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बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद लालू परिवार में कलह हुई तेज, पार्टी के टूटने की भी जताई जाने लगी है संभावना

By एस पी सिन्हा | Updated: November 16, 2025 15:12 IST

इस बीच पार्टी और परिवार दोनों के भीतर ऐसा भूचाल ला दिया है जिसकी गूंज लंबे समय तक सुनाई देगी। हालात ऐसे बन गए हैं कि राजद में टूट की संभावना जताई जाने लगी है।

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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में राजद की हुई दुर्गति के बाद लालू परिवार में बवाल मच गया है। लालू परिवार में कलह हो गई। इस बीच अपने आवास एक पोलो रोड पर पार्टी विधायकों और सभी राजद उम्मीदवारों की अहम बैठक बुलाई है। यह बैठक चुनाव परिणामों की गहन समीक्षा, गलतियों की पहचान और आगे की रणनीति तय करने के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। 

इस बीच पार्टी और परिवार दोनों के भीतर ऐसा भूचाल ला दिया है जिसकी गूंज लंबे समय तक सुनाई देगी। हालात ऐसे बन गए हैं कि राजद में टूट की संभावना जताई जाने लगी है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद दल में टूट रोकना राजद के लिए बड़ी चुनौती होगी। वहीं, महागठबंधन की पार्टियों ने दबी जुबान में ही सही, लेकिन साफ कर दिया है कि तेजस्वी को जबर्दस्ती सीएम फेस बनाने की ज़िद ने पूरे गठबंधन को डुबो दिया। 

चुनावी नतीजों के बाद सहयोगी खुले तौर पर नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं, और हार का पूरा ठीकरा तेजस्वी के सिर फोड़ने की तैयारी दिखा रहे हैं। उधर, लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने परिवार और राजनीति छोड़ने का ऐलान किया। अब उन्होंने एक एक्स पोस्ट के जरिए छोटे भाई तेजस्वी यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। रोहिणी ने यहां तक लिख दिया कि मुझसे बड़ा गुनाह हुआ। 

रोहिणी आचार्य ने अपने एक्स हेंडल पर लिखा है कि कल मुझे गालियों के साथ बोला गया कि मैं गंदी हूं और मैंने अपने पिता को अपनी गंदी किडनी लगवा दी, करोड़ों रूपए लिए, टिकट लिया तब लगवाई गंदी किडनी.. सभी बेटी- बहन, जो शादीशुदा हैं उनको मैं बोलूंगी कि जब आपके मायके में कोई बेटा-भाई हो, तो भूल कर भी अपने भगवान रूपी पिता को नहीं बचाएं , अपने भाई, उस घर के बेटे को ही बोले कि वो अपनी या अपने किसी हरियाणवी दोस्त की किडनी लगवा दे ।” 

सभी बहन- बेटियां अपना घर- परिवार देखें, अपने माता- पिता की परवाह किए बिना अपने बच्चे, अपना काम, अपना ससुराल देखें, सिर्फ अपने बारे में सोचें .. मुझसे तो ये बड़ा गुनाह हो गया कि मैंने अपना परिवार, अपने तीनो बच्चों को नहीं देखा, किडनी देते वक्त न अपने पति, न अपने ससुराल से अनुमति ली .. अपने भगवान, अपने पिता को बचाने के लिए वो कर दिया जिसे आज गंदा बता दिया गया। आप सब मेरे जैसी गलती, कभी, ना करे किसी घर रोहिणी जैसी बेटी ना हो।” 

इसके पहले शनिवार को रोहिणी आचार्य ने जब विधानसभा चुनाव में हुई शर्मनाक हार लेकर तेजस्वी यादव, उनके सलाहकार संजय यादव और रमीज नेमत खान से सवाल पूछा तो न सिर्फ उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया बल्कि उनके ऊपर चप्पल तक उठा लिया गया। जिसके बाद रोहिणी ने लालू परिवार से नाता तोड़ने और राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया और देर शाम वह पटना से सिंगापुर के लिए रवाना हो गईं। 

रोहिणी आचार्य जिस अंदाज में घर से बाहर निकलीं और अपने साथ हुए सलूक को कैमरे पर सार्वजनिक किया, उससे लालू परिवार की बड़ी बहू ऐश्वर्या राय की याद आ गई। घर से उनके निष्कासन का दृश्य तो इससे भी हृदय विदारक था। उन्होंने भी अपने साथ मारपीट का आरोप सास राबड़ी देवी पर लगाया था। रोहिणी आचार्य के द्वारा शर्मनाक हार पर सवाल पूछने के बाद उनके साथ न सिर्फ दुर्व्यवहार किया गया बल्कि उनके ऊपर चप्पल तक उठा लिया गया। खुद रोहिणी आचार्य ने इस बात को मीडिया में कहा है।

वहीं, रोहिणी की तरफ से तेजस्वी यादव, संजय यादव और रमीज पर लगाए आरोपों का उनके भाई तेज प्रताप यादव ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि हमारी बहन का जो अपमान करेगा, उस पर कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलेगा। बता दें कि तेज प्रताप यादव पहले ही परिवार और पार्टी से बार किए जा चुके हैं। 

अब रोहिणी भी लालू परिवार से बाहर हो गई हैं। तेज प्रताप ने अपनी बहन का समर्थन करते हुए तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव और रमीज को 'जयचंद' कहा है और लालू प्रसाद यादव से इन सलाहकारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मेरे पिता, मेरे राजनीतिक गुरु लालू प्रसाद जी से आग्रह करता हू..पिता जी, एक संकेत दीजिए। 

आपका केवल एक इशारा और बिहार की जनता इन जयचंदों को जमीन में गाड़ देने का काम खुद कर देगी। यह लड़ाई किसी दल की नहीं बल्कि परिवार के सम्मान, बेटी की गरिमा और बिहार के स्वाभिमान की लड़ाई है। पोस्ट के आखिरी में लिखा है तेजप्रताप यादव, एक बेटा और भाई। तेज प्रताप ने कहा कि जब से मेरी रोहिणी बहन के चप्पल उठाने की खबर सुनी, दिल की आहत अब अग्नि बन चुकी है। 

राजद में अब संग्राम मचा है, लालू यादव की चुप्पी और राबड़ी देवी की खामोशी सवाल खड़ी कर रही है। तेज प्रताप यादव खुलकर रोहिणी आचार्य के समर्थन नजर आते हैं। ऐसे में सवाल यह कि क्या यह परिवार का पूरा विघटन है? क्या लालू परिवार दो धड़ों में बंटता दिखाई देगा? संजय यादव पर कार्रवाई का रोहिणी का दबाव काम कर जाएगा? दूसरी ओर बिहार की सियासत में यह नया मोड़ एनडीए को फायदा पहुंचा सकता है। फिलहाल, लालू का ‘सोशलिस्ट परिवार’ टूटते धागों में लिपटा नजर आ रहा है। 

बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव में राजद की बुरी हार हुई है। यह चुनाव लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा गया था। जिसका नतीजा हुआ कि पार्टी को भारी दुर्गति का सामना करना पड़ा और पिछले विधानसभा चुनाव में राजद को जितनी सीटें मिली थीं, इस चुनाव में उससे आधी से भी कम सीटें मिली है। इस दुर्गति के बाद लालू परिवार ने चुप्पी साध ली है। 

सूत्र बताते हैं कि लालू परिवार के भीतर विवाद की जड़ है संजय यादव का बढ़ता कद है। राज्यसभा सांसद और तेजस्वी के सबसे भरोसेमंद सलाहकार संजय हरियाणा मूल के हैं, लेकिन राजद की राजनीति में उनकी पैठ तेजस्वी के ‘खास रणनीतिकार-सलाहकार’ जैसी हो गई है। राजद के टिकट वितरण से लेकर बिहार अधिकार यात्रा तक हर फैसले में उनकी छाप दिखी। 

बता दें कि बीते सितंबर की ही तो बात है जब रोहिणी आचार्य ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर कर संजय की यात्रा बस में आगे की सीट पर बैठने की तस्वीर पर सवाल उठाए थे। “संजय को सांसद या विधायक बना सकते हो, लेकिन लालू प्रसाद यादव को कुर्सी पर नहीं बिठा सकते,” रोहिणी ने इन्हीं शब्दों के साथ तंज कसा था। दरअसल, यह सीट आमतौर पर लालू या तेजस्वी के लिए रिजर्व रहती है।

इस बीच रोहिणी आचार्य ने जिस तरह परिवार से दूरी बनाने के संकेत दिए हैं, उसके बाद से बिहार के सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि परिवार और पार्टी पर संकट की घड़ी आ गई है। पार्टी का भविष्य क्या होगा, इसका कुछ पता नहीं है। वहीं, हार के बाद पुराने और निकाले गए नेताओं ने भी हमला तेज कर दिया है। 

राजद की महिला प्रकोष्ठ की पूर्व अध्यक्ष रितु जायसवाल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि खुद को चाणक्य समझने की भूल में जीती हुई सीटें गंवाई जाती हैं। यह टिप्पणी तेजस्वी के सलाहकारों, विशेषकर संजय यादव और उनके करीबी रमीज, पर तीखा वार मानी जा रही है। ऐसे में दल को सुरक्षित रखना नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। राजद में सबसे बड़ी टूट 2014 में हुई थी। 

14 फरवरी 2014 को राजद के 13 विधायकों ने पाला बदल लिया था। इन 13 विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष ने अलग समूह का दर्जा दे दिया। सभी विधायक जदयू के साथ चले गए थे। जिन्होंने पाला बदलने संबंधी पत्र विधानसभा अध्यक्ष को दिया था उनमें फैयाज अहमद, रामलखन रामरमण, अख्तरूल इमान, चंद्रशेखर, डॉ. अब्दुल गफूर, ललित यादव, जितेन्द्र राय, अख्तरूल इस्लाम शाहीन, दुर्गा प्रसाद सिंह, सम्राट चौधरी, जावेद अंसारी, अनिरुद्ध कुमार और राघवेन्द्र प्रताप सिंह शामिल थे। 

उस समय राजद के 22 विधायक थे। लोकसभा चुनाव के पहले इस टूट से पार्टी को बड़ा झटका लगा था। पिछली बार 2020 के विस चुनाव से पहले प्रेमा चौधरी, महेश्वर यादव, अशोक कुमार, चंद्रिका राय, फराज फातमी, जयवर्धन यादव, वीरेन्द्र कुमार सिंह जैसे कद्दावर चेहरे राजद छोड़ जदयू में शामिल हो गए थे। इसके बाद राजद के पांच विधान पार्षद दिलीप राय, राधा चरण सेठ, संजय प्रसाद, कमरे आलम और रणविजय सिंह ने भी पाला बदल जदयू का दामन थाम लिया था। 

यही नहीं, पिछले साल जब बिहार में सत्ता का हस्तांतरण हुआ तब पार्टी के पांच विधायकों ने पाला बदलकर सरकार का साथ दिया था। इस साल भी चुनाव के पहले पार्टी के दर्जनभर से अधिक वरिष्ठ नेता, विधायकों ने पाला बदला। कभी पंद्रह वर्षों तक बिहार में राज करने वाले लालू प्रसाद ने दूसरे दलों को तोड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। आज जो दल (वामदल) उनके साथ हैं, उनके विधायकों को भी उन्होंने अपने पाले में कर लिया था। सपा और बसपा सहित अन्य दलों के विधायक भी तोड़े थे, लेकिन सत्ता से हटने के बाद राजद में भी टूट का दौर शुरू हो गया। 

जातीय गणित भी इस बार तेजस्वी के खिलाफ गया। उन्हें विरासत में मिलामुस्लिम–यादव समीकरण ) इस चुनाव में बिखरा नजर आया। राजद के 54 यादव उम्मीदवारों में से सिर्फ 11 जीते, जबकि एनडीए में 15 यादव विधायक जीतकर आए। मुस्लिम वोट तो और भी तेज़ी से खिसके राजद ने 19 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन सिर्फ 3 जीते। इसके उलट ए आईएम आईएम ने सीमांचल की सभी 5 मुस्लिम बहुल सीटों को फिर से अपने नाम कर लिया। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मुस्लिम समाज अब मानने लगा है कि तेजस्वी भाजपा को रोक पाने में सक्षम नहीं हैं।

इस बीच जदयू के मुख्य प्रवक्ता एवं विधान पार्षद नीरज कुमार ने संजय यादव के मुद्दे पर तंज कसते हुए कहा कि लालू यादव पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बन गए हैं तो राबड़ी देवी गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी बांध चुकी हैं। संजय की सूचनाओं और सलाह को ही वे सही मान रहे हैं। पर, जब राजद का ढोल फूट चुका है तो लालू के परिवार की खटपट अब सतह पर आ गई है। संजय की असलियत उजागर हो चुकी है कि उनकी सलाह पर पार्टी कैसे डूब गई। 

अक्सर ऐसा होता है कि विधायकों की कम तादाद रहने पर पार्टी में भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अगर राजद में बिखराव होता है तो इसका ठीकरा अब संजय यादव पर जरूर फूटेगा। तेज प्रताप की नाराजगी और रोहिणी के घर छोड़ते वक्त निकले आंसुऔं का शाप संजय को लग जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। अब तो राजद के समर्थक भी इस स्थिति को देख कर दूसरे खेमे की तलाश में लग सकते हैं। इसलिए जिस परिवार को वे अपना आदर्श मानते रहे हैं, उसकी असलियत उजागर हो चुकी है।

वहीं, जदयू के वरिष्ठ नेता अशोक चौधरी ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं, परिवार के लोग दुखी हैं। लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य की तरफ लगाए गए आरोपों पर अशोक चौधरी ने कहा कि परिवार के लोग भी बेहद व्यथित हैं। जिन्होंने लालू यादव की हालत देखी है, वे जानते हैं कि वह बहुत बीमार हैं और ऊपर से परिवार में एकता नहीं है। अब सवाल यह है कि पार्टी एकजुट रहेगी या नहीं। परिवार और पार्टी पर संकट की घड़ी है।

दूसरी ओर इस संकट की घड़ी में राजद के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को लालू यादव के द्वारा बुलाया गया और उन्हें समस्या का हल निकालने की जिम्मेवारी सौंपी है। राबडी आवास से बाहर निकलते वक्त जगदानंद सिंह ने कहा कि पार्टी और परिवार में ऐसी कोई गंभीर समस्या नही है। छोटी-मोटी बातों को तूल नही दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इंतजार कीजिए सब कुछ ठीक हो जायेगा।

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