करता है. खास यह है कि ‘पैलेंटीर’ ‘लॉर्ड ऑफ दि रिंग्स’ के तिलिस्मी आईने का नाम है, जो सारे अधिनायकों की तरह खलनायक सौरोन की विश्वविजय की आकांक्षा पूरी करने का औजार है.

Web Title: George Orwell's '1984' and 'Palantir' from Lord Rings blog Sunil Soni

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